नोटबंदी के दुष्परिणाम अब आने लगे हैं सामने
संदीप कुलश्रेष्ठ
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की थी। इसमें पुराने 500 और 1000 रूपये के नोट अचानक बंद कर दिए गए थे। उस समय सरकार ने नोटबंदी को क्रांतिकारी कदम बताते हुए इसके अनेक लाभ गिनाए थे। लाभ तो दिखाई नहीं दिए , किंतु अब उसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।
देश की इकॉनामी में स्लो डाउन की आहट ने सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है। अब सरकार को भी लगने लगा है कि इकॉनामी की ग्रोथ को यदि बढ़ाया नहीं गया और महंगाई को काबू में नहीं किया गया तो उसे आर्थिक मोर्चे के साथ-साथ राजनीतिक मोर्चे पर भी नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि हाल ही में देश की वित मंत्री अरूण जेटली ने इस संबध में एक उच्च स्तरीय बैठक ली। इस बैठक में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री , रेल मंत्री, नीति आयोग के उपाध्यक्ष आदि भी शामिल हुए। सबने आर्थिक वृद्धि दर में आ रही गिरावट पर चिंता प्रकट की।
जीडीपी की दर गिरी -
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 की पहली तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर तीन साल में सबसे कम 5.7 प्रतिशत हो गई है। जबकि पिछले साल की प्रथम तिमाही में जीडीपी की दर 7.9 प्रतिशत थी। पिछले तीन साल में देश की आर्थिक वृद्धि दर इस दौरान रिकार्ड रूप से गिरी। देश की आर्थिक विकास दर कम होने और मार्केट में डिमांड घटने से बाजार में नई नौकरियां न के बराबर हो गई।
उद्योग धंधों में छाई सुस्ती -
देश में गत जुलाई में औद्योगिक उत्पादन की ग्रोथ 1.2 प्रतिशत रही। यही नहीं अप्रैल - जुलाई में ग्रोथ 6.5 प्रतिशत से घटकर मात्र 1.7 प्रतिशत रह गई । इससे सिद्ध होता है कि फैक्ट्रियों में सुस्ती छाई है और मार्केट में कोई मांग नहीं है। इस कारण बेरोजगारी बड़ी है। नई नौकरी मिलने की बजाय नुकसान यह हुआ है कि जो नौकरी कर रहे थे उन्हें भी अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
बीमार हुआ कोर सेक्टर -
गत जुलाई में कोर सेक्टर की ग्रोथ 2.4 प्रतिशत रही। यह केंद्र सरकार की उम्मीद से काफी कम है। नेचुरल गैस , स्टील, बिजली, कोयला जैसे सेक्टरों में सुस्ती छाई रही। गत जुलाई में रिटेल महंगाई दर 2.36 प्रतिशत थी। यह अगस्त माह में बढ़कर 3.36 प्रतिशत हो गई। यही नहीं थोक महंगाई दर भी अगस्त माह में चार महिने के टॉप पर पहुंच गई। महंगाई बढ़ने से लोगों की मुश्किलें भी बढ़ी है।
करंट अकाउंट घाटा बढ़ा -
करंट अकाउंट का घाटा इस वर्ष की प्रथम तिमाही में बढ़कर जीडीपी का 2.4 प्रतिशत हो गया। व्यापार का घाटा बढ़ने के कारण यह 1430 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। यह देश की इकॉनामी के लिए किसी भी तरह से अच्छी खबर नहीं कही जा सकती है।
नोटबंदी के बताए गए उद्देश्य तो हासिल नहीं हुए , किंतु देश की विकास दर जो पहले विश्व में सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाली विकास दर थी वह भी गिर गई है। अब तो सरकार को इससे सीख लेना ही चाहिए। और नोटबंदी के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करने चाहिए। इसके साथ ही सरकार को यह भी देखना चाहिए कि भविष्य में कोई भी बड़ा आर्थिक निर्णय लेने के पहले उसके दुष्परिणाम पर जरूर गौर करें, ताकि भविष्य में फिर से ऐसी गलती नहीं होने पाए।
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