अभी भी 83 प्रतिशत गाँंव नल जल योजना से वंचित
डॉ. चंदर सोनाने
केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्री सुश्री उमा भारती ने हाल ही में संसद में बताया कि देश के 83 प्रतिशत गाँव नल जल योजना से छूटे हं। पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्वजल योजना शुरू की गई है। इसके लिए 115 गाँव की सूची तैयार की गई है। आजादी के 70 साल बाद भी आज हालात यह है कि देश के केवल 17 प्रतिशत गाँव में शुद्ध पेयजल योजना हेतु नल जल योजना संचालित की जा रही है। यह अत्यंत ही दुखद है। इसी गति से गाँव में शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाने का कार्य चलता रहा तो 100 साल लग जाएंगे सभी गांवों में पेयजल के लिए नल जल योजना शुरू करवाने में।
सरकार केंद्र की हो या राज्य की। उनका मूलभूत कर्तव्य है अपनी जनता को शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाना। पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए सबसे आदर्श व्यवस्था नल जल योजना मानी गई है। इसमें घरों में सीधे पानी पहुंचाया जा सकता है। पानी के लिए महिलाओं को इधर उधर भटकना नहीं पड़ता है। किंतु इस दिशा में केंद्र सरकार का प्रयास जिस तेजी से होना चाहिए, वो नहीं हो रहे हैं। इसके लिए सरकार की मानसिकता भी दोषी है। उनकी प्राथमिकता की सूची में कभी भी गाँवों में पेयजल उपलब्ध करवाना नहीं रहा है।
वर्तमान में गाँवों में पीने के पानी की क्या व्यवस्था है ? इसके लिए एक ही उदाहरण पर्याप्त है। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले मे दलारना पंचायत के एक हजार की आबादी वाला गांव ईचनाखेड़ली है। यहाँ करीब 3 दर्जन लोग ऐसे हैं, जिनकी शादी की उम्र बीत चुकी है। 18 से 22 वर्ष की उम्र के 30 लड़के शादी के इंतजार में है। यही नहीं , कई ऐसे भी हैं जिनकी शादी टूट चुकी है। और इसका कारण है यहांँ का उपलब्ध पीने का पानी। यहाँ पानी पीने के बाद महिलाएँ बीमार हुई और हालत नहीं सुधरी तो उन्होंने पति से तलाक भी ले लिया। इसका कारण यह है कि यहाँ के तालाब, कुओं और नलकुप्पों से शुद्ध पानी नहीं आता है। यहाँ सिर्फ खारा पानी निकलता है। इसके कारण ग्रामीणजन डायरिया से पीड़ित हो रहे है। ग्रामीण को मजबूरीवश दो किलोमीटर दूर पार्वती नदी से पीने का पानी लाना पड़ता है।
इस ग्राम में पिछले दिनों विशेष ग्राम सभा बुलाई गई थी। इसमें जिला पंचायत की अध्यक्ष सुश्री कविता मीणा को ग्रामीणों ने पेयजल की समस्या बताई। ग्रामीणों ने बताया कि उनके यहाँ आने वाले मेहमान उनके घर का पानी पीने से भी डरते हैं, क्योंकि कहीं वे भी बीमार नहीं हो जाए। ऐसे में उनके गाँवों के बच्चों के रिश्ते तय करने में दिक्क्तें आ रही है। गांव के ही श्री राजेन्द्र वैष्णव ने बताया है कि उनके बेटे सुरेश की शादी ढ़ोंटी गाँव की चेतना के साथ 2014 में हुई थी। खारा पानी होने की वजह से बहु मायके चली गई । रिश्ता टूटने से बचाने के लिए घर के आगे नया बोर करवाया गया , किंतु यहाँ भी पानी खारा निकला तो बहु ने तलाक का केस लगा दिया। तीन महीने पहले ही कोर्ट से सुरेश और चेतना का तलाक भी हो गया है।
मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के ईचनाखेड़ली गाँव की यह कहानी अकेली नहीं है। प्रदेश के अनेक जिलों के गाँवों की ऐसी ही कहानी है। जहाँ पीने का पानी सहज उपलब्ध नहीं होने के कारण पानी लाने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। कहीं खारा पानी निकल रहा है, तो कहीं पानी पीने योग्य नहीं है। इस कारण विशेषकर गाँव की महिलाएँ अत्यंत दुखी और परेशान है। उन्हें रोजाना मिलों पैदल चलकर एक घड़ा पानी के लिए मशक्कत करना पड़ रही है।
गाँव में ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो, इसके लिए केद्र सरकार को राज्य सरकार से मिलकर दीघकालीन और अल्पकालीन योजनाएँ बनायी जानी चाहिए। आजादी के 7 दशक के बाद आज भी हम लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं करवा पा रहे है। ये हम सब का दुर्भाग्य है। सबको शुद्ध पेयजल मिल सके, इसके लिए सभी राजनैतिक दलों को अपने संकुचित विचार छोडकर देश के व्यापक हित में गाँव के लोगों को पीने का पानी मुहैया करवाने के लिए एकजुट होने की आवश्यकता है। जरूरत है सिर्फ संकल्प शक्ति की। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इस दिशा में यह संकल्प लें तो शीघ्र कायाकल्प हो सकता है।
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