विश्व को मिले साकार स्वरूप: दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान
प्रभु भक्ति में मिलता है आनंद
परमात्मा को प्राप्त करने से ही सार्थक होगा जीवन
श्री आशुतोष महाराज जी के दिशा निर्देशन में संस्थापित एवं संचालित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान एक बहुआयामी सामाजिक एवं आध्यात्मिक संस्था है जो ‘आत्मिक जाग्रति द्वारा विश्व में शांति’ के लक्ष्य को साकार करने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्यशील है।
इसी जन जाग्रति हेतु दिल्ली के दिव्य धाम आश्रम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा मासिक सत्संग समागम का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम में श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं द्वारा सत्संग प्रवचन व सुमधुर भजन कीर्तन प्रस्तुत किया गया। साध्वी जी ने अपने प्रवचनों में बड़े ही सुंदर ढंग से गुरु और शिष्य के अलौकिक प्रेम को समर्पित ऐतिहासिक प्रसंग सुनाए।
साध्वी ने कहा कि श्री वेद व्यास जी ने 18 पुराणों की रचना की लेकिन वह अशांत थे। उनके जीवन में जब गुरु नारद जी आए तो उनको परमात्मा का साक्षात्कार करवाया और उन्हें परम शांति का अनुभव कराया। भारतवर्ष में गुरु शिष्य प्रेम की असंख्य गाथाऐं मिलती हैं, जो हमें भी अंकित मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। प्रहलाद और नारद जी, भक्त हनुमान और प्रभु श्री राम जी, मीरा और गुरु रविदास जी, विवेकानंद और राम कृष्ण परमहंस जी, योगानंद और युक्तेश्वर गिरी जी, चंद्रगुप्त और चाणक्य जी जैसे अनंत उदाहरण हैं। शिष्य की सारी भावनाऐं गुरु तक पहुँचती है। यदि जीवन में सुख को प्राप्त करना है तो ईश्वर को जानना होगा! मनुष्य जीवन का उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है, पर ईश्वर को प्राप्त करने के लिए एक नियम है कि गुरु के बिना हम ईश्वर तक नहीं पहुँच सकते। बल्कि जब स्वयं भगवान भी इस धरा पर अवतार धारण करते हैं तो वे भी इस नियम का पालन करते हैं तभी तो कहा गया कि राम कृष्ण ते को बड़ो, तिनहुँ भी गुरु कीन। तीन लोक के नायका गुरु आगे आधीन। गुरु ही एक जिज्ञासु को उसके अंतर्जगत में प्रभु का दर्शन करवाते है, प्रभु के अव्यक्त नाम को श्वासों में प्रकट कर, दिव्यामृत का पान व अनहद नाद श्रवण करवाते है।