राजस्थान सरकार का फैसला लोकतंत्र के खिलाफ
संदीप कुलश्रेष्ठ
राजस्थान सरकार ने हाल ही में एक अध्यादेश जारी कर भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को सुरक्षा देने एवं संरक्षण देने का प्रयास किया है। अध्यादेश के अनुसार अफसरों के खिलाफ केस दर्ज करने से पहले सरकार से मंजूरी लेना जरूरी होगा। इससे भ्रष्ट अफसरों के हौंसले बढ़ेंगे और उन पर कोई अंकुश नहीं रह पाएगा। इस आदेश ने मीडिया को भी नहीं छोड़ा है। उसे भी अपनी चपेट में ले लिया है।
उल्लेखनीय है कि जज, मजिस्ट्रेट और लोकसेवकों के खिलाफ परिवाद पर सज्ञांन, पुलिस जांच या मीडिया रिर्पोटिंग से पहले सरकार से मंजूरी लेने के लिए राजस्थान की सरकार द्वारा गत 8 सितंबर को ही सीआरपीसी में संसोधन के लिए अध्यादेश लागू किया गया है। चुंकि अध्यादेश की अवधि छह माह होती है और इसी बीच विधानसभा सत्र आने पर उसे पटल पर रखना अनिवार्य होता है। इसलिए राजस्थान सरकार इस अध्यादेश को विधानसभा में भी ला रही है। इसी सोमवार से विधानसभा सत्र शुरू हो रहा है।
आदेश का चौतरफा हो रहा विरोध -
अध्यादेश के अनुसार अब राजस्थान राज्य में मजिस्ट्रेट, जज और लोकसेवकों के खिलाफ कोई भी प्रकरण बिना सरकार की अनुमति के दर्ज नहीं हो पाएगा। इसके लिए सरकार की अनुमति आवश्यक होगी। मीडिया पर भी बिना सरकार की अनुमति के इस संबंध में खुलासा करने पर पाबंदी लगा दी गई है। इसका चौतरफा विरोध हो रहा है। भाजपा सरकार के इस निर्णय का खुलकर कांग्रेस विरोध कर रही है।
राजस्थान सरकार के गृहमंत्री श्री गुलाबचंद्र कटारिया ने इस संबंध में सफाई देते हुए कहा है कि इस अध्यादेश से अफसरों को बेवजह की परेशानी से निजात मिल सकेगी। उनका यह भी कहना है कि इनका मकसद किसी भी अफसर को बचाना नहीं है, बल्कि ऐसे लोगों को केस दर्ज करने से रोकना है जो अपनी प्रसिद्धि के लिए बड़े अफसरों के खिलाफ झूठे प्रकरण दर्ज करवा देते हैं।
मीडिया को भी ले लिया चपेट में -
भ्रष्ट अफसरों को बचाने के लिए राजस्थान की सरकार द्वारा मीडिया और अदालत को ही नहीं आम आदमी को भी पूरी तरीके से दायरे में बांध दिया गया है। कहीं सुनवाई नहीं होने पर वह अपनी पीड़ा सोशल मीडिया पर भी उजागर नहीं कर पाएगा। अभियोजन की स्वीकृति से पहले यदि किसी व्यक्ति ने किसी अफसर का नाम सोशल मीडिया पर उछाला तो उसे 2 साल की सजा हो सकती है। सरकार ने इस कानून में इस तरह के प्रावधान किए है कि वो जिस अफसर को चाहेगी, उसे बचा लेगी और जिस अफसर से नाखुश होगी, उसके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति दे देगी।
राजस्थान सरकार के इस अध्यादेश के विरूद्ध राजस्थान के नागरिक अधिकार समूह (पीयूसीएल) ने राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना न्यायाधीश और बाबुओं को बचाने वाले राजस्थान सरकार के इस अध्यादेश को रद्द करने की मांग की है। पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) की प्रदेश अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा है कि यह आदेश मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास है। इसके साथ ही न्यायाधीशों , मजिस्ट्रेट और लोक सेवकों के खिलाफ मजिस्ट्रेट के जांच का आदेश देने या शिकायतों के संदर्भ में संज्ञान लेने की उसकी शक्तियों को कम करना है। इसलिए उनका संगठन सरकार के इस कदम के खिलाफ उच्च न्यायालय जाएगा।
राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने यह एक ऐसा अध्यादेश जारी किया है कि किसी भी जज, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक के खिलाफ सरकार से मंजूरी लिए बिना किसी तरह की जांच ही नहीं की जाएगी। इस अध्यादेश के अनुसार कोई भी लोकसेवक अपनी ड्यूटी के दौरान दिए गए निर्णय पर जांच के दायरे में नहीं आ सकता है।
सरकार आदेश वापस लें -
दरअसल राजस्थान सरकार ने इस आदेश के तहत न केवल आम आदमी को बांधा है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी अंकुश लगाया है। एक तरह से उनका यह फैसला लोकतंत्र के खिलाफ है। इससे दागी लोकसेवकों का नाम उजागर नहीं हो पाएगा। भ्रष्ट लोकसेवकों को इस आदेश से सरंक्षण मिलेगा। भ्रष्ट लोक सेवकों को सरंक्षण देने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। राज्य सरकार के इस आदेश से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी। इसलिए राजस्थान की मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह देखे कि यह राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है और लोकतंत्र में लोगों की भावनाओं के अनुसार ही फैसला लेना चाहिए। अच्छा होगा कि समय रहते राजस्थान सरकार चेत जाए और वह इस अध्यादेश को विधानसभा में कानून का रूप नहीं दें। विधानसभा में ऐसा कोई आदेश पारित न हों जो प्रजातंत्र के खिलाफ हो। इससे उनकी ही छवि धुमिल होने से बचेगी।
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