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एक साल में 61 हजार बच्चे 28 दिन भी जी नहीं पाते


संदीप कुलश्रेष्ठ            
                            केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सेंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकडे़ सामने आये हैं। निती आयोग और नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे -4 की रिपोर्ट भी बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ की दयनीय स्थिति बता रही है। इन आंकड़ों में मप्र में बच्चे और महिलाओं के स्वास्थ की स्थिति बेहद चिंताजनक दिखाई दे रही है।
89,723 बच्चे अपना पहला जन्म नहीं देख पाते-
                              मप्र में 2016 में 19.09 लाख बच्चों का जन्म हुआ। इनमें से 61.88 हजार बच्चों की मौत 28 दिनों में ही हो गई। कुल 89, 723 बच्चे अपना पहला जन्म दिन नहीं देख पाते । प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 47 है। बच्चों और महिलाओं से संबंधित दर्जन भर योजनाओं पर करोड़ों रूपये खर्च होने के बावजूद मौत के ये आंकड़े दक्षिण अफ्रीका और इथोपिया जैसे देशों से भी ऊपर है। इस मामले में प्रदेश पूरे देश में भी पहले नबंर पर है।
मप्र में सबसे अधिक नवजात शिशु मृत्यु दर-
                          हमारे देश में सबसे अधिक पाँच राज्यों में नवजात शिशु की मृत्यु दर प्रति हजार में सबसे अधिक है। इन राज्यों में से मप्र में सर्वाधिक 32, उत्तर प्रदेश में 30, राजस्थान में 28, बिहार में 27, और झारखंड में 21 प्रति हजार है।
शिशु मृत्यु दर में भी मप्र पहले नंबर पर -
                   शिशु मृत्यु दर में भी मप्र देश भर में पहले नंबर पर है। एक साल तक के शिशुओं की मृत्यु दर प्रति हजार में सर्वाधिक 47 मप्र में ही है। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 43, राजस्थान में 41, बिहार में 38 और झारखंड में 29 है। ये सारे आंकड़े डरावने हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था की दयनीय स्थिति -
                   मप्र में स्वास्थ व्यवस्था की स्थिति अत्यंत दयनीय है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों के स्वीकृत 1771 पदां में से 617 पद  खाली पड़े हुए हैं। यही नहीं 393 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है। इंडियन पब्लिक हैल्थ स्टैंडर्ड के मुताबिक प्रदेश में एक भी प्राथमिक स्वास्थ केंद्र नहीं है। सामुदायिक स्वास्थ केंद्रों के लिए सर्जन, स्त्री रोग विशेषज्ञ, फिजीशियन, बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञों के कुल स्वीकृत 1236 पदों में से 1066 पद खाली पडे़ है। जनसंख्याँ के मानकों के अनुसार 12,415 उप स्वास्थ केंद्र होना जरूरी है किंतु वर्तमान में 9,292 है। प्रदेश में 1989 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। लेकिन वर्तमान में केवल 1171 ही  है। कुल 497 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए किंतु वर्तमान में 309 ही उपलब्ध है।
सर्वोच्च प्राथमिकता और स्वास्थ्य सुविधाओं पर दिया जाए ध्यान-
                       प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति अत्यंत डरावनीय है। नवजात शिशु और एक वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर देश में मप्र में सर्वाधिक है। हालांकि पिछले एक दशक में इस स्थिति में सकारात्मक बदलाव आया है। किंतु अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाआें पर सर्वोच्च ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए ग्रामीण  क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएँ मुहैया कराना अत्यंत आवश्यक है। जनसख्याँ के आधार पर निर्धारित मानक के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ केंद्र होना चाहिए। यहाँ सबसे ज्यादा जरूरी है चिकित्सकों की पूर्ति, पैरामेडिकल स्टाफ की उपलब्धता और प्रर्याप्त दवाईयां का होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए बजट भी  बढ़ाया जाना जरूरी है। यह जब तक नही किया जाएगा तब तक स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव लाना संभव नही है।
                        प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान महिलाओं और बच्चों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। इन दोनां के लिए उन्होंने अनेक योजनाएँ भी संचालित कर रखी है। अब जरूरत है मूलभूत सुविधाओं की, तभी स्थिति में सुधार हो सकेंगा।

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