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शिक्षित बेटी शिक्षित परिवार


यश रावत

शांति का नोबेल पुरुष्‍कार विजेता मलाला युसुफजई ने कहा है: 
एक बच्‍चा, एक शिक्ष्‍ाक, एक पुस्‍तक और एक कलम दुनिया को बदल सकती है

अगर हम भारत में साक्षरता दर की बात करें तो 2011 की जनगणना के हिसाब से 7 से 14 साल उम्र वर्ग के लड़कों की साक्षरता दर 80.9 और लड़कियों की साक्षरता दर केवल 64.6 है, अगर गौर करें तो 2001 की जनगणना के हिसाब से इसमें सुधार तो आया है मगर यह अभी भी बहुत कम है अब अगर हम 15 से अधिक उम्र के लड़कों की साक्षरता दर की बात करें तो 2011 की जनगणना के हिसाब से यह 78.8 है जबकि इसी उम्र वर्ग की लड़कियों की साक्षरता दर 48.2 जो 2001में 47.8 थी यानि इसमें केवल नाममात्र का अंतर आया है। ऐसा नहीं है कि सरकार शिक्षा पर खर्च नहीं कर रही हैं शिक्षा पर GDP का 4.13 प्रतिशत खर्च हो रहा है फिर भी स्थिति बहुत ज्‍यादा नहीं बदली है।
हम सभी भली-भांति जानते हैं कि हमारे घर में स्‍त्री अनेक भूमिकाएं निभाती है वह बेटी, बहन, पत्‍नी और मां होती है और उसकी सबसे बड़ी भूमिका एक गृहणी की होती है। यदि घर की गृहणी अशिक्षित होगी तो वह परिवार कैसे शिक्षित, स्‍वस्‍थ, सुखी और संपन्‍न हो सकता है।
गृहणी पूरे घर की सूत्रधार होती है तथा घर का सारा दारोमदार उसी के कंधों पर होता है जिसमें बच्‍चों की परवरिश से लेकर परिवार वालों एवं घर की देखभाल शामिल है मगर आज भी हमें अपने आस-पास ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे जहां घर में 4-5 बेटियों के बाद बेटा हुआ है। पुत्र प्राप्ति के लिए न जाने कैसे-कैसे ढोंग-परपंच किए जाते हैं जैसे व्रत रखना, तीर्थ स्‍थानों पर माथा टेकना, झाड़-फूक वालों के पास फिर भी बात न बने तो डॉक्‍टर के पास जाना।  लिंग जांच कराना अगर बेटी हुई तो उसे दुनिया में आने से पहले ही मिटा देना। बेटी के लिए कोई खास जतन नहीं किया जाता है, जब पढ़ाने-लिखाने की बात आती है तो बेटे को ही तरजीह दी जाती है, इस वजह से बेटियों को सही शिक्षा नहीं मिल पाती हैं जो उन पर सरासर अन्‍याय है, उनका अपमान है। इसके बावजूद वे अव्‍वल रहती हैं मगर इसके बावजूद उन्‍हें वह मान-सम्‍मान नहीं मिल पाता है जिसकी वे हकदार हैं। हालांकि ऐसे लोगों के उदाहरण भी मिल जाते हैं जिनकी सिर्फ एक ही संतान है और वह बेटी है जिसे उन्‍होंने बेटे से ज्‍यादा प्‍यार दिया है मगर ऐसे उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं।
हमें समझना चाहिए कि अशिक्षित व्‍यक्ति की सोचने व समझने की शक्ति की एक सीमा होती है जो किसी ऐसे तालाब की तरह है जिसमें पानी की निकासी का रास्‍ता नहीं है, बहने का मार्ग न मिलने के कारण पानी खुद को दूषित करने के साथ अन्‍य को भी दूषित कर देता है।
अगर हम सच में महाशक्ति बनना चाहते हैं तो महिलाओं को शिक्षित और सशक्‍त बनाना होगा, उन्‍हें मुख्‍य धारा में लाना होगा। उत्‍तराखंड राज्‍य में घर की मुखिया अब महिला है मगर उसे घर की मुखिया बना देने से काम नहीं चलेगा, इससे हम कुछ भी हासिल नहीं होगा असली बदलाव उस-दिन आयेगा जब महिलाएं अपने सभी फैसलों को आत्‍म-विश्‍वास के साथ स्‍वयं ले पायेंगी।
आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारी संसद में महिलाओं का प्रतिशत केवल 12 प्रतिशत है जो काफी चिंताजनक है हमें महिलाओं को मुख्‍य धारा में लाना ही होगा क्‍योंकि वही हम सब का कल्‍याण कर सकती है।
मेरा मतलब यह कतई नहीं है कि पुत्रों से प्रेम न करें बल्कि पुत्रियों से भी उतना ही प्रेम करें।

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