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मुख्यमंत्रीजी, पेंशनरों को फिर से रोजगार नहीं सातवां वेतनमान चाहिए!


डॉ. चंदर सोनाने
              राज्य सरकार इस चुनावी साल में वोटरों को लुभाने का कोई मौका चुकना नहीं चाहती है। पहले किसान, सरकारी कर्मचारी और अब सेवानिवृत अधिकारियों और कर्मचारियों को सरकार रोजगार मुहैया कराने की तैयारी कर रही है। ये ऐसे वरिष्ठ नागरिक है, जो विभिन्न सरकारी  विभागों से सेवानिवृत हुए हैं। सामाजिक न्याय एवं निशक्तजन कल्याण विभाग वरिष्ठ नागरिकां के लिये स्वैच्छिक ब्यूरो का संचालन करने जा रहा है। प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में इन्हें खोला जाएगा। स्वैच्छिक ब्यूरो रोजगार पंजीयन कार्यालय की तर्ज पर कार्य करेंगे।  वरिष्ठ नागरिक यहाँ अपना रजिस्ट्रेशन करा सकेंगे। ये ऐेसे वरिष्ठ नागरिक हैं, जो डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, प्रोफेसर, सीए, वित्त, पुलिस, जनसंपर्क, प्रशासन, खेल, परिवहन  आदि  विभागां के  साथ ही अन्य विभागों के सेवानिवृत अधिकारी और कर्मचारी हैं।
                उक्त सेवानिवृत अधिकारियों और कर्मचारियों को स्वैच्छिक ब्यूरो के माध्यम से फिर से रोजगार देने की पहल राज्य सरकार शुरू करने जा रहा है। किंतु प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान को सोचना चाहिए कि 1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत हुए अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ इनके द्वारा भेदभाव किया जा रहा है। इन्हें राज्य सरकार ने अभी तक सातवां वेतनमान देने की घोषणा नहीं की है। इससे उनमें घोर हताशा और निराशा व्याप्त है । यही नहीं उनमें राज्य सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री के प्रति अत्यधिक नाराजगी भी है। मुख्यमंत्री ने 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत हुए अधिकारियों और कर्मचारियों को तो सातवां वेतनमान का लाभ तो दे दिया है । किंतु इस तिथि के पहले सेवानिवृत होने वाले पेंशनरों को सातवां वेतनमान नहीं देकर उन्होंने अन्याय ही किया है।                               
                 वित्त मंत्री ने पिछले दिनों बजट पेश करते हुए फिर से पेंशनरों को निराशा ही दी है। उन्होंने एक जनवरी 2016 के पूर्व सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को पेंशन में सातवां वेतनमान देने का कोई खुलासा नहीं करते हुए देय पेंशन में मात्र 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी करना प्रस्तावित किया है। इस तरह से उन्होंने एक जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों की तुलना में 15 प्रतिशत कम पेंशन देने का निर्णय लिया है। राज्य शासन के इस निर्णय से पेंशनरों में गहरा असंतोष है। मजेदार बात यह है कि राज्य सरकार ने एक जनवरी 2016 के बाद रिटायर्ड हुए कर्मचारियों को पेंशन में केंद्र के समान 2.57 का फार्मूला अपनाते हुए वृद्धि की है । किंतु एक जनवरी 2016 के पहले रिटायर्ड हुए कर्मचारियों के साथ नाइंसाफी की है। उन्हें केंद्र के समान पेंशन में वृद्धि नहीं करते हुए तथा सातवां वेतनमान नहीं देते हुए 15 प्रतिशत कम की वृद्धि करने का निर्णय लिया है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है
                  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के राजनैतिक एवं वित्तीय सलाहकार पता नहीं क्यों पेंशनरों के नुकसान के लिए जुट गए हैं ! एक तरफ से वे मुख्यमंत्री को अंधेरे में रख रहे हैं। शिवराज सरकार का चुनावी बजट दो लाख करोड रूपये का है । साढ़े तीन लाख सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पेंशन में से उनका हक मारना किसी के गले नहीं उतर रहा है। पेंशनरों को मिलने वाली राशि इतनी कम है कि यह बजट की तुलना में ऊंट के मुह में जीरे के बराबर है। अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर अनेक वर्षो तक देश में राज किया था। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार ने करीब एक दशक पहले फूट डालो और राज करो की नीति को अपनाना शुरू किया था। जब-जब केंद्र द्वारा महंगाई भत्ते में वृद्धि की जाती थी, तब-तब मध्यप्रदेश में कार्यरत हर तबके के कर्मचारी को एक साथ महंगाई भत्ता मिलता था। उन्होंने अखिल भारतीय सेवा वाले आईएएस , आईपीएस और आईएफएस के अधिकारियों को मध्यप्रदेश के अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों से दूर हटा दिया और यह व्यवस्था कर दी कि जब-जब केंद्र महंगाई भत्ता बढ़ाएगा, तब-तब मध्यप्रदेश के इन तीनों सेवा के अधिकारियों का महंगाई भत्ता स्वतः बढ़ जाएगा। किंतु राज्य के कर्मचारियों को इसका लाभ तब तक नहीं मिलेगा, जब तक काफी समय बितने के बाद कर्मचारियों की ओर से मांग और आंदोलन नहीं किया जाए।                                                      
