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दलित आंदोलनकारियों पर सख्त कार्रवाही : क्या भाजपा के लिए यह आत्मघाती होगा ?


डॉ. चंदर सोनाने

                     

  देश और प्रदेश में पिछले कुछ सालों में अनेक आंदोलन हुए हैं। उदाहरण के लिये किसान,जाट, पाटीदार, गुर्जर, पटेल आंदोलन आदि। इन  आंदोलन के दौरान अनेक जगहों पर हिंसा भी हुई। उसमें अनेक लोग मारे भी गये। इन्हीं आंदोलनों के क्रम में 2 अप्रैल को देश भर में दलितों के आव्हान पर भारत बंद आंदोलन हुआ । इसमें देश के अनेक राज्यों में हिंसा की अनेक वारदातें भी हुई। मप्र में सर्वाधिक 12 लोग मारे गये।

                                 किसी भी आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से ही होना चाहिए। किसी भी आंदोलन में यदि हिंसा हुई तो वह आंदोलन के लिये कलंक ही माना जाएगा। किसी भी आंदोलनकारियों को हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती । दलित आंदोलन के विरोध स्वरूप 10 अप्रैल को भारत बंद का आव्हान किया गया। इसमें बिहार और पंजाब में सर्वाधिक हिंसा हुई। इस आंदोलन में हुई हिंसा को भी कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता।

                                 उक्त आंदोलनों में हुई हिंसा के दौरान अनेक मौतें हुई। किंतु किसी भी आंदोलन में हिंसा करने वाले आंदोलनकारियों पर दलित आंदोलन को छोड़ कर कोई विशेष कार्रवाही नहीं की गई । किसी भी राज्य में हिंसा करने वाले उपद्रवकारियों पर थोक में कोई कार्रवाही नहीं की गई। किंतु उक्त आंदोलनों में से  2 अप्रैल को हुये दलित आंदोलन में भाग लेने वाले आंदोलनकारियों  पर थोक में चुन चुन कर कार्रवाही की गई । देश भर में आंदोलनकारियों के विरूद्ध प्रकरण दर्ज किये गये, किंतु इस मामले मे  मप्र सबसे आगे रहा । 2 अप्रैल को आंदोलन में भाग लेने वाले शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों पर शासन और प्रशासन लगभग टूट पड़ा । ग्वालियर और चंबल क्षेत्र में शासकीय अधिकारियों पर थोक में कार्रवाही की गई । उदाहरण के लिये यहाँ के कुछ प्रकरणों को देखते है। मप्र के मुरैना में हुये दलित आंदोलन के दौरान आंदोलन में भाग लेने वाले मुरैना नगर पालिक निगम के दो पार्षदों को पद से अयोग्य घोषित करने का नोटिस चंबल संभाग के आयुक्त श्री एम. के.अग्रवाल ने जारी कर दिया।

                                ग्वालियर अंचल में जीआरपी ने 800 से अधिक आंदोलनकारियों के विरूध प्रकरण दर्ज कर लिया और 61 को जेल भेज दिया। 7 अधिकरियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया। 100 के विरूद्ध जांच बैठा दी गई। इसके अलावा आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख लोगों को चुन चुन कर गिरफ्तार कर लिया गया । उन पर हत्या के प्रयास,बलवा, फायरिंग, शासकीय कार्य में हस्तक्षेप, शासकीय संम्पति को क्षति पहुचाने के रेलवे एक्ट की विभिन्न धाराआें के तहत उन्हें आरोपी बनाया गया । मुरैना में अजाक थाने के सिपाही विनीत मौर्य को पुलिस अधीक्षक द्वारा उसे निलंबित कर दिया गया। इसके अलावा अवकाश लेकर आंदोलन में शामिल होने वाले श्यामपुर स्कूल के सहायक अध्यापक श्रीरामप्रसाद सखवार, देवपुर माफी मिडिल स्कूल के सहायक शिक्षक बाबूसिंह दुलावत और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी श्री रविंद्र कथुरिया को निलबिंत कर दिया गया। इसके साथ पुलिस द्वारा आंदोलन के सूत्रधारों पर रासुका लगाने की कार्रवाही भी की जा रही है। दलित वर्ग के  अनेक संगठनों से जुडे विभिन्न पदाधिकारियों को चुन चुन कर गिरफ्तार कर लिया गया।

                                उक्त उदाहरण यह बताने के लिये पर्याप्त है कि मप्र सरकार द्वारा  दलित आंदोलन में भाग लेने वाले आंदोलनकारियों  विशेषकर शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाही करने की अंतहीन प्रक्रिया शुरू कर दी गई । किसी भी आंदोलन में हिंसा करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध कार्रवाही करने वाली सामान्य प्रक्रिया तभी मानी जाएगी जब सभी आंदोलनों मे एक समान रूप अपनाया जाए। किंतु तमाम आंदोलनों में ऐसा कुछ नहीं हुआ। केवल दलित आंदोलन में ही उसमें भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं के विरूद्ध सख्त कार्रवाही की गई। यह कदाचित उचित नहीं ठहराया जा सकता ।  पुलिस द्वारा दलित आंदोलनकारियों पर थोक में की गई कार्रवाही यह दर्शाती है कि राज्य सरकार का यह रूख उनके प्रति कैसा है ? पुलिस द्वारा की गई कार्रवाही से दलित आंदोलनकारियों में हताषा एवं रोष है।

                                 विभिन्न आंदोलनों मे  भाग लेने वाले प्रभावितों के और विशेषकर जिनकी मौत हो जाती है। उनके परिवारों को सहायता राशि दी जाती   है । दलित आंदोलनों को छोड़ कर उक्त सभी आंदोलनों में प्रभावितो को लाखों करोडों रूपयों को सहायता दी गई । उन्हें यह सहायाता दी भी जानी चाहिए। किंतु अभी तक दलित आंदोलन में मारे गये व्यक्तियों के परिवारों को सहायता राशि देने की कोई घोषणा नहीं की गई है। यह भेदभाव क्या दर्शाता है ? यही नहीं प्रभावितों के घर मुख्यमंत्री स्वंय और उनके मंत्रि मंडल के सदस्यगण जाकर उन्हें सांतवना देते है किंतु दलित आंदोलन में मप्र में मारे गये 12 लोगों के  घर अभी तक ना तो मुख्यमंत्री गये और ना ही कोई मंत्री ने जाकर उनकी सुध ली है। यह स्पष्ट रूप  से भेदभाव दर्शाता है।

                                 दलित आंदोलनकारियों के विरूद्ध राज्य सरकार द्वारा की जा रही सख्त कार्रवाही में दलितों में रोष व्याप्त है। क्या भाजपा के लिये आगामी चुनावों के लिये यह आत्मघाती सिद्ध होगा ? यह चिंतन और मनन का विषय है। अभी भी देर नहीं हुई है। मप्र के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान एक सवेंदनशील मुख्यमंत्री के रूप में जाने पहचाने जाते हैं। उन्हें चाहिए की दलित आंदोलन में भाग लेने वाले आंदोलनकारियों के विरूद्ध कोई सख्त कार्रवाही नहीं की जाये। साथ ही प्रभावितों को पर्याप्त सहायता राशि भी दी जाये और उनके घर जाकर उनके परिवारों को सांतवना दें तभी उन्हें लगेगा की उनके साथ भेदभाव नहीं हो रहा है।

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