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शैव महोत्सव में द्वादश ज्योतिर्लिंग के प्रतिनिधि शामिल होंगे


उज्जैन । आगामी 5, 6 एवं 7 जनवरी को उज्जैन में शैव महोत्सव आयोजित किया जा रहा है। इस महोत्सव में समस्त बारह ज्योतिर्लिंगों के प्रतिनिधि, साधु-सन्त एवं विद्वान मौजूद रहेंगे। शैव महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य विश्व स्तर पर द्वादश ज्योतिर्लिंग के महत्व को प्रसारित करना है। साथ ही हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं दर्शन पर गहन विचार-मंथन, चिन्तन कर समसामयिक सन्दर्भों में इसको प्रतिपादित करना, धर्म संस्थानों की गरिमा के अनुरूप वेदोक्त पूजा पद्धति की साम्य के साथ निरूपण करना है। शैव महोत्सव में पूजा पद्धति व कर्मकांड, व्यवस्था एवं प्रबंधन तथा सामाजिक समरसता एवं सामाजिक कार्यों पर भी विस्तृत चिन्तन-मनन होगा। आदिकाल से राष्ट्रीय चेतना के केन्द्र रहे शैव एवं वैष्णव देवस्थान के गौरव की पुनर्स्थापना पर मंथन करते हुए आध्यात्मिक मनोभाव के साथ धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श किया जायेगा।
    शैव महोत्सव के अन्तर्गत 5, 6 एवं 7 जनवरी को चार स्थलों पर शैव दर्शन आदि पर परिचर्चाएं आयोजित की जाएंगी, जिनके लिये चार पीठें बनाई गई हैं। ये पीठ हैं- सनातन व्यासपीठ, स्वामी सन्तदास उदासीन आश्रम नृसिंह घाट, सनक व्यासपीठ श्री बालमुकुन्द आश्रम झालरिया मठ, श्री सनन्दन व्यासपीठ श्री बालमुकुन्द आश्रम झालरिया मठ और सनत कुमार व्यासपीठ श्री महाकालेश्वर प्रवचन हॉल महाकाल मन्दिर।
द्वादश ज्योतिर्लिंग का विवरण
श्री महाकालेश्वर- अवन्तिकापुरी के अधिष्ठाता भगवान महाकालेश्वर एकमात्र दक्षिणाभिमुखी स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जो भक्तजनों के मुक्तिप्रदाता एवं अप्रत्याशित अकाल मृत्यु से सुरक्षा कवच प्रदान करने वाले हैं। उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मन्दिर में विराजित भगवान महाकाल व्यष्टि, समष्टि की समग्रता का आधार होकर भक्तों के आराध्य एवं शुभ संकल्प के सिद्धिदायक हैं।
श्री सोमनाथ- श्री सोमनाथ सौराष्ट्र गुजरात के प्रभास क्षेत्र में विराजमान हैं। इस प्रसिद्ध मन्दिर को अतीत में अनेक बार ध्वस्त एवं निर्मित किया गया है।
श्री मल्लिकार्जुन- आन्द्रप्रदेश प्रान्त के कुर्नुल जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इन्हें दक्षिण का कैलाश कहते हैं।
श्री ओंकारेश्वर- निमाड़ क्षेत्र के खंडवा जिले में श्री ओंकारेश्वर नर्मदा नदी के मध्य मांधाता पर्वत पर विराजित हैं। ओंकार ममलेश्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है।
श्री केदारनाथ- हिमालय के उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलखनंदा के तट पर श्री बद्रीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मंदाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं।
श्री भीमाशंकर- श्री भीमाशंकर मुम्बई से पूर्व और पुणे से उत्तर में भीमा नदी के किनारे सहयाद्री पर्वत पर स्थित हैं।
श्री विश्वनाथ- वाराणसी उत्तर प्रदेश स्थित काशी के विश्वनाथ भी सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। गंगा तट पर स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिन्दूओं के लिये सबसे पवित्र है।


श्री त्र्यंबकेश्वर- महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले में ब्रह्मगिरी के निकट गोदावरी के किनारे श्री त्र्यंबकेश्वर विराजित हैं। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है।
श्री वैद्यनाथ- महाराष्ट्र के परभणी के पास परली ग्राम के निकट श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है।
श्री नागेश्वर- श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग श्री औन्ढा नागनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में हिंगोली जिले में स्थित है। इसका निर्माण कार्य महाभारतकालीन माना जाता है।
श्री रामेश्वरम- श्री रामेश्वर तीर्थ तमिलनाड़ु प्रान्त के रामनाड़ जिले में है। यहां लंका विजय के बाद भगवान श्री राम ने आराध्य देव भगवान शंकर की पूजा स्थापना की थी।
श्री घुश्मेश्वर- इस ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर या घुसृणेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रान्त में औरंगाबाद जिले में बेरूल गांव के पास स्थित है।

 

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