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दिनों दिन बढ़ता जा रहा कुपोषण से मौत का आंकड़ा


संदीप कुलश्रेष्ठ

 मध्यप्रदेश में प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रूपये खर्च करने के बावजूद बच्चों में कुपोषण बढ़ता जा रहा है। यही नहीं कुपोषण से होने वाली मौत का आंकड़ा भी दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। जहाँ जनवरी 2016 में प्रतिदिन कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या 74 थी , वहीं जनवरी 2018 में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 92 हो गई है। 
                   प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस ने हाल ही में विधान सभा में उक्त जानकारी एक प्रश्न के उत्तर में दी है। मजेदार बात यह भी है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 14 सितंबर 2016 को प्रदेश में कुपोषण की स्थिति जानने के लिए श्वेतपत्र तैयार करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की थी। लेकिन इस समिति ने अभी तक जांच के बिन्दुओं तक का निर्धारण नहीं किया है। यह सरकार की कुपोषण के प्रति गंभीरता को दर्शाता है। 
इस तरह बढ़ी औसत मृत्यु दर - 
                मध्यप्रदेश में पिछले दो साल में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या साल दर साल किस तरह से बढ़ी । आईये , उसके चौंकाने वाले आंकड़े देखते हैं। 1 जनवरी 2016 से 1 जनवरी 2017 के दौरान कुपोषण से मरने वाले पांच वर्ष तक के बच्चों की संख्या 28,948 रही और 6 वर्ष से 12 वर्ष तक के 462 बच्चों की भी मौत हुई। इस प्रकार कुल 396 दिन में 39,410 बच्चों की बेवक्त मौत हो गई । यानी इन 396 दिन में रोजाना 74 बच्चों की मौत हुई।
                 अप्रैल 2017 से सितंबर 2017 तक अर्थात 183 दिनों के दौरान एक वर्ष के 13,843 बच्चों की असमय मौत हो गई। वहीं 1 वर्ष से 5 वर्ष तक के 3055 बच्चों की भी मौते हुई । इस प्रकार कुल 16,898 बच्चों की मौत मात्र 183 दिन में हो गई। यानी प्रतिदिन 92 बच्चों की इस दौरान मृत्यु हुई। 
               अक्टूबर 2017 से जनवरी 2018 तक 1 वर्ष तक के बच्चों की जो मौतें हुई , उनकी संख्या 9,124 थी। वहीं 1 से 5 वर्ष तक के 2,215 बच्चों की भी असमय मौत हो गई। इस प्रकार कुल 11,339 बच्चों की मौत मात्र 123 दिनां में हुई। यानी उक्त अवधि में औसत प्रतिदिन 92 बच्चों की मौत हुई। 
9 जिले सबसे ज्यादा प्रभावित - 
                 प्रदेश के 9 जिलें ऐसे हैं, जिनमें सबसे अधिक कम वजन और अति कम वजन वाले बच्चें हैं। इन जिलों में आश्चर्यजनक रूप से भोपाल और इंदौर भी शामिल है। अन्य जिलों में धार, बड़वानी, सतना, शिवपुरी , मुरैना, श्योपुर और रतलाम जिलें शामिल है। इन जिलों में सरकार को सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है। 
मात्र 2 साल में 3300 करोड़ रूपये हुए खर्च -
                राज्य सरकार के पास कुपोषण पर खर्च करने के लिए राशि की कमी है , ऐसा नहीं है । मात्र 2 साल में ही राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में कुपोषण पर 3300 करोड़ रूपये की राशि खर्च की जा चुकी है । यह राशि सन 2016-17  और 2017-18 में आईसीडीएस, पोषण आहार, अटल बिहारी वाजपेयी आरोग्य एवं पोषण योजना पर खर्च की गई है। इसके बावजूद कुपोषण से होने वाली मौतों में कमी नहीं आ रही है। 10 सालों में सिर्फ कुपोषण मिटाने के लिए पोषण आहार की खरीदी पर ही 4800 करोड़ रूपये राज्य सरकार खर्च कर चुकी है। 
सम्मिलित रूप से कारवाई करने की जरूरत -
                             राज्य सरकार के महिला बाल विकास विभाग द्वारा ही कुपोषण मिटाने के लिए कार्य करना पर्याप्त नहीं होगा । इसके लिए सभी संबंधित विभागों को आगे आना होगा। इसके लिए महिला बाल विकास विभाग के साथ ही स्वास्थ्य विभाग की भी महती जिम्मेदारी है।  मुख्य रूप से इन दोनों विभागों को संयुक्त रूप से कुपोषण मिटाने का महाअभियान शुरू करना चाहिए । इसके साथ ही विभिन्न स्वयंसेवी एवं सामाजिक संगठनों को भी इस दिशा में आगे आने की जरूरत है। मात्र सरकार के भरोसे कुपोषण दूर नहीं किया जा सकता । सबके सम्मिलित प्रयास से ही प्रदेश से कुपोषण के दाग को मिटाया जा सकता है। 
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