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गाय का पंचगव्य कई प्रकार के रोगों की रामबाण औषधि - साध्वी सुमेधा भारती जी


गौ भारतीय संस्कृति का आधार पुंज – साध्वी सुमेधा भारती जी

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा अजमल खाँ पार्क, करोल बाग, दिल्ली में सात दिवसीय गोकथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। जिसके प्रथम दिवस में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री सुमेधा भारती जी ने गाय के सम्बन्ध में हैरानी जनक तथ्य श्रद्धालुओं के आगे प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि गाय का दूध,  दूध नहीं बल्कि दवा है। उसका पंचगव्य कई प्रकार के रोगों का उपचार करता है। टी.बी., कैंसर जैसे भयंकर रोगों की रामबाण औषधि है गाय का मूत्र। लेकिन भारतीय जन मानस इस बात से अनभिज्ञ है कि यह सभी गुण किस गाय के दूध में पाये जाते हैं। आज तो अधिकतर विदेशी गाय के दूध का प्रचलन है। लेकिन इस गाय को हमारे शास्त्र माता का दर्जा नहीं देते। माँ तो वह है जो अपने दुग्धामृत के माध्यम से रोगों का उपचार करे। परन्तु विदेशी गाय का दूध रोगों का उपचार करने की जगह रोगों को मानव शरीर में न्यौता देता है। न्यूज़ीलैण्ड के वैज्ञानिक कीथ वुड फोर्ड इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि जर्सी, एच एफ इत्यादि गाय के दूध में B.C.M.7 एक हानिकारक तत्त्व पाया जाता है। जिसे उन्होंने राक्षस की संज्ञा दी। जो टाइप वन डायब्टिज़ तथा अन्य भयंकर रोगों का जनक है।

                अंग्रेजों ने जब भारतीय संस्कृति में गौ का महत्व देखा तो उन्होंने हमारी समृद्धि पर कुठाराघात करने के लिए देसी गाय के विरूद्ध भ्रामक प्रचार प्रसार किया। उनकी भ्रामक बातों का प्रभाव ऐसा हुआ कि भारतीय लोग साधिका जैसी अपनी गाय माता को अपने घरों से निकाल कर जर्सी को प्रार्थमिकता देने लगे। घर से बाहर निकाली गई हमारी माता की अंग्रजों द्वारा कत्लखानों में बलि दी जाने लगी तथा वह उसके मांस का भक्षण करने लगे। आज भी हमारे देश में जो गायें काटी जाती हैं, उनका मांस महँगे दामों में विदेशी में निर्यात हो रहा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि हमारे ही देश में हमारी ही गाय माता की बलि दी जा रही है और हम मौन हैं। हमें जागृत होना पड़ेगा। लेकिन कैसे? मात्र खाली भाषणों से मानव समाज में जाग्रति का शंखनाद नहीं किया जा सकता। जाग्रति की सही विधि है ब्रह्मज्ञान। क्योंकि मानव बाहर से नहीं, भीतरी स्तर पर सोया हुआ है। उसके भीतर ईश्वर व आत्मा होने की बात हमारे शास्त्र कहते हैं। आवश्यकता है उस ईश्वर को जानने की। जो पग-पग पर मानव का सही मार्ग दर्शन कर सके। लेकिन यह तभी संभव हो सकता है, जब ईश्वर को देखने की आँख प्राप्त होगी। वह आँख सभी के पास है। जिसे तीसरा नेत्र कहा जाता है। उसे उद्घाटित करने की क्षमता केवल समय के पूर्ण सतगुरु के पास ही है। अतः जो ज्ञान दीक्षा के माध्यम से घट में ही ईश्वर के दिव्य स्वरूप का दर्शन करवा दे, वही ब्रह्मनिष्ठ गुरु है। उन्हीं की शरण प्रत्येक जीव को ग्रहण करनी चाहिए।

                कथा के तहत श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं ने सुमधुर भजनों के माध्यम से उपस्थित श्रद्धालुगणों को आनन्द विभोर किया। कथा का समापन विधिवत प्रभु की पावन आरती के साथ किया गया।

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