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किसी भी दुर्घटना की पहली जिम्मेदारी संबंधित विभाग की ही होनी चाहिए


संदीप कुलश्रेष्ठ

इंदौर के डीपीएस बस हादसे के बाद सहज ही यह प्रश्न खड़ा होता है कि जब दुर्घटना हो जाती है तब संबंधित विभाग चेतता है और कुछ खानापूर्ति कर बात ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है। क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी भी दुर्घटना की पहली जिम्मेदारी संबंधित विभाग की ही होना चाहिए । उदाहरण के लिए इंदौर के डीपीएस बस हादसे की पहली जिम्मेदारी आरटीओ की होना चाहिए। इसके बाद दोषी पाये जाने वाले हर एक व्यक्ति के विरूद्ध कारवाई अवश्य की जानी चाहिए।
                   इंदौर की डीपीएस बस हादसे ने अनेक सवाल खड़े कर दिए है। इस दुर्घटना में चार मासूम बच्चों की मौके पर ही मौत होने से उनके परिवार शोक में डूबे हुए है। साथ ही वे शासन और प्रशासन के विरूद्ध आक्रोश से भी भरे हुए हैं। मुख्यमंत्री शोकग्रस्त परिवार के घरों में शोक व्यक्त करने गए तब शोकग्रस्त परिवार के लोगों ने जमकर उन्हें खरीखोटी सुनाई। और दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध कारवाई करने के लिए कहा।

मजिस्ट्रेट जांच आरंभ -
                   मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के शोक संतप्त परिवारों को सांत्वना देने के साथ उन्होंने पीड़ित परिवारों को आश्वस्त भी किया कि दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कारवाई जरूर की जाएगी। उन्होंने मजिस्ट्रियल जाचं करवाने की भी घोषणा की। अब जांच के बाद ही पता चलेगा कि दुर्घटना का वास्तविक कारण क्या था।
आरटीओ के विरूद्ध होनी चाहिए सख्त कारवाई -
                    डीपीएस बस के दुर्घटनाग्रस्त होने के कई कारणों में एक कारण यह भी पता चला है कि आरटीओ द्वारा फिटनेस प्रमाण जारी किया गया था, किंतु गाड़ी फिट ही नहीं थी। संबंधित परिवहन विभाग के क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी एम पी सिंह की जांच होनी चाहिए। उसे वर्तमान में इंदौर से हटाकर अन्यत्र भेज दिया गया है। यह पर्याप्त नहीं है। उसने फर्जी दस्तावेज के आधार पर बस को फिट भी बताया था। इसके साथ ही जैसे ही उसे दुर्घटना की जानकारी मिली उसने निजी क्षेत्र के टेक्निकल व्यक्तियों को लेकर एक कमेटी बना दी, जबकि निजी क्षेत्र के लोगों की कमेटी बनाने का कोई प्रावधान ही नहीं है। उसने घटना में दोषी होने से बचने के लिए अपने बचाव के लिए यह कारवाई की थी। इस कारण सबसे पहले क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी के ऊपर ही कार्यवाही की जानी चाहिए। साथ ही स्पीड गर्वनर लगाने वाले व्यक्तियों के विरूद्ध भी सख्त कारवाई करने की आवश्यकता है, जिसने अपना काम ठीक से नहीं किया। नियमों के अनुसार स्कूल बस की अधिकतम गति 40 किलो मीटर प्रति घंटा होना चाहिए और इसी के हिसाब से स्पीड गर्वनर भी लगा होना चाहिए था। जबकि दुर्घटना के समय बस की गति 70 प्रति किलोमीटर से भी अधिक थी। इसी कारण बस अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त हुई थी।  
लापरवाह स्कूल प्रबंधन के खिलाफ भी हो कारवाई -
                  डीपीएस स्कूल की ही बस बच्चों को लाने ले जाने का काम करती थी। इस बस की फिटनेस की जिम्मेदारी भी स्कूल प्रबंधन की ही थी। उनके द्वारा बस फिट नहीं होने पर भी बस को चलाए जाना भी गलत था। इसलिए स्कूल प्रबंधन की भूमिका की भी जांच करने की आवश्यकता है।
15 साल से पुरानी स्कूल बसें हटेंगी -
                     मुख्यमंत्री ने इंदौर के डीपीएस बस हादसे के संबंध में कहा कि मप्र में 15 साल से पुरानी बसें नहीं चलेगी। वर्तमान में प्रदेश में स्कूल बसों की संख्या 17400 है। इनमें से 2514 बसें 15 साल से ज्यादा पुरानी है। आगामी तीन माह में सभी बसें बदलने का समय दिया गया है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि अभी वर्तमान में बसों की फिटनेस मैन्युअल होती है, जिसमें गड़बड़ियों  की संभावना होती है। अब हर जिले में ऑटोमैटिक फिटनेस सेंटर बनाए जाएंगे। इससे मैन्युअल हस्तक्षेप नहीं रहेगा, जिससे निष्पक्ष रूप से बसों की फिटनेस जांची जा सकेगी।
नागरिकों की भी हो जिम्मेदारी -
                   स्कूल बस  दुर्घटना के संदर्भ में यह बात भी गौर करने लायक है कि आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं के बाद भी नागरिक जिनके बच्चें इन बसों में या ऑटों या टैम्पों में सफर करते है उन पर पालक ध्यान नहीं देते हैं। उनकी भी जिम्मेदारी है कि वे बस या ऑटों या टैम्पों में बैठने जा रहे अपने बच्चों के जीवन की जिम्मेदारी समझे और बस के फिटनेस सर्टिफिकेट स्पीड गर्वनर आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहें। यही नहीं ऑटो या टैम्पों से स्कूल भेजने वाले बच्चों के अभिभावक की भी जिम्मेदारी है कि इन वाहनों के पास फिटनेस सर्टिफिकेट है या नहीं , ऑटों या टैम्पों में निर्धारित संख्या से ज्यादा बच्चों को तो नहीं बैठाया जा रहा है, यह देखें। यदि ऑटो या टैम्पों वाला ऐसा करता है तो अपने बच्चे को उसमे नहीं बैठाना चाहिए और उसकी शिकायत भी करना चाहिए। स्कूल भेजने के काम आने वाले वाहनों के ड्राइवर के बारे में पूरी जानकारी भी पालकों को होनी चाहिए। बच्चों की सुरक्षा में उनकी भी अहम जिम्मेदारी है यह उन्हें समझना चाहिए।
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