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7.34 लाख करोड़ का हो गया है सरकारी बैंकों का कुल एनपीए


डॉ. चंदर सोनाने

देश में सरकारी बैंकां का कुल एनपीए सितंबर 2017 के अंत तक 7 लाख 34 हजार करोड़ रूपये का हो गया है। इनमें से सरकारी बैंकों ने पिछले पांच वर्षो के दौरान ही 2,30,287 करोड़ रूपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया। अर्थात बैंकों ने अब इस राशि को वापस पाने की उम्मीद छोड़ दी है।
              लोकसभा के गत शीतकालीन सत्र में सीएन जयदेवन और के मरगथम के प्रश्न के लिखित उत्तर में वित्त राज मंत्री श्री शिवप्रताप शुक्ल ने उक्त जानकारी दी है। राजमंत्री ने आरबीआई का हवाला देते हुए कहा है कि वित्त वर्ष 2017-18 की पहली छहमाही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकां द्वारा 53,625 करोड़ रूपये की राशि को बट्टे खाते में डाल दिया है।
               वित्त विभाग द्वारा सरकारी बैंकों के 1,463 ऐसे खातों की पहचान की गई है, जिनमें 100 करोड़ या 100 करोड़ से ज्यादा का एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) है। अर्थात सिर्फ 1,463 खातों में ही बैंकां का 1,46,300 करोड़ या इससे भी अधिक रूपये फंसे हुए है। ये खाते 21 सरकारी बैंकों के है। सबसे ज्यादा एनपीए वाले खाते भारतीय स्टेट बैंक के है। एनपीए के ये आंकड़े सितंबर 2017 तक के है। कुल 1,463 खातों में से 265 खाते एसबीआई के है। एसबीआई के इन खातों में 77,538 करोड़ एनपीए की पहचान की गई है। सरकारी बैंकों में एसबीआई के बाद दूसरे नंबर पर पीएनबी का नंबर है। पीएनबी में ऐसे 143 खाते है, जिनमें सौ करोड़ या इससे अधिक की राशि के एनपीए है। पीएनबी के इन खातों में कुल 45,793 करोड़ बेड लोन के रूप में है। पीएनबी के बाद कैनरा बैंक में सबसे ज्यादा ऐसे खाते है। यूनीयन बैंक के ऐसे 79 खाते , ओरिएंटल बैंक के 68 खाते, और यूको बैंक के 62 खाते हैं, जिनमें हजारों करोड़ रूपये का एनपीए है।
               भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार सितंबर 2017 तक एनपीए का आकार 10,000 अरब रूपये यानी बैंक के कुल कर्ज का 10 प्रतिशत के आगे निकल गया है। बैंकों के सकल एनपीए अनुपात में 19.3 फीसदी वृद्धि हुई है। इसमें भी सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कार्पोरेट क्षेत्र की है। इसमें धातु, बिजली, इंजीनियरिंग, बुनियादी ढ़ांचा और निर्माण क्षेत्र प्रमुख है। बेसिक घातुओं और धातु उत्पादों के क्षेत्र का सकल एनपीए में 44.5 प्रतिशत हिस्सा रहा है। जबकि निर्माण क्षेत्र का 26.7 प्रतिशत, ढ़ांचागत क्षेत्र का 19.6 प्रतिशत और इंजीनियरिंग क्षेत्र का सकल एनपीए बढ़कर 31 प्रतिशत तक पहुंच गया है। मार्च 2018 तक बैंकों का सकल एनपीए 10.8 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है।
                बैंकां के साल दर साल बढ़ते जा रहे एनपीए को देखते हुए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इसमें यह भी देखा जाना जरूरी है कि बैंकों द्वारा उद्योगों से मिलीभगत तो नहीं की गई है ? इस कारण लाखों करेड़ रूपये हर साल बट्टे खाते में डाले जा रहे हैं। सरकारी बैंकों के सक्षम अधिकारियों की उद्योगों को दी जाने वाले बैंक लोन की भी जांच करने की आवश्यकता है। दिनों दिन बढ़ते जा रहा एनपीए बैंकों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। यही हालत रही तो एक समय ऐसा आएगा जब एनपीए अपनी सीमा लांघ जाएगा। ऐसी स्थिति आने के पहले ही इस पर लगाम रखने की आवश्यकता है। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली को इस दिशा में दीर्घकालीन और अल्पकालीन योजना बनाकर उसके क्रियान्वयन की सख्त आवश्यकता है।

 

 

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