सूर्य की ऊर्जा के महत्व का पर्व है मकर संक्रांति
हमारे देश में मकर संक्रांति के पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है यानी कि पृथ्वी का उत्तरी गोलार्धा सूर्य की तरफ चला जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, हालांकि प्रन्येक राज्य में इसे मनाने का तरीका जुदा भले ही हो, लेकिन सब जगह सूर्य की उपासना जरूर की जाती है।
14 जनवरी को जब पृथ्वी से 109 गुना विशाल सूर्य देव सात छंदों यानी अपने सप्त अश्व गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति से संचालित अपने नौ हजार योजन विराट रथ पर सवार होकर धनु राशि से निकल कर अपनी स्वयं की प्रथम राशि मकर में प्रविष्ट होंगे, उनकी अगवानी उनके परम शत्रु शुक्र और केतु कर रहे होंगे। सूर्य के धनु से निकलकर मकर में प्रविष्ट होने के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। इसलिए इसे उत्तरायण भी कहते हैं।
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं, एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है, हालांकि कुल 12 सूर्य संक्रांति हैं, लेकिन इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख होती है।
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति
सूर्यदेव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचते हैं तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है, उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है, यही नहीं कई जगहों पर तो मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खिचड़ी दान करने का भी विधान है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड का प्रसाद भी बांटा जाता है। कई जगहों पर पतंग उडाने की भी परंपरा है।
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते हैं। उत्तरायण देवताओं का अयन है। ऐसा माना जाता है कि एक वर्ष दो अयन के बराबर होता है और एक अयन देवता का एक दिन होता है। 360 अयन देवता का एक वर्ष बन जाता है। सूर्य की स्थिति के अनुसार वर्ष बन जाता है। सूर्य की स्थिति के अनुसार वर्स के आधे भाग को अयन कहते हैं, अयन दो होते हैं क्क उत्तरायण और दक्षिणायन...। सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात् गमन को उत्तरायण कहा जाता है।
इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है। खरमास में मांगलिक काम करने की मनाही होती है, लेकिन मकर संक्रांति के साथ ही शादी-ब्याह, मुंडन, जनेऊ और नामकरण जैसे शुभ काम शुरू हो जाते हैं। मान्यताओं की मानें तो उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। धार्मिक महत्व के साथ ही इस पर्व को लोग प्रकृति से जोड़कर भी देखते हैं जहां रोशनी और ऊर्जा देने वाले भगवान सूर्य देव की पूजा होती है।
पूजा विधि
भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। तिल को पानी में मिलाकर स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।
तिथि नहीं तारीख
हमारी परंपरा में यही एक ऐसा त्योहार है जो हर साल लगभग एक ही तारीख पर आता है। दरअसल यह सोलर केलैंडर के आधार पर मनाया जाता है। दूसरे त्योहारों की गणना चंद्र केलैंडर के आधार पर होती है। यह साइकल हर आठ साल में एक बार बदलती है और तब यह त्योहार एक दिन बाद मनाया जाता है।
कई जगह यह भी गणना की गई है कि 2050 से यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। फिर हर आठ साल में 16 जनवरी को। इस बार भी उदया तिथि 15 जनवरी को होने की वजह से मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी।
इस दिन तिल और गुड़ का खास महत्व है। तिल और गुड़ दान देने और खाने का संबेध खेती और सेहत दोनों से जोड़ा जाता है। धूप का सेवन करने के लिए पतंग से बेहतर और क्या माध्यम हो सकता है।