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महाभारत काल में हनुमानजी की ये कहानियां नहीं सुनी होंगी आपने



रामायण में हनुमानजी की भूमिका अहम रही है। मगर, कम ही लोग जानते हैं कि महाभारत काल में भी हनुमानजी का वर्णन हुआ है। दो अहम मौकों पर आकर हनुमान जी ने पांडवों का साथ दिया है। पहली बार उन्होंने भीम की शक्ति के अभिमान को तोड़कर उन्हें घमंड न करने की सलाह दी थी। जानें क्या था पूरा मामला...

एक बार द्रोपदी ने भीम से कहा कि आप महान वीर हैं। मुझे गंधमादन पर्वत पर पाए जाने वाला एक विशेष कमल का पुष्प चाहिए। क्या आप मुझे वह पुष्प लाकर दे सकते हैं? भीम ने द्रोपदी का आग्रह मान लिया। मगर, वे पुष्प गंधर्वों के थे। उन पुष्पों को पाने के लिए भीम और गंधर्वों के बीच भयंकर युद्ध हुआ अंत में भीम युद्ध जीतने के बाद पुष्प लेकर चल दिए। उन्हें अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया।

वे कुछ दूर चले ही थे कि मार्ग में एक वृद्ध वानर मिला। भीम ने वानर से कहा- तुम्हारी पूंछ मेरे मार्ग में आ रही है, इसे तुरंत हटा लो। वानर ने कहा, भाई आप तो महान बलशाली लगते हैं। मैं वृद्ध और कमजोर वानर हूं और अपनी पूंछ हटाने में असमर्थ हूं। आप ही मेरी पूंछ हटाकर आगे बढ़ जाइए। भीम सोचने लगे, विचित्र वानर है, अपनी पूंछ भी नहीं हटा सकता! परंतु मुझमें तो अपार शक्ति है। इसने मेरी शक्ति को ललकारा है। मैं अभी इसकी पूंछ को हटा देता हूं।

भीम अपनी भरपूर शक्ति का उपयोग करके भी पूंछ को हिलाने में असर्मथ रहे। तब भीम ने हार मान ली और बोले, आप कोई मामूली वानर नहीं हैं। मैं आपकी शक्ति को प्रणाम करता हूं और जानना चाहता हूं कि आप कौन हैं? तब हनुमानजी अपने वास्तविक स्वरूप में आए। उन्होंने भीम को आशीर्वाद दिया और कभी भी अपनी शक्ति का अभिमान न करने के लिए कहा। हनुमानजी से यह सबक सीखकर भीम को अपनी त्रुटि का ज्ञान हुआ। उन्होंने कभी घमंड न करने का वचन दिया और हनुमानजी को प्रणाम कर आगे चले गए।

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