विजय माल्या पर फिल्म : कहाँ जा रहा है हमारा सिनेमा ?
डॉ. चंदर सोनाने
हाल ही में यह पढ़ने में और सुनने में आ रहा है कि देश के करोड़ों रूपये लेकर भागे विजय माल्या की विवादास्पद जीवन पर फिल्म बनने वाली है। इसमें गोंविदा को विजय माल्या की मुख्य भूमिका निभाने के लिए चुन लिया गया है। बैंकों के 3,000 हजार करोड़ रूपये लेकर विदेश भागे आर्थिक अपराधी विजय माल्या पर केंद्रित फिल्म बनाकर निर्माता समाज और देश को क्या संदेश देना चाहता है ? ऐसी फिल्म बनाकर कहाँ जा रहा है हमारा सिनेमा ?
मजेदार बात यह है कि नब्बे के दशक के सफल फिल्म डायरेक्टर पहलाज निहलानी ये फिल्म बनाने जा रहे हैं। यह वही पहलाज निलहानी है, जो सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। आर्थिक घोटालेबाज विजय माल्या ही उन्हें मिला है फिल्म बनाने के लिए। ऐसे निर्माता निर्देशकों की अक्ल पर तरस आता है। फिल्म निर्माता समाज का पथप्रदर्शक भी होता है। वह अपनी फिल्म के माध्यम से जनता का न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि समाज को एक दिशा निर्देश एवं सामाजिक संदेश भी देता है। किंतु यह बात अब धीरे- धीरे खत्म होती जा रही है।
एक जमाना था जब राजकपूर ने जागते रहो और श्री 420 के माध्यम से समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और सामाजिक विषमताओं के विरूद्ध अलख जगाया था। प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक गुरूदत्त ने प्यासा जैसी फिल्म के माध्यम से समाज की विसंगतियों का पोस्टमार्टम किया था। अब ऐसे फिल्म निर्माता निर्देशक कहा है ?
यदि 3,000 हजार करोड़ रूपये लेकर भागे विजय माल्या पर केंद्रित फिल्म बनेगी तो आगामी समय में 11,345 करोड़ लेकर भागे नीरव मोदी पर केंद्रित फिल्म भी बनेगी। इसको कोई रोक नहीं सकता। यही नहीं इसके बाद देश के आर्थिक अपराधियों पर केंद्रित फिल्म बनने की बाढ़ ही आ जाएगी। फिर तो यह होगा कि 44,478 करोड़ रूपये लेकर भागे भूषण स्टील, 44,364 करोड़ रूपये लेकर भागे लांको इन्फ्राटेक, 37,284 करोड़ रूपये खाकर बैठे इस्सार स्टीन, 32,248 करोड़ रूपये लेकर भागे भूषण पॉवर पर भी फिल्म बनने लगेगी। यह लिस्ट यहीं खत्म नही होती है। देश की 500 ऐसी डिफॉल्ट कंपनियाँ है जो 7,63,000 करोड़ रूपये खाकर बैठ गई है। यह राशि भारतीय बैंकों का दिसंबर 2017 तक का कुल एनपीए है। ये ऐसी कंपनियाँ है, जो विलफुल डिफॉल्टर है। विलफुल डिफॉल्टर उसे कहते हैं जो जानबूझ कर बैंकों का कर्ज नहीं चुका रहे हैं, जबकि वे सक्षम हैं। किंतु बैंक से लिया हुआ लोन चुकाना नहीं चाहते हैं। एैसों पर भी भविष्य में क्या फिल्म बनेगी ?
अपने जीवन में विजय माल्या ने हमेशा शान और शौकद की जिन्दगी जी है। अपने आर्थिक साम्राज्य का भोंडा प्रदर्शन किया है। विजय माल्या के हर साल निकलने वाले कैलेण्डर, जो अर्धनग्न लडकियों पर ही केंद्रित होते थे, के माध्यम से उन्होंने समाज में अश्लीलता ही परोसी है। उसके जीवन का कौन सा ऐसा पक्ष है, जो उजला है। देश की बैंकों के हजारों करोड़ों रूपये लेकर भागे भगोडे का कौन सा ऐसा आदर्श चरित्र है, जो निर्माता निर्देशक देश की जनता को बताना चाहता ह ? उसका पूरा जीवन ही अपनी धन दौलत के भोंडे प्रदर्शन से भरा पड़ा है।
यदि आर्थिक अपराधियों पर केंद्रित फिल्म बनती है और उसका नकारात्मक पक्ष उजागर हो तो कोई हर्ज नहीं है। किंतु यहाँ ऐसा नहीं है। आर्थिक और सामाजिक अपराधी तथा डॉन पर फिल्म बनाकर फिल्मकार समाज के प्रति अपने नैतिक दायित्वों से ना केवल मुँह मोड़ रहा है बल्कि आपराधिक तत्वों को लीडरोल देकर उन्हें महिमा मंडित करना भी एक तरह का सामाजिक अपराध है। इसे माफ नहीं किया जा सकता। निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी को चाहिए कि वह गोविंदा जैसे अपने समय के हीरो के लेकर विजय माल्या जैसे भगोड़े पर केंद्रित फिल्म बनाने से बाज आये।
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