अयोध्या में राम मंदिर और लखनऊ में मस्जिद, इससे बनी रहेगी देश में सद्भावना
डॉ. चंदर सोनाने
उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन श्री वसीम रिजवी ने सुझाव दिया है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने और लखनऊ में मस्जिद। और इस मस्जिद का नाम न बाबर के नाम हो और न मीर बाकी के नाम, बल्कि इस मस्जिद का नाम ’मस्जिद ए अमन’ रखा जाना चाहिए। उनके इस सुझाव में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि जी ने भी अपनी सहमति दी है। इस सुझाव को मानने से अयोध्या , उत्तरप्रदेश और देश में सद्भावना बनी रहेगी। यह एक अच्छा सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है। इसे सभी पक्षों को स्वीकार करना चाहिए।
शिया वक्फ बोर्ड का यह प्रयास अयोध्या विवाद को शांतिपूर्ण ठंग से सुलझाने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। बोर्ड ने आपसी सुलह का पांच बिन्दुओं का मसौदा तैयार कर लिया है। इस मसौदे को 18 नवंबर को बोर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश भी कर दिया गया। इस प्रस्ताव पर हनुमानगढ़ी के महंत धर्मदास, राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास , राम जन्मभूमि न्यास के रामविलास वेदान्ती, दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास और विहिप के मार्गदर्शक डॉ. रामेश्वरदास ने भी अपनी सहमति जताई है। यह सराहनीय प्रयास है।
सुप्रीम कोर्ट मे बोर्ड द्वारा जो पाँच बिन्दुओं का मसौदा पेश किया गया है। वह इस प्रकार है- शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड मंदिर निर्माण के लिए पूरी जमीन देने को तैयार है। हिन्दू समाज को यह अधिकार होगा कि वह इस भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण कराएँ। इसमें भविष्य में भी शिया वक्फ बोर्ड को कोई आपत्ति नही होगी। अयोध्या के सभी धार्मिक परिक्रमाओं की सीमा के बाहर लखनऊ में हुसैनाबाद स्थित घंटाघर के सामने नजूल की भूमि पर मस्जिद का निर्माण कराया जाए। सरकार से यदि मस्जिद के लिए लखनऊ में नजूल की जमीन मिलती है तो शिया वक्फ बोर्ड इसके निर्माण के लिए एक कमेटी का गठन करेगा। यह मस्जिद शिया वक्फ बोर्ड अपने स्त्रोत और निर्धारित शर्तो के आधार पर बनाएगा।
शिया वक्फ बोर्ड ने जो मसौदा तैयार किया है , उसके लिए उसने महत्वपूर्ण तर्क भी दिए है। ये तर्क उल्लेखनीय है। विवादित मस्जिद बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में 1528-29 में बनवाई थी। मीर बाकी शिया मुस्लिम थे। इसलिए उसके मुतवल्ली मीर बाकी के बाद उनके परिवार के अन्य लोग 1945 तक रहे। यह सभी शिया मुस्लिम थे। इसी बीच 26 फरवरी 1944 को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक अधिसूचना जारी करते हुए अपने अभी लेखों में इसे अवैध रूप से पंजीकृत कर लिया। सिविल जज फैजाबाद ने एक वाद में 26 फरवरी 1944 को जारी अधिसूचना खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने भी इसे अवैध माना था। इसलिए यह शिया समुदाय की वक्फ संपत्ति है।
उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुप्रीम कोर्ट में दिए गए उक्त मसौदे के संबंध में यह कहा है कि अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए अब मध्यस्था का कोई तुक नहीं है। इस मामले में हाईकोर्ट का फैसला सन 2010 में आया था। सात वर्षो में कोई मध्यस्था करने क्यों नहीं आया ? अब जब 5 दिसंबर से सुप्रीम कोर्ट में इसकी नियमित सुनवाई होनी है तो मध्यस्थता के बजाय फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अब ऐसी पहल के लिए बहुत देर हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उक्त बयान जल्दीबाजी में दिया हुआ और राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है। उन्हें अपने बयान पर पुनर्विचार करना चाहिए। और देश की सद्भावना के लिए इस मसौदे का स्वागत करना चाहिए।
इधर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के उच्चतम न्यायालय में पेश किए गए प्रस्ताव को हास्यास्पद बताते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के श्री जिलानी ने कहा है कि विवाद में जिसकी कोई कानूनी हैसियत नही है उसके इस तरह के मसौदे का क्या मतलब ? श्री जिलानी का उक्त बयान भी संकीर्ण दृष्टिकोण का परिचायक कहा जा सकता है । उन्हें व्यापक हित में सोचना चाहिए।
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को शिया वक्फ बोर्ड के उक्त मसौदे पर गंभीरतापूवर्पक न केवल विचार करना चाहिए , बल्कि देश में सद्भावना बनी रहे इस दिशा में गौर करते हुए शिया वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव का समर्थन भी करना चाहिए। इससे दोनों धर्मो के अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं को संतुष्टि भी मिलेगी और उपयुक्त जगह पर मंदिर व मस्जिद दोनों बन जाएंगे। सभी राजनीतिक दलों को भी इस प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए आगे आने की जरूरत है।
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