चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है...
अहं मