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अतिथि देवो भवः की परम्परा पर दाग लगना


-ललित गर्ग-
अतिथि देवो भवः तो हम सदियों से कहते आए हैं लेकिन अतिथि के साथ हम क्या -क्या करते हैं, किस तरह हम इस आदर्श परम्परा को धुंधलाते हैं, किस तरह हम अपनी संस्कृति को शर्मसार करते हैं, इसकी एक ताजा बानगी स्विट्जरलैंड से आए एक युगल के साथ हुई मारपीट एवं अभद्र घटना से सामने आयी है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि पर्यटन पर्व के दौरान फतेहपुर सीकरी में इस युगल को पीट-पीटकर अधमरा किया गया और लोग मदद करने के बजाय उनकी फोटो खींचते रहे। यह ठीक है कि इस घटना के बाद संबंधित अफसर से लेकर मंत्री तक दुख जताने के साथ कठोर कार्रवाई की बात कह रहे हैं, लेकिन जरूरत इसकी है कि हमारी राष्ट्रीयता एवं अतिथि को देव मानने के भाव को शर्मसार करती ऐसी घटनाओं को रोकने के ठोस उपाय किए जाएं। संस्कृति को तार-तार करने वाली इस घटना को पूरा राष्ट्र अत्यंत विवशता एवं निरीहता से देख रहा है। कब तक हम संस्कृति एवं परम्परा का यह अपमान एवं अनादर देखते रहेंगे? कब हम सुधरेंगे? कब टूटेगी हमारी यह मूच्र्छा? नैतिकता का तकाजा है कि हमारा कोई आचरण ऐसा न हो जो किसी भी विदेशी मेहमान की भावना को ठेस पहुंचाए या उसके साथ हिंसा करें।
देश को शर्मसार करने वाली यह घटना उस वक्त की है, जब यह युवा जोड़ा- क्वेंटिन जर्मी क्लर्क (24) और उनकी मित्र मैरी ड्रोज (24) आगरा के पास फतेहपुर सीकरी में रेलवे ट्रैक के किनारे चल रहा था, तभी बदमाशों ने उन पर हमला कर दिया। आरोप है कि पर्यटकों पर पत्थर बरसाने के साथ ही उन्हें डंडों से पीटा गया। इससे क्वेंटिन के सिर और कान के पास गंभीर चोटें आयी एवं फ्रैक्चर हुआ है, जबकि मैरी ड्रोज के हाथ में चोट लगी थी। खून से लथपथ दोनों पर्यटक काफी देर तक वहां पड़े रहे थे, तड़पते रहे, कोई भी उनकी सहायता के लिये आगे नहीं आया। क्लर्क का आरोप है कि हमलावर उनके साथ सेल्फी लेने की कोशिश कर रहे थे। काफी दूर तक वे दोनों का पीछा करते रहे। मैरी ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो हमलावर अश्लील टिप्पणी करने लगे। उन्होंने मैरी के साथ छेड़छाड़ भी की। दोनों ने इसका विरोध किया तो उन्होंने हमला कर दिया। दोनों को सड़क पर घायल देखकर भी वहां मौजूद लोग पुलिस को जानकारी देने के बजाय उनका वीडियो बनाते रहे। काफी देर बाद कुछ लोगों ने उनको पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया। वहां से उन्हें आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। पीड़िता ने पत्थर मारने वालों के फोटो सीकरी पुलिस को दिए थे। इसके आधार पर पुलिस ने पांच आरोपियों की पहचान कर तत्परता से उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। यह घटना चार दिन बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगरा में ताजमहल दौरे के दिन सामने आई। इस युगल को प्राथमिक उपचार के बाद दिल्ली के अपोलो लाया गया।
इस घटना ने अनेक गंभीर सवाला खड़े किये हैं, आखिर पर्यटन पुलिस क्या करती है और पर्यटन के चुनिंदा ठिकानों पर भी पर्यटकों को ठगने-लूटने का सिलसिला क्यों नहीं थम रहा? क्यों विदेशी पर्यटकों को घूरा जाता है? क्यों भारत की छवि विदेशियों के बीच असामान्य बनी है? विदेशी मेहमानों विशेषकर महिला पर्यटकों पर क्यों कुनिगाहें डाली जाती है? क्यों उन पर कमेंट पास किये जाते? क्यों नहीं भारत के लोगों पर विदेशी विश्वास करते? आज जब पर्यटन रोजगार और राजस्व का बड़ा जरिया है तब फतेहपुर सीकरी जैसी घटनाएं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने सरीखी ही हैं। इन दुर्भाग्यपूर्ण एवं अतिश्योक्तिपूर्ण स्थितियों को विदेशी भारत का कल्चर मानने लगे हैं, इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी? भारत में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मनाए जा रहे पर्यटन पर्व के समारोह के समापन पर इस तरह की हिंसक, अराजक एवं त्रासद घटना का होना गंभीर चिन्ता का विषय है। यह हम भारतीयों के लिए शर्मिदगी की बात है। यह सामान्य तौर पर कानून व्यवस्था का मामला हो सकता है, लेकिन ऐसी घटना आत्ममंथन का अवकाश चाहती है। न संस्कृति आसमान से उतरती है, न व्यवस्था धरती से उगती है। इसके लिये पूरे राष्ट्र का एक चरित्र बनना जरूरी है। अन्यथा हमारा प्रयास अंधेरे में काली बिल्ली खोजने जैसा होगा, जो वहां है ही नहीं।
