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मुख्यमंत्री को लगेगी पेंशनरों की हाय


 

डॉ. चंदर सोनाने

राज्य शासन के विधानसभा में वित्त मंत्री ने कल बजट पेश करते हुए फिर पेंशनरों को निराशा दी है। उन्होंने एक जनवरी 2016 के पूर्व सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को पेंशन में सातवां वेतनमान देने का कोई खुलासा नहीं करते हुए देय पेंशन में मात्र 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी करना प्रस्तावित किया है। इस तरह से उन्होंने एक जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों की तुलना में 15 प्रतिशत कम पेंशन देने का निर्णय लिया है। राज्य शासन के इस निर्णय से पेंशनरों में गहरा असंतोष है। पेंशनरों की 15 प्रतिशत कम पेंशन देने के कारण पेंशनरों की हाय मुख्यमंत्री को निश्चित रूप से लगेगी। पेंशनरों को काफी समय से आस थी कि इस बजट में या चुनाव के पूर्व मुख्यमंत्री उन्हें भी एक जनवरी 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों के समान सातवां वेतनमान देने तथा 2.57 के फार्मूले के तहत पेंशन देने की घोषणा करेंगे, किंतु उन्हें एक बार फिर से हताशा मिली है।
                   मालवा में किसी को हाय लगने का अर्थ यह माना जाता है कि वह व्यक्ति सामने वाले को जिसने उसका नुकसान किया है, उसको दिल से बददुआ दे। पेंशनरों की 15 प्रतिशत पेंशन कम करने का मुख्यमंत्री का यह फैसला निसंदेह दुखदायी है। निश्चित रूप से इसके परिणाम मुख्यमंत्री के प्रतिकूल जाएंगे
                   मजेदार बात यह है कि राज्य सरकार ने एक जनवरी 2016 के बाद रिटायर्ड हुए कर्मचारियों को पेंशन में केंद्र के समान 2.57 का फार्मूला अपनाते हुए वृद्धि की है । किंतु एक जनवरी 2016 के पहले रिटायर्ड हुए कर्मचारियों के साथ नाइंसाफी की है। उन्हें केंद्र के समान पेंशन में वृद्धि नहीं करते हुए तथा सातवां वेतनमान नहीं देते हुए 15 प्रतिशत कम की वृद्धि करने का निर्णय लिया है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
                   मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के राजनैतिक एवं वित्तीय सलाहकार पता नहीं क्यों पेंशनरों के नुकसान के लिए जुट गए हैं ! एक तरफ से वे मुख्यमंत्री को अंधेरे में रख रहे हैं। शिवराज सरकार का चुनावी बजट दो लाख करोड रूपये का है । उसमें साढ़े तीन लाख सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पेंशन में से उनका हक मारना किसी के गले नहीं उतर रहा है। पेंशनरों को मिलने वाली राशि इतनी कम है कि यह बजट की तुलना में ऊंट के मुह में जीरे के बराबर है। 
                    अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर अनेक वर्षो तक देश में राज किया था। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार ने करीब एक दशक पहले फूट डालो और राज करो की नीति को अपनाना शुरू किया था। जब-जब केंद्र द्वारा महंगाई भत्ते में वृद्धि की जाती थी, तब-तब मध्यप्रदेश में कार्यरत हर तबके के कर्मचारी को एक साथ महंगाई भत्ता मिलता था। उन्होंने अखिल भारतीय सेवा वाले आईएएस , आईपीएस और आईएफएस के अधिकारियों को मध्यप्रदेश के अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों से दूर हटा दिया और यह व्यवस्था कर दी कि जब-जब केंद्र महंगाई भत्ता बढ़ाएगा, तब-तब मध्यप्रदेश के इन तीनों सेवा के अधिकारियों का महंगाई भत्ता स्वतः बढ़ जाएगा। किंतु राज्य के कर्मचारियों को इसका लाभ तब तक नहीं मिलेगा, जब तक काफी समय बितने के बाद कर्मचारियों की ओर से मांग और आंदोलन नहीं किया जाए। बढ़े हुए एरियर के भुगतान की भी कोई निश्चित व्यवस्था नहीं थी। कई बार उसकी बढ़ी हुई महंगाई भत्ते की राशि उसके जीपीएफ खाते में जमा की जाती रही है। 
                      एक बार फिर, शिवराज सरकार ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई है। राज्य सरकार ने एक जनवरी 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों को तो सातवें वेतनमान देने की घोषणा गत वर्ष ही कर दी है । इसके साथ ही उन्हें केंद्र के समान 2.57 का फार्मूला अपनाते हुए पेंशन भी देने के आदेश दे दिए है। किंतु एक जनवरी 2016 के पूर्व सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को अभी तक सातवां वेतनमान नहीं देना उनके साथ नाइंसाफी है तथा शिवराज सरकार का भेदभावपूर्ण निर्णय है। एक जनवरी 2016 के पहले रिटायर हुए करीब साढ़े तीन लाख पेंशनर अभी भी सातवें वेतन मान की घोषणा का इंतजार ही कर रहे हैं । इस बजट में भी उसकी कोई घोषणा नहीं हुई । केवल पेंशन में मात्र दस प्रतिशत की ही बढ़ोतरी प्रस्तावित की गई है। इस  प्रकार उन्हें एक जनवरी 2016 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों की तुलना में ही 15 प्रतिशत राशि का नुकसान होगा। यह मुख्यमंत्री का फूट डालो और राज करो ही कहा जाएगा। 
                      एक जनवरी 2016 के पहले रिटायर हुए साढ़े तीन लाख कर्मचारियों में से मोटे तौर पर करीब 80 प्रतिशत पेंशनर तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के हैं। शिवराज सरकार की सबसे ज्यादा मार इसी वर्ग पर पडेगी। शेष करीब 20 प्रतिशत अधिकारी द्वितीय श्रेणी और प्रथम श्रेणी के हैं । इन्हें भी 15 प्रतिशत का नुकसान सहना पडेगा। 
               एक जनवरी 2016 से पहले सेवानिवृत्त हुए पेंशनरों में गत फरवरी माह में गहरा असंतोष इस रूप में प्रकट हुआ कि प्रदेश के सभी जिलों में इन पेंशनरों ने आम सभा कर अपने जिले के कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन देकर उन्हें सातवां वेतनमान देने और केंद्र के समान 2.57 का लाभ देने का निवेदन किया था। बजट में उनकी मांग को नजरअंदाज किया गया है। अब यही पेंशनर इस मार्च माह में प्रदेश मुख्यालय भोपाल में इकट्ठे होकर प्रदेशव्यापी आंदोलन करने की व्यूहरचना बना रहे हैं। 
                मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को समझना चाहिए कि वे अपने वित्त सलाहकारों के झांसे में नहीं आएं। और सेवानिवृत्त कर्मचारियों में भेदभाव नहीं करते हुए 1 जनवरी 2016 के पहले रिटायर हुए कर्मचारियों को भी केंद्र के समान सातवां वेतनमान और 2.57 का फार्मूला के तहत पेंशन स्वीकृत करें। हाल ही में मध्यप्रदेश के कोलारस और मुंगावली में हुए उपचुनाव में भाजपा की हार से भी मुख्यमंत्री को सीख लेने की जरूरत है । उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कुछ महिनों बाद ही मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं । एक सेवानिवृत्त कर्मचारी परिवार का मुखिया होता है । एक परिवार में उस परिवार के मुखिया की 15 प्रतिशत राशि मारी जाएगी तो वो चुप नहीं बैठेगा। वह उठते-बैठते , सोते-जागते सरकार को कोसेगा। उसकी यही हाय कहीं शिवराज सरकार को 2018 के विधानसभा चुनाव में ना ले डूबे।
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