देवी सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट कर उसे विवेक प्रदान करती है
देवी सरस्वती का प्राकट्य जीवन में पूर्ण सुविद्या का प्रकटीकरण
माँ सरस्वती हमारी चेतना में परिवर्तन को जागृत करती है
विवेक प्रदायनी माँ सरस्वती सुविद्या का प्रकटीकरण
बसंत पंचमी एवं सरस्वती पूजन का जानिए महत्व
(बसंत पंचमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ)
ऋतुराज या बसंत के मौसम की शुरुआत होती है - माघ शुक्ल पंचमी यानी 'बसंत पंचमी' के दिन से। इस दिवस को पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। बसंत पंचमी को 'श्री पंचमी' या 'विद्या जयंती' भी कहा गया। अर्थात विद्या की देवी 'सरस्वती' के जन्म अथवा प्राकट्य का दिन!
वागदेवी माँ सरस्वती वीणा-वादिनी थीं। उनके प्रकटीकरण के साथ ही सकल सृष्टि संगीतमय हो गई। 'सरस्वती' नाम में निहितार्थ भी तो यही है – सरस + मतुप् - अर्थात् जो रस प्रवाह से युक्त हैं, सरस हैं, प्रवाह अथवा गति वाली हैं। संगीत व शब्दमय वाणी को प्रवाहशील करके ज्ञान अथवा विद्या भरती हैं।
माँ सरस्वती का स्वरूप चतुर्भुज दर्शाया गया है। इन हाथों में सुशोभित चार अलंकार माँ शारदे की विद्या दात्री महिमा को ही उजागर करते हैं। ये अलंकार हैं- अक्षरमाला, वीणा, पुस्तक तथा वरद-मुद्रा। ये चारों अलंकार प्रत्यक्ष तौर पर विद्या के ही साधन हैं। वीणा 'संगीत विद्या' की प्रतीक है। पुस्तक 'साहित्यिक या शास्त्र विद्या' की प्रतीक है। अक्षरमाला 'अक्षरों या वर्णों' की श्रृंखलाबद्ध लड़ी है। ऋषियों ने कहा है- 'विद्या ददाति विनयं'- विद्या तुम्हें विनयशील या विनम्र बनाती है। प्लेटो ने भी कहा है - 'Knowledge is Virtue' - ज्ञान सद्गुण है। इसलिए विद्वत्ता के साथ सद वृतियों को भी धारण करो। वास्तव में, यही विद्या का पूर्ण और यथार्थ स्वरूप है। इसी सुविद्या की प्रतीक है, देवी सरस्वती। माँ सरस्वती का वरद मुद्रा में उठा हुआ हाथ इस दिव्य गुणवती विद्या का ही आशीष देता है। सरस्वती का प्राकट्य माने जीवन में पूर्ण सुविद्या का प्रकटीकरण। इसी बसंत पंचमी के बाद ऋतुराज बसंत का मनमोहक मौसम शुरू होता है। देखिये, इस पूरी प्रक्रिया में कितना दिव्य संकेत है! बसंत पंचमी के दिन, विद्या की देवी सरस्वती प्रकट हुईं; उनके प्रकट होते ही प्रकृति ने अपनी उग्रता छोड़ दी। पवन शीतल बनकर सब को अपने सौम्य-स्पर्श से सहलाने लगी। इसमें प्रेरणादायक शिक्षा है। जब हमारे भीतर विद्या जागृत हो, तो हमारी प्रकृति और प्रवृत्ति भी सौम्य हो जानी चाहिये। यही 'विद्या' का रहस्य है। विद्या केवल मस्तिष्क को नहीं जगाती। हमारी चेतना में परिवर्तन को भी जागृत करती है।
ऋग्वेद में ऋषि कहते हैं - माँ सरस्वती परम चेतना हैं, जो हमारी बुद्धि, प्रज्ञा और मनोवृत्तियों को सन्मार्ग दिखाती हैं। यदि ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ प्राप्त करके भी यह सद्चेतना भीतर नहीं जगी, तो समझ लेना चाहिये कि सच्ची विद्या हासिल नहीं हुई। माँ सरस्वती का आशीर्वाद नहीं मिला। जीवन में न तो आंतरिक बसंत पंचमी आई, न माँ शारदा का प्रकटीकरण हुआ और न ही ऋतुराज बसंत का! दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !!“माँ सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करें; हमें प्रकाशित बुद्धि और सुंदर मेधा से युक्त करें”