एवरेस्ट से ज्यादा कठिन महाकाल दर्शन : मंदिर में अव्यवस्थाएँ
संदीप कुलश्रेष्ठ
एवरेस्ट फतेह करने वाली विश्व की पहली दिव्यांग महिला के रूप में विश्व भर में चर्चित अरूणिमा का उज्जैन महाकाल मंदिर दर्शन करते समय अपमान किया गया । उन्हें न तो ठीक से दर्शन करने दिए गए ओर न ही दिव्यांगों को सुविधा देने वाले प्रथम मंदिर के रूप में हाल ही में चर्चित हुए मंदिर में उन्हें दिव्यांग होने के नाते कोई सुविधा दी गई।
अरूणिमा की दिव्यांगता मजाक बनी -
अरूणिमा सिन्हा ने उज्जैन में महाकाल दर्शन नहीं होने की पीड़ा सोमवार को टव्ीट कर जाहिर की। पीएम और सीएम को टैग कर अरूणिमा ने अपने ट्वीट में लिखा कि मुझे एवरेस्ट जाने में इतनी तकलीफ नहीं हुई जितनी उज्जैन के महाकाल मंदिर जाने में हुई । यहाँ मेरी दिव्यांगता मजाक बनी। अरूणिमा का ट्वीट जल्दी ही देश भर में चर्चित हो गया। मध्यप्रदेश सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस ने उज्जैन के संभागीय आयुक्त से दो दिन में अरूणिमा के साथ हुई घटना की जांच कर रिपोर्ट देने के निर्देश दिये हैं। साथ ही उन्होंने मंदिर में दिव्यांगों के लिए अच्छी व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है। वे स्वयं भी अरूणिमा के प्रकरण से दुखी होकर जल्द ही महाकाल मंदिर स्टाफ से बात भी करेंगी। साथ ही वे अरूणिमा से मिलकर उन्हें फिर मध्यप्रदेश आने का न्यौता भी देंगी।
मंत्री की अतिथि के रूप में उज्जैन आई थी अरूणिमा -
इस प्रकरण में खास बात यह रही कि अरूणिमा बुरहानपुर में मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस के पिता की स्मृति में हुए कार्यक्रम में पहुंची थी। वहां से लौटते समय मंत्री की अतिथि के रूप में उन्होंने भस्मारती के लिए बुकिंग करवाई थी। अरूणिमा जब रविवार को मंदिर पहुंची तो उन्हें गर्भगृह तक नहीं जाने दिया गया। तर्क दिया गया कि वह लोअर टीशर्ट पहने थी। उनसे कहा गया कि बिना साड़ी के अंदर प्रवेश नहीं होगा । अरूणिमा ने दिव्यांग होने का हवाला दिया, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई । जबकि आए दिन इसी ड्रेस में महिलाओं को दर्शन करते हुए सहज ही देखा जा सकता है।
अरूणिमा ने दुखी होकर कहा -
अपने साथ हुए दुर्व्यवहार से दुखी होकर अरूणिमा ने कहा कि मुझे मंदिर प्रशासन के रवैये से बहुत दुख पहुंचा है। मैने खुद को दिव्यांग बताते हुए दर्शन करने की बात कही , लेकिन वहाँ के स्टाफ ने कहा कि ऐसे बहुत आते हैं। अरूणिमा का कहना है कि अगर मंदिर में सिर्फ साड़ी पहनने वाले को ही भस्मारती में प्रवेश दिया जाता है तो उसकी जानकारी ना तो मंदिर की वेबसाइट पर है और ना ही मंदिर के बाहर बोर्ड पर । भगवान ने मुझे दिव्यांग होते हुए एवरेस्ट भेजा। जहां पहुंचने की आम आदमी सोच भी नहीं सकता । लेकिन मंदिर में वहां के स्टाफ ने मुझे दर्शन से ही रोक दिया। मैनें तो भगवान से शिकायत कर दी है अब भगवान ही उन्हें सजा देगा।
दिव्यांगों को दर्शन की आदर्श व्यवस्था पर हाल ही में मिला है पुरस्कार -
इस मामले में मजेदार बात यह है कि महाकाल मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष एवं कलेक्टर श्री संकेत भोंडवे को महाकाल मंदिर में दिव्यांगों को दर्शन की आदर्श व्यवस्था करने पर इसी महीने दिल्ली में राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसकी प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में भी चर्चा हुई थी। उसकी जानकारी अरूणिमा को भी थी। शायद इसीलिए उन्होंने कहा कि पीएम और सीएम से पूछुँगी कि दिव्यांगों के नाम पर क्यों सुर्खियां बटोरते हो , जबकि वास्तव में उनके लिए कोई सुविधा है ही नहीं। इसी से दुखी होकर जाते समय अरूणिमा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा कि जहाँ साक्षात शिव रहते हैं, वहाँ पर्वत पर चढ़ने में मुझे इतनी दिक्कत नहीं हुई , जितनी यहाँ दर्शन में हुई।
शुरू से ही बुलंद हौसले की रही है अरूणिमा -
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित उत्तरप्रदेश के अंबेडकर निवासी अरूणिमा ने अपनी जीवटता से अलग मुकाम हासिल किया है। वे वहाँ कि फुटबॉल और वालीवॉल टीम में खेलती थी । लेकिन सन 2011 में लखनऊ से दिल्ली जाते समय ट्रेन में बदमाशों ने लूटपात की । विरोध करने पर बदमाशों ने अरूणिमा को ट्रेन से नीचे फेंक दिया था। इस हादसे में उनका एक पैर कट गया, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी और पर्वतारोहण को अपना लक्ष्य बनाया तथा एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया।
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