पेंशनर : जूनियर को सीनियर से ज्यादा पेंशन , राज्य सरकार का ये फैसला है अजूबा
डॉ. चंदर सोनाने
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को भोपाल में राज्य के कर्मचारियों और अधिकारियों को तोहफा देते हुए घोषणा की है कि अब राज्य के सभी अधिकारी और कर्मचारी 62 वर्ष की उम्र में रिटायर होंगे। किंतु उन्होंने पेंशनरों के साथ हो रहे नाइंसाफी पर कुछ नहीं कहा है। वर्तमान में मध्यप्रदेश में जूनियर पेंशनर को सीनियर पेंशनर से अधिक पेंशन मिल रही है। यह चमत्कार राज्य सरकार के अजीब फैसले से हुआ है। इस संबंध में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के पूर्व में आदेश भी हैं कि 80 वर्ष की आयु या उससे अधिक की आयु वाले पेंशनर को 20 प्रतिशत से अधिक पेंशन दी जाए। वर्तमान में केंद्र और मध्यप्रदेश में इस नियम का पालन हो भी रहा है, किंतु पिछले दिनों राज्य सरकार ने 1 जनवरी 2016 को या इसके बाद सेनानिवृत्त कर्मचारियों को सातवां वेतनमान दे दिया गया है। इसलिए उन्हें अधिक पेंशन मिल रही है। जबकि 1 जनवरी 2016 के पहले जितने भी सीनियर पेंशनर हैं, उन्हें अभी तक सातवां वेतनमान का लाभ देने का सरकार ने फैसला नहीं लिया है। इसलिए उन्हें कम पेंशन मिल रही है। ये है, राज्य सरकार के अजूबे फैसले का दुष्परिणाम।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा अपने समस्त कर्मचारियों और अधिकारियों को सातवां वेतनमान 1 जनवरी 2016 से दे दिया गया है। यही नहीं केंद्र सरकार द्वारा सभी पेंशनर को भी सातवां वेतनमान दे दिया गया है। केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2016़ के पहले सेवानिवृत्त हुए और 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ कोई भेदभाव नहीं करते हुए सब को सातवां वेतनमान का लाभ दिया है, जबकि राज्य सरकार ने यहाँ भेदभाव किया है।
राज्य सरकार द्वारा 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए सभी कर्मचारी व अधिकारी को न केवल सातवां वेतनमान देने के आदेश दे दिए है, बल्कि उन्हें एरियर की राशि भी नकद देने का फैसला किया है। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद 1 जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए पेंशनर को सातवां वेतनमान मिलने के कारण पेंशन के रूप में अधिक और अच्छी राशि मिल रही है। उन्हें यह पेंशन मिलनी भी चाहिए। इसके वे अधिकारी भी हैं।
किंतु मध्यप्रदेश सरकार ने 1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी एवं कर्मचारियों को सातवां वेतनमान का लाभ अभी तक नहीं दिया है। उन्हें छठे वेतनमान के मान से ही अभी पेंशन प्राप्त हो रही है। पिछले दिनों विधानसभा के बजट सत्र में वित्त मंत्री श्री जयंत मलैया ने 1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी एवं कर्मचारियों को मात्र 10 प्रतिशत राशि की वृद्धि करने की घोषणा की है। यह 1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के साथ सरासर अन्याय है। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा हैं कि राज्य सरकार उनके साथ यह भेदभाव क्यों कर रही है। जबकि केंद्र ने ऐसा कोई भेदभाव नहीं किया है । यह उनकी समझ के परे है।
1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों ने पिछले दिनों मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिले में अपने अपने जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपें हैं। इसमें उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से यह अनुरोध किया है कि उन्हें भी सातवें वेतनमान का लाभ दिया जाए । उन्हें 10 प्रतिशत बढोतरी मंजूर नहीं है। प्रदेश के सभी जिलो से गए ज्ञापनों पर क्या हो रहा है ? यह किसी को पता नहीं है। पेंशनर एसोसिएशन के प्रदेश पदाधिकारियों द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री से भेंट कर उनके साथ हो रहे इस भेदभाव को दूर करने के लिए अनुरोध भी किया गया है। किंतु अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
उल्लेखनीय है कि राज्य के सेवानिवृत हुए कर्मचारियों में से करीब 30 प्रतिशत ऐसे भी पेंशनर हैं, जिनकी मृत्यु हो गई है। इस कारण पेंशनर की पत्नी को आधी ही पेंशन मिल रही है । अर्थात पेंशनर के जीवित रहने पर जहाँ उसे 100 प्रतिशत पेंशन मिलती थी,वहीं पेंशनर की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी को परिवार पेंशन के रूप में मात्र आधी ही पेंशन मिलती है। राज्य सरकार के अजूबे फैसले से ऐसे परिवार के साथ राज्य सरकार द्वारा सरासर अन्याय किया जा रहा है।
प्रदेश में इस वर्ष 2018 के अंत में चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एक-एक कर सबको तोहफा दे रहे हैं। किसानां पर वे कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। उनका लक्ष्य आगामी चुनाव है । और राजनेताओं के लिये यह आवश्यक भी है। इसमें कुछ बुराई भी नहीं है। किंतु उनके राजनैतिक सलाहकार और वित्तीय सलाहकार पता नहीं क्यों पेंशनरों से लगता है नाराज हैं। वे मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हैं। तभी मुख्यमंत्री इस दिशा में अभी तक कुछ कर नहीं पा रहे हैं। मुख्यमंत्री एक संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। एक बार सही स्थिति उनके सामने रखी जाये तो यह निश्चित है कि मुख्यमंत्री 1 जनवरी 2016 के पहले सेवानिवृत्त हुए पेंशनरों के साथ न्याय करेंगे । और मुख्यमंत्री के सामने सही स्थिति पेंशनर ही रख सकते हैं। इसलिए पेंशनरों के राज्य स्तरीय पदाधिकारियों को चाहिये कि वे भोपाल में पेंशनरों का एक सम्मेलन बुलायें और मुख्यमंत्री को सही स्थिति से अवगत करायें तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री भी पेंशनरों की मांग से सहमत होंगे। अब इन्तजार है पेंशनरां और मुख्यमंत्री का आपस में भेंट होने का, तभी लगता है पेंशनरों के साथ न्याय हो सकेगा ।
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