माघी चतुर्थी का व्रत दूर करता है मनुष्य के तीनों ताप, पढ़ें पौराणिक कथा
माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तिलकुंद/तिलकूट चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत 20 व 21 जनवरी को मनाया जा रहा है।
इस दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढ़ने का विशेष महत्व माना गया है। पौराणिक गणेश कथा के अनुसार, एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिवजी के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे।
देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। मगर, गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने में तो लंबा समय लगेगा।
तब गणेश अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा।
इस पर श्रीगणेश ने कहा कि 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' माता पृथ्वी से बड़ी है और पिता आकाश से भी ऊंचे हैं, इसलिए मैंने आप दोनों की परिक्रमा की। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी।
इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि आज से आप प्रथम पूज्य होंगे और चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करके रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।
इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।