गौरतलब है कि नरेन्द्र मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही पर्यटन को बढ़ावा देने की हरसंभव कोशिश कर रही है। इसके लिए लगभग डेढ़ सौ देशों के पर्यटकों के लिए ई-वीजा की सुविधा भी शुरू की गई है। पर्यटन पर्व के दौरान सरकार ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि पिछले तीन सालों में किस तरह से विदेशी पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन राजनीति करने वाले एवं सत्ता पर काबिज लोगों को सोचना होगा कि दुनिया में भारत की संस्कृति एवं परम्परा पर लगने वाले इन दागों को कैसे धोए? अतिथि देवो भवः कोरा शब्द नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति है, सम्यता है, कला है, प्रेम है, इतिहास है, विरासत है। जो सभी काले पड रहे हंै।  ऐसा प्रदूषण तब घना हो जाता है जब हम किसी विदेशी अतिथि की हिंसा करते, उस पर अश्लील कमेंट पास करते, उनको ठगते हैं।
    हम राष्ट्रीयता के नाम पर कभी गौवध को अनुचित मानते है, कभी राष्ट्रगान एवं ध्वज की अनिवार्यता के लिये आन्दोलन करते हैं, कभी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते हैं, लेकिन संस्कृति इन सबसे ऊपर बहुत ऊपर है, जिसके प्रदूषित होने का अर्थ है राष्ट्र का अस्तित्व एवं अस्मिता ही धुंधला जाना। क्या भारत अब अतिथि देवो भवः वाला देश नहीं है? वर्षों से हमारे देश के लिए कही जा रही इस संस्कृत की उक्ति पर ढंग से विचार करने का समय आ गया है।
    जब किसी पश्चिमी देश से ये खबर आती है कि कोई भारतीय उपेक्षा या किसी हिंसा का शिकार हुआ है तो शायद हममें से सभी इसे भावनात्मक रूप से लेते हैं। हमें बुरा लगता है कि हमारे देश का कोई व्यक्ति दूर देश में किसी मुश्किल का शिकार हो रहा है या मुसीबत में है। कई बार गुस्सा भी आता है। जरूरत है कि अब हमें उतना ही दुख अपने देश में विदेशी टूरिस्ट या नागरिकों के साथ होने वाली हिंसा पर भी हो। सामान्य तौर पर होता भी है। जब भी अपने देश में किसी टूरिस्ट या विदेशी के साथ मारपीट की घटना होती है बहुत से लोग इसका प्रतिकार भी करते हैं। लेकिन थोड़े-थोड़े समय बाद इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण घटनाओं का होना दुखद हैं। हमें पर्यटन को केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि संस्कृति की दृष्टि से देखना होगा। एक आचार संहिता निर्मित करनी होगी और उसके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जानी जरूरी है जिसमें विदेशी पर्यटकों-मेहमानों के साथ हमारे व्यवहार को सुनिश्चित किया जाए। आमिर खान भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये राजदूत बने, वे जब अतिथि देवो भवः के रूप में बोलते थे तो देश में व्यवहार सुधारने की ही बात करते थे। वे  भारत में लोगों के इधर-उधर थूकने की आदत पर भी तंज करते दिखाई दिए थे। वे सारे तंज हम भारतीयों के व्यवहार सुधारने के लिए थे। व्यवहार काफी सुधरा भी है। लेकिन स्विस जोड़े को पत्थरों और डंडे से पीटने की घटना ने एक बार फिर शर्मसार कर दिया।
हमारी भारतीय संस्कृति की यह परम्परा रही है कि हम अपने अतिथियों को देवतुल्य मानते हैं और अपनी सामथ्र्य के अनुसार उनके स्वागत सत्कार और अभ्यर्थना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। अतिथियों के साथ सज्जनता से व्यवहार करना, उनकी आवश्यकताओं को समझ कर उनको पूरा करने के लिये प्रयत्नशील रहना, उनके मान- सम्मान और उनकी सुख-सुविधा का ध्यान रखना और उनके लिये यथासम्भव एक सुखद और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराना ही अब तक हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता रही है और आज भी होनी चाहिये। लेकिन कहीं-न-कहीं इन मूल्यों का विघटन होने के कारण से विश्व बिरादरी के सामने हमें अक्सर शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत एक अत्यंत वैभवशाली और समृद्ध देश है। यहाँ के छोटे से छोटे गाँव या कस्बे से भी अतीत के गौरव की अनमोल गाथायें गुँथी हुई हैं। यहाँ के कण-कण में पर्यटकों को लुभाने और मोहित कर लेने की अद्भुत क्षमता है। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत एक विकासशील देश है और यहाँ की अर्थ व्यवस्था में पर्यटन व्यवसाय का बहुत अधिक महत्व है। यदि हम अपने देश में आने वाले पर्यटकों का विशिष्ट ध्यान रखें, उन्हें भारत भ्रमण के समय सम्पूर्ण निष्ठा और सद्भावनापूर्ण सहयोग के साथ उनकी सहायता करें तो इस व्यवसाय की आय में चार चाँद लग सकते हैं। यदि वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को साकार करना है तो इस विचार को भी आत्मसात करना होगा कि विश्व के हर देश के लोग हमारे अतिथि हैं और हमें उन्हें वही आदर मान देना होगा जो एक अतिथि को दिया जाता हैं। तभी हमारे देश का गौरव बढ़ेगा, पर्यटकों की संख्या में भी आशातीत वृद्धि होगी, कमर टूटते पर्यटन व्यवसाय को भी सहारा मिलेगा और साथ ही देश की अर्थ व्यवस्था में भी कुछ सुधार आयेगा और तभी हमारी संस्कृृति गौरवान्वित होगी।

 

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