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प्रदेश में चार हजार स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं, एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं 17 हजार स्कूल


संदीप कुलश्रेष्ठ

                मध्यप्रदेश सरकार हर साल शिक्षा पर हजारों करोड़ रूपये खर्च करती है, किंतु अभी भी हालत पूरी तरह से सुधरी नहीं है। विधानसभा में विधायक श्री मुकेश नायक ने कहा कि प्रदेश में अभी भी चार हजार प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जहाँ एक भी शिक्षक नहीं है। यही नहीं, 17 हजार स्कूल ऐसे भी हैं, जहाँ केवल एक शिक्षक है। विधायक ने मध्यप्रदेश में मौजूदा शिक्षा व्यवस्था पर करारा व्यंग किया है। 
मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान नहीं -  
                  कहते हैं नींव मजबूत हो तो ईमारत मजबूत होगी। यह बिल्कुल सही है। यदि हमारी नींव ही कमजोर है, तो मजबूत ईमारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती । किंतु मध्यपदेश में यही हो रहा है। प्रति वर्ष शिक्षा पर हजारों करोड़ो रूपये खर्च करने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हमारे प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि यही वे क्षेत्र हैं, जहाँ गांवों के गरीब बच्चे शिक्षा अध्ययन करते है । वहाँ उनके लिए कोई प्राइवेट स्कूल नहीं है। सरकार की भी यह मूलभूत जिम्मेदारी है कि वे शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक कल्याण पर विशेष ध्यान दें। यदि प्राथमिक विद्यालय किसी गांव में खोल भी दिए गए हों और वहाँ शिक्षक ही तैनात नहीं हो तो ऐसे स्कूलों का कोई औचित्य ही नहीं है। सबसे पहले सरकार को उन स्कूलों में जहाँ कोई शिक्षक नहीं है, वहाँ शिक्षक की तैनाती करना चाहिए। 
एक शिक्षक के भरोसे स्कूल -
                  प्रदेश में अभी भी 17 हजार प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जहाँ मात्र एक शिक्षक है। कल्पना की जा सकती है कि प्राथमिक विद्यालय में यदि एक शिक्षक है तो वह पहली से पांचवी तक सभी विषयों को किस प्रकार पढ़ा सकेगा। इस और सरकार का कोई ध्यान नहीं है। प्राथमिक विद्यालय में कम से कम तीन शिक्षक होना चाहिए, जो एक से पांचवी तक के विद्यार्थियों को अच्छी तरह पढ़ा सके। और बच्चों की नींव मजबूत कर सके। 
हर स्कूल में हो पीने के पानी की व्यवस्था - 
                यह दुखद बात है कि प्रदेश के हजारों स्कूल ऐसे हैं, जहाँ शुद्ध पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रत्येक प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में बच्चों को शुद्ध पीने का पानी उपलब्ध करवाया जाना बहुत आवश्यक है। इसके अभाव में बच्चा मजबूरीवश गंदा पानी पीएगा और बीमार होगा। इसलिए सरकार का यह प्राथमिक दायित्व है कि वह हर स्कूल में पीने के पानी की समूचित व्यवस्था करें। 
शौचालय की हो हर स्कूल में व्यवस्था - 
                स्वच्छ भारत अभियान देश भर में चल रहा है। हर साल देश में नये आंकडे आ रहे है कि देश में इस साल इतने शौचालय की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। किंतु, यहाँ यह भी देखने की आवश्यकता है कि प्रदेश ही नहीं देशभर के प्राथमिक विद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों तथा हाईस्कूलों में बालक-बालिकाओं के लिए अलग अलग शौचालयों की सुविधा उपलब्ध हो। एक सर्वेक्षण में यह ज्ञात हुआ है कि जिन स्कूलों में बालिकाओं के लिए पृथक से शौचालय की व्यवस्था की गई है, वहाँ बालिकाओं की उपस्थिति में उल्लेखनीय ईजाफा हुआ है। इसलिए हर एक स्कूल में शौचालय की सुविधा प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। 
हर स्कूल का हो अपना भवन - 
                     अभी भी प्रदेश में कई जगह ऐसी हैं जहाँ एक या दो कमरों में प्राथमिक विद्यालय लग रहे हैं। अनेक माध्यमिक विद्यालय ऐसे हैं , जिन्हें प्राथमिक विद्यालयों का ही उन्नयन कर दिया गया है। किंतु, वहाँ माध्यमिक विद्यालय के अनुरूप भवन की सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई गई है। उसी प्रकार अनेक हाई सकूल ऐसे हैं, जहाँ पर उनका भवन नहीं है। और वे अपने पूर्व के माध्यमिक विद्यालय भवन में ही कक्षा लगा रहे है। इस कुव्यवस्था को भी सुधारने की जरूरत है। प्रत्येक प्राथमिक, माध्यमिक, हाईस्कूल और हायरसेकेंडरी स्कूलों की कक्षाओं के मान से भवन होना जरूरी है, तभी बच्चे सुविधापूर्वक विद्या अध्ययन कर सकेंगे। 
हर स्कूल के लिए हो शाला विकास फीस - 
                    अभी विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में भवन की समूचित व्यवस्था नहीं होने के कारण पालक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में भेजते हैं। अर्थात वे पैसे खर्च करके भी अपने बच्चें को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। सरकार के पास इतनी राशि नहीं होती है कि वे अपने स्त्रोत से प्रत्येक स्कूलों में समुचित शाला भवन, शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था और पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था कर सके। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी स्कूलों मे निजी भागीदारी हो। इसके लिए प्रत्येक स्कूल में बच्चों से विकास शुल्क लिया जाना चाहिए। जितना विकास शुल्क जनता से सरकार को मिले, उतनी ही राशि सरकार मिलाए और वहाँ उसी स्कूल के लिए दें, ताकि उससे आवश्कतानुसार विकास कार्य किए जा सके। करीब दो दशक पूर्व प्रदेश में यह व्यवस्था थी कि गांवों के विकास के लिए जनभागीदारी से जितनी राशि प्राप्त होती थी, उतनी ही राशि सरकार अपनी तरफ से मिलाकर देती थी। इससे विकास कार्य समुचित रूप से होता रहता था। हर बात के लिए सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ता था। अब इस ओर फिर से जनप्रतिनिधियों और सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। 
                     प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था सुव्यवस्थित हो और बच्चों की शिक्षा की नींव मजबूत हो, इसके लिए स्वयंसेवी संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं, जनप्रतिनिधियों और सरकार को एकसाथ आने की जरूरत है। यही समय की पुकार है। 
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