सरकार और व्यापारियों के बीच फुटबॉल बन गए हैं किसान
संदीप कुलश्रेष्ठ
गत रविवार को देवास में मध्यप्रदेश सकल अनाज दलहन तिलहन व्यापारी महासंघ समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कृषि उपज मंडी में उपज लेकर आए किसानों को फिलहाल 50 हजार रूपये नगद नहीं दिए जाएंगे। बैठक में यह भी तय हुआ कि प्रदेश का कोई भी व्यापारी किसानों को 10 हजार रूपये से ज्यादा नगद राशि का भुगतान नहीं करेगा। दूसरी और प्रदेश के मुखिया श्री शिवराज सिंह चौहान ने गत सप्ताह ही यह ऐलान किया था कि प्रदेश के किसानों को उनकी उपज को बेचने पर उसे 50 हजार रूपये तक की राशि नगद दी जाएगी। और शेष राशि उसके बैंक खाते में जमा कर दी जाएगी। एक सप्ताह भी नहीं हुआ कि व्यापारियों ने मुख्यमंत्री के निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाना शुरू कर दी है। किसान, सरकार और व्यापारियों के बीच फुटबॉल बन गए है।
मुख्यमंत्री के आदेश की व्यापारी उड़ा रहें धज्जियाँ -
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिह चौहान ने किसान हितैषी सरकार होने का दावा करते हुए किसानों को आश्वस्त किया था कि किसानों को कोई परेशानी नहीं आने दी जाएगी। किंतु घोषणा के बाद से ही प्रदेश में अनेक जगह किसान और व्यापारियों के बीच झड़प और मारपीट तक होने की शिकायत चारों और से निरंतर आ रही हैं। मुख्यमंत्री ने 50 हजार रूपये तक की राशि नगद देने के ऐलान के पूर्व व्यापारियों से कोई चर्चा नहीं की और न ही उन्हें विश्वास में लिया । उसी का दुष्परिणाम यह हुआ है कि मुख्यमंत्री के आदेश की धज्जियाँ प्रदेश में चारों और उड़ रही है।
आयकर विभाग 50 हजार नगद राशि देने के संबंध में दें स्पष्ट निर्देश -
अनाज तिलहन व्यवसायी संघ के सचिव श्री जितेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि पहले प्रदेश सरकार आयकर विभाग से यह स्पष्ट करवाए कि 50 हजार रूपये तक नगद देने पर संबंधित व्यापारी के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की जाएगी। आयकर विभाग द्वारा इस संबंध में पत्र भी जारी किया जाना चाहिए। महासंघ ने प्रदेश के सभी अनाज तिलहन व्यवसायी संघ के अध्यक्ष को 10 हजार रूपये से अधिक की नगद राशि किसानों को नहीं देने के लिए निर्देश भी दिए है।
उल्लेखनीय हैं कि मुख्यमंत्री के किसानों को 50 हजार रूपये तक नगद राशि देने की घोषणा करने के बाद प्रदेश भर में किसान उपज लेकर जब मंडियों में जा रहे है और व्यापारियों से 50 हजार रूपये तक की राशि नगद देने की मांग करने लगे है तब से किसानों और व्यापारियों के बीच आए दिन विवाद और मारपीट की बात होने लगी है। इस संबंध में व्यापारियों का स्पष्ट कहना है कि वें जितनी चाहे राशि देने को तैयार है, लेकिन पहले इस संबंध में आयकर विभाग की ओर से उन्हें छूट मिल जाएँ।
किसानों को भुगतना पड़ रहा परिणाम -
उधर सरकार ये झूठा प्रचार कर रही है कि भावांतर भुगतान योजना में प्रदेश की करीब 80 प्रतिशत कृषि उपज मंडियों में 50 हजार तक का नगद भुगतान हो रहा है। इस संबंध मे ंसरकार का यह भी कहना है कि आयकर विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि व्यापारी कृषक से कृषि उपज खरीदने के एवज में उसे 50 हजार रूपये तक का भुगतान नगद करता है तो इस नगद व्यवहार लेन देन को आयकर अधिनियम 1961 एवं आयकर नियम 1962 का कोई उल्लंघन नहीं माना जाएगा। किंतु आयकर विभाग और व्यापारियों के बीच इस संबध में कोई सामंजस्य नहीं है और न ही कोई संवाद है । इसका परिणाम किसानों को भुगतना पड़ रहा है।
राज्य सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए देश में पहली बार लागू की गई मुख्यमंत्री भावातंर भुगतान योजना में पंजीकृत सभी किसानों को इसका लाभ मिलने का दावा किया जा रहा है। किंतु किसान भ्रमित हो रहे है कि उनकी फसल नॉन एफ.ए.क्यू है, और कम दाम में बिकी है तो उन्हें भावांतर भुगतान योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इस संबंध में प्रदेश के कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजोरा द्वारा वीडियो कान्फ्रेंस में यह बात स्पष्ट की गई कि मंडी में किसी भी भाव में कृषि उपज नीलाम होगी तो सरकार भावांतर भुगतान योजना में अंतर की राशि का भुगतान करेगी।
किसानों और व्यापारियों को विश्वास में लें सरकार -
उल्लेखनीय हैं कि 16 अक्टूबर से 31 दिसंबर तक मध्यप्रदेश का कृषि उपज का मॉडल मूल्य तथा दो प्रांत महाराष्ट्र और राजस्थान की उपज का मूल्य अर्थात मध्यप्रदेश सहित तीनों राज्य के मॉडल मूल्य पर एक मॉडल मूल्य का निर्धारण किया जाएगा। इसके समर्थक मूल्य से अंतर की राशि का भुगतान किसानों को भावांतर भुगतान योजना के अंतर्गत किया जाएगा।
राज्य सरकार द्वारा किसानों के हित में भावांतर योजना अच्छी बनाई गई है, किंतु समय समय पर मुख्यमंत्री और राज्य सरकार द्वारा की गई घोषणा और उसके क्रियान्वयन के संबंध में व्यापारियों को भी विश्वास में लेना था, जो नहीं किया गया । इसी कारण भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है। किसानों को न तो व्यापारी पर विश्वास है और न ही व्यापारियों को सरकार पर विश्वास है । इसका परिणाम किसान को भुगतना पड़ रहा है। अतः राज्य सरकार को चाहिए कि वह तुरंत किसानों और व्यापारियों को विश्वास में लें, ताकि किसानों और व्यापारियों के बीच फैला भ्रम दूर किया जा सके।
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