प्रदेश की 41 नदियों में शिप्रा सबसे ज्यादा मैली, सुधार के लिए कारगर प्रयास जरूरी
संदीप कुलश्रेष्ठ
सिंहस्थ में मोक्ष की कामना से जिस शिप्रा नदी में करोड़ो लोगों ने डुबकियां लगाई उसकी स्थिति अब ये हो गई है कि वहां आचमन तक नहीं किया जा सकता । वर्तमान में इसकी भयावह स्थिति यह है कि प्रदेश की सभी नदियों में शिप्रा सबसे ज्यादा मैली है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हाल ही में की गई समीक्षा के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि प्रदेश की 41 नदियों में से शिप्रा सबसे ज्यादा मैली हैं। यही नहीं गऊघाट, सिद्धवट और रामघाट पर शिप्रा का पानी स्नान लायक भी नहीं है। स्थिति में शीघ्र सुधार की अत्यंत आवश्यकता है।
मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का खुलासा -
मध्यप्रदेश की सभी प्रमुख 41 नदियों में अक्टूबर 2017 में मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की समीक्षा के दौरान अनेक चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। शिप्रा नदी में जहाँ सबसे अधिक श्रद्धालुगण स्नान करते हैं , उन रामघाट , गऊघाट और सिद्धवट पर शिप्रा का पानी नहाने योग्य भी नहीं बचा है। इसके साथ ही त्रिवेणी के भी एक किलोमीटर के क्षेत्र में शिप्रा नदी के पानी में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा हुआ पाया गया है। दुखद बात यह है कि इन्हीं घाटों पर सोमवती , शनिचरी अमावस्या व अन्य पर्वों पर स्नान होता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आकर स्नान करते है।
नर्मदा सबसे शुद्ध नदी -
मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी का जल अभी भी सबसे शुद्ध जल है। यह सुखद बात है। नर्मदा के 23 स्थानों पर किए गए परीक्षण के आधार पर नर्मदा में डीओ की स्थिति 7 से 8 , एफसी की स्थिति मात्र 1 से 2 और टीसी की स्थिति 30 से 40 के बीच पाई गई है। बीओडी 2 से भी कम पाया गया है। नर्मदा का पानी सबसे शुद्ध होने का सबसे बड़ा कारण उसका प्रवाहमान होना है। इसके अलावा प्रदेश में खरगौन की कुंदा नदी, जावरा की मलेनी नदी, सुजालपुर और राजगढ़ की नेवज नदी और बदनावर के पास माही नदी की स्थिति भी शुद्धता के मामले में बेहतर पाई गई है।
प्रदेश की तीन नदियों में प्रदूषण की स्थिति -
अक्टूबर 2017 में मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मॉनिटरिंग के अनुसार आंकडे निम्नानुसार है-
क्षेत्र | डीओ | बीओडी | एफसी | टीसी | क्वालीटी स्तर |
शिप्रा नदी | |||||
गऊ घाट पर | 7 | 10 | 500 | 1600 से अधिक | संतोषजनक नहीं |
सिद्धवट पर | 6.6 | 12 | 500 | 1600 से अधिक | संतोषजनक नहीं |
रामघाट पर | 6.9 | 8 | 500 | 1600 से अधिक | संतोषजनक नहीं |
त्रिवेणी एक किमी क्षेत्र में | 6.8 | 8 | 300 | 1600 से अधिक | संतोषजनक नहीं |
महिदपुर में | 7.2 | 2.8 | 170 | 900 | संतोषजनक |
देवास में | 7.2 | 2 | 4 | 40 | संतोषजनक |
खान नदी | |||||
सांवेर में | 3.8 | 6 | 6 | 500 | संतोषजनक नहीं |
कबिटखेड़ी में | 1.5 | 15 | 170 | 1600 | संतोषजनक नहीं |
शकरखेड़ी में | शून्य | 14 | 17 | 350 | संतोषजनक नहीं |
चंबल नदी | |||||
नागदा से एक किमी क्षेत्र में | शून्य | 22 | 350 | 1600 से अधिक | संतोषजनक नहीं |
ऐसे समझें नदियों में प्रदूषण की स्थिति -
डीओ - डिसॉल्व ऑक्सीजन यानी घुलित ऑक्सीजन। इसका स्तर 4 मिली ग्राम प्रति लीटर या अधिक होना चाहिए। चंबल और खान में यह स्तर कम है। शिप्रा में इसका स्तर ठीक है।
बीओडी- बॉयलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड। इसका स्तर 3 मिली ग्राम प्रतिलीटर से कम होना चाहिए लेकिन शिप्रा में गऊघाट, सिद्धवट, रामघाट व त्रिवेणी से एक किमी क्षेत्र में स्तर दो से चार गुना तक बढ़ा है। चंबल और खान में भी इसका स्तर बढ़ा हुआ है। बीओडी का बढ़ना यानी यहां प्रदूषण स्तर बढ़ा हुआ है।
एफसी - फीकल कोलीफॉम यानी मल में पनपने वाले बैक्टीरिया या मल पदार्थ का अवशिष्ट। इसका मोस्ट प्रोबेबिलिटी नंबर प्रति 100 मिलीलीटर में 2500 से कम होना चाहिए । खान और चंबल में यह काफी कम है लेकिन शिप्रा में यह स्टैंडर्ड से तो कम है लेकिन नदी के पानी में संक्रमण, खुजली व अन्य रोगों का खतरा रहता है।
टीसी- टोटल कोलीफॉम यानी मानव शरीर से निकले मल पदार्थ के जीवाणु। टीसी का एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर में 5 हजार से कम होना चाहिए। शिप्रा में 1600 से अधिक है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री ध्यान दें-
प्रदेश की सभी 41 नदियों में से सबसे खराब स्थिति शिप्रा नदी की पाई जाना खतरे की घंटी है। शिप्रा नदी सभी नदियों में सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यह इस मामले में खास मायने रखता है कि सभी प्रमुख तीज त्यौहारों पर हजारों श्रद्धालु पतीत पावन शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करने की लालसा में यहाँ आते हैं। किंतु शिप्रा नदी का इस हद तक प्रदूषित होना श्रद्धालुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ ही कहा जा सकता है। इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि वे शिप्रा नदी को प्रदूषण मुक्त करवाने के लिए विशेष अल्पकालीन और दीर्घकालीन योजनाएँ बनाएँ तथा उसका शीघ्र क्रियान्वयन भी करवाएँ, ताकि हर तीज, त्यौहार व 12 वर्ष में उज्जैन में एक माह के लिए लगने वाले सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालु शिप्रा में डुबकी लगाकर सही मायने में पुण्य प्राप्त कर सकें।
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