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गीता का अवतरण दिवस है - गीता जयंती



हमारे पौराणिक साहित्य में गीता को ज्ञान के स्रोत के रूप में देखा जाता है। गीता में जीवन के कई सिद्धांत और कई प्रश्नों का उत्तर मिलता है। गीता बताती हैं कि हम सब हर काम के तुरंत नतीजे चाहते हैं, लेकिन धैर्य के बिना अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। गीता असल में जीवन का ग्रंथ है। यह न केवल ग्रंथ है बल्कि पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है।
गीता धार्मिक ग्रंथ नहीं है। यह दार्शनिक ग्रंथ है और इसमें मानवता के बारे में बात कही गई है। गीता के अट्ठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म और कर्म का ब्यौरा है इसमें। इसमें सतयुग से कलयुग तक के मनुष्य के कर्म और धर्म के बारे में चर्चा की गई है। गीता के श्लोकें में मनुष्य जाति का आधार छिपा हुआ है। मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका धर्म क्या है, इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की धरती पर किया था।

भगवद्गीता के पठन-पाठन श्रवण और मनन-चिंतन से जीवन में उदारता का उद्भव होता है। गीता केवल लाल कपड़े में बांधकर घर में रखने के लिए नहीं, बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। गीता का चिंतन अज्ञानता को दूरकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है।

हमारी पूर्वज हमें कहते हैं कि मानव का जन्म दुर्लभ और अमूल्य है। यह हमें इसलिए नहीं मिला है कि हम सिर्फ इसे भोग-विलास में ही बिता दें। मनुष्य जन्म का कुछ हिस्सा जगत के कार्य-व्यापार से बचाकर भक्ति और ईश्वर सेवा में भी अर्पित करना चाहिए।

अध्यात्म और धर्म की शुरुआत ही सत्य, दया और प्रेम के साथ संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता मरना सिखाती है तो यही जीवन को धन्य भी बनाती है। यह न सिर्फ धर्म-ग्रंथ है यह दर्शन भी है और ज्ञान भी है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की तरफ ले जाती है। यह हमें दुख से उबरकर समदृष्टा होने की सीख देती है।

मोक्षदा एकादशी व्रत

ब्रह्म पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता-जयंती के नाम से जानी जाती है। इसके बारे में कहा गया है कि शुद्धा, विद्धा और नियम आदि का निर्णय करने के बाद मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में मूंग की दाल और जौ की रोटी का एक बार भोजन करके द्वादशी को फिर भोजन करें।

भगवान का पूजन करें और रात्रि जागरण करके द्वादशी को एकादशी का पारण करें। यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ है।

गीता का जन्म

गीता-जयंती के दिन ही महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने भ्रमित अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन को श्रीमद् भगवद् गीता के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। महाभारत काल में कुरुक्षेत्र के भयावह युद्ध से पहले गीता का जन्म हुआ था। उस युद्ध में भाई समाने भाई ही शस्त्र लिए खड़ा था। वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था।

उस युद्ध में अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई और गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उसका गांडीव हाथों से छुटने लगा, उसके पैर कांपने लगे। उसने युद्ध करने में स्वयं को असमर्थ पाया, तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जो कहा उसे ही गीता कहा गया है। श्रीकृष्ण ने ही अर्जुन को कर्म और धर्म की परिभाषा समझाई। उसे निभाने के लिए प्रेरित किया।

कैसे मनाई जाती है गीता-जयंती

1 - भगवत गीता का पाठ किया जाता है।

2 - देश भर के कृष्ण मंदिरों में भगवान कृष्ण और गीता की पूजा की जाती है। भजन और आरती होती है।

3 - गीता के विशेषज्ञ गीता का सार कहते हैं। कई जगह गीता पर वाद-विवाद का आयोजन होता है।

4 - मोक्षदा एकादशी होने की वजह से इस दिन व्रत किया जाता है।

5 - गीता के उपदेश पढ़े और सुने जाते हैं।

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