                   एक जनवरी 2016 के पहले रिटायर हुए साढ़े तीन लाख कर्मचारियों में से मोटे तौर पर करीब 80 प्रतिशत पेंशनर तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के हैं। शिवराज सरकार की सबसे ज्यादा मार इसी वर्ग पर पडेगी। शेष करीब 20 प्रतिशत अधिकारी द्वितीय श्रेणी और प्रथम श्रेणी के हैं । इन्हें भी 15 प्रतिशत का नुकसान सहना पडेगा।                                                   
                   वर्तमान में मध्यप्रदेश में जूनियर पेंशनर को सीनियर पेंशनर से अधिक पेंशन मिल रही है। यह चमत्कार राज्य सरकार के अजीब फैसले से हुआ है। इस संबंध में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के पूर्व में आदेश भी हैं कि 80 वर्ष की आयु या उससे अधिक की आयु वाले पेंशनर को 20 प्रतिशत से अधिक पेंशन दी जाए। वर्तमान में केंद्र और मध्यप्रदेश में इस नियम का पालन हो भी रहा है, किंतु पिछले दिनों राज्य सरकार ने 1 जनवरी 2016 को  या इसके बाद सेनानिवृत्त कर्मचारियों को सातवां वेतनमान दे दिया गया है। इसलिए उन्हें अधिक पेंशन मिल रही है। जबकि 1 जनवरी 2016 के पहले जितने भी सीनियर पेंशनर हैं, उन्हें अभी तक सातवां वेतनमान का लाभ देने का सरकार ने फैसला नहीं लिया है। इसलिए उन्हें कम पेंशन मिल रही है। ये है, राज्य सरकार के अजूबे फैसले का दुष्परिणाम।                  
                 राज्य सरकार द्वारा 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए सभी कर्मचारी व अधिकारी को न केवल सातवां वेतनमान देने के आदेश दे दिए है, बल्कि उन्हें एरियर की राशि भी नकद देने का फैसला किया है। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए पेंशनर को सातवां वेतनमान मिलने के कारण पेंशन के रूप में अधिक और अच्छी राशि मिल रही है। उन्हें यह पेंशन मिलनी भी चाहिए। इसके वे अधिकारी भी हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य के सेवानिवृत हुए कर्मचारियों में से करीब 30 प्रतिशत ऐसे भी पेंशनर हैं, जिनकी मृत्यु हो गई है। इस कारण पेंशनर की पत्नी को आधी ही पेंशन मिल रही है । अर्थात पेंशनर के  जीवित रहने पर जहाँ उसे 100 प्रतिशत पेंशन मिलती थी,वहीं पेंशनर की मृत्यु हो जाने पर  उसकी पत्नी अथवा पति को परिवार पेंशन के रूप में मात्र आधी ही पेंशन मिलती है। राज्य सरकार के इस अजूबे फैसले से ऐसे परिवार के साथ राज्य सरकार द्वारा सरासर अन्याय किया जा रहा है।
                    मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान एक-एक कर सबको तोहफा दे रहे हैं। किसानां पर वे कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। उनका लक्ष्य आगामी चुनाव है । किंतु उनके राजनैतिक सलाहकार और वित्तीय सलाहकार पता नहीं क्यों पेंशनरों से लगता है नाराज हैं। वे मुख्यमंत्री को गुमराह  कर रहे हैं। तभी मुख्यमंत्री इस दिशा में अभी तक कुछ कर नहीं पा रहे हैं। मुख्यमंत्री एक संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। एक बार सही स्थिति उनके सामने रखी जाये तो यह निश्चित है कि मुख्यमंत्री 1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत्त हुए पेंशनरों के साथ न्याय करेंगे । और मुख्यमंत्री के सामने सही स्थिति पेंशनर ही रख सकते हैं। इसलिए पेंशनरों के राज्य स्तरीय पदाधिकारियों को चाहिये कि वे शीघ्र भोपाल में पेंशनरों का एक सम्मेलन बुलायें तथा राज्य स्तरीय आंदोलन करें और मुख्यमंत्री को सही स्थिति से अवगत करायें, तभी निश्चित रूप से मुख्यमंत्री भी पेंशनरों की मांग से सहमत होंगे। मुख्यमंत्री को सोचना चाहिए की पेंशनरों को अब फिर से रोजगार की इतनी जरूरत नहीं हे, जितनी उन्हें सातवां वेतनमान की जरूरत है। यदि उन्हें केंद्र के समान सातवां वेतनमान मिलेगा तो निश्चित ही वे मुख्यमंत्री को दुआ देंगे।                                   

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