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मीराबाई जी ने कुरुतिओं का अंत कर समाज को दिया नया आकार


 

 मीराबाई जी ने संघर्षपूर्ण जीवन में ज्ञान द्वारा किया कुप्रथाओं का अंत

 भगवान श्री कृष्ण ने कालियानाग मर्दन कर गोकुल को किया विषमुक्त

शाश्वत भक्ति स्व-परिवर्तन से समाज परिवर्तन का मार्ग

ब्रह्मज्ञान द्वारा ही सुव्यवस्थित समाज का पुननिर्माण संभव

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा समय समय पर अध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है! इसी श्रृंखला में दिल्ली के दिव्य धाम आश्रम में मासिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया! गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं द्वारा सरस मधुर भजन व प्रेरणास्पद प्रवचनों के माध्यम से भक्त श्रद्धालुगणों को अध्यात्मिक विचारों से लाभान्वित किया|

साध्वी तपेश्वरी भारती जी ने भगवान श्री कृष्ण की कालियानाग मर्दन लीला के बारे में बताया कि जब यमुना नदी कालियानाग के विष से विषैली हो चुकी थी, तब भगवान श्री कृष्ण ने कालियानाग का मर्दन कर उसे  विषमुक्त करने के बाद उस पर आनंद नृत्य किया था! यह लीला हमें समझाना चाहती है कि आज मनुष्य का मन भी पंच विकारों के विष से भरा हुआ है और उसके विकारों के विष से समाज विषैला हो चुका है! जिस प्रकार जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल के ग्रामवासिओं को कालियानाग के भय से मुक्त कर आनंद प्रदान किया, ठीक इसी प्रकार जब जीव के जीवन में पूर्ण संत का पदार्पण होता है तो वह उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उसके विकारों का हरण कर उसे शाश्वत आनंद प्रदान करते है, और फिर जब एक शिष्य गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण कर भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता है, तो वह स्व-परिवर्तन कर विश्व परिवर्तन के महान कार्य में अपना सहयोग देता है!

इतिहास में भक्तिमती मीराबाई जी का उदाहरण आता है जिन्होंने संघर्षपूर्ण जीवन में भक्ति की चिर स्थायी अवस्था को प्राप्त किया था| कार्यक्रम में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के स्वयंसेवकों द्वारा मीराबाई जी पर एक विशेष नाटिका प्रस्तुत की गई| मीराबाई जी जिनका जन्म 16वी सदी में राजस्थान के मेड़ता में हुआ| उन्होंने राजस्थान की मरूभूमि को प्रभु की ज्ञान गंगा में भिगोया और जीवन में बचपन से लेकर अंतिम श्वास तक संघर्ष किया और जो लोग धर्म के नाम पर आडम्बर को ही धर्म समझ बैठे थे और कुप्रथाओं की  अज्ञानता में ही भ्रमित थे, उनकों ज्ञान की तलवार प्रदान कर कुरुतिओं का अंत किया|

इतिहास साक्षी है कि जिसने भी अव्यवस्थित समाज को सुव्यवस्थित आकार देना चाहा, पहले उन अध्यात्मिक क्रांतिकारी सेनानिओं ने सर्वप्रथम गुरु आज्ञा में बंधकर, स्व परिवर्तन से ही समाज का निर्माण किया! अंत में स्वामी अदित्यानंद जी ने बताया कि ईश्वर हर युग में धरा पर अवतार लेते है, और अनेकों लीलाओं के माध्यम से समाज का पुन: निर्माण करते है, परन्तु जो जीव उस अवतारी पुरुष को जान कर, उनके दिव्य कार्यों में अपना सहयोग देते है वह अपना आत्मिक उत्थान तो करते ही है तथा समाज को भी परम सुखमय ऊँचाईयों तक ले कर जाते है!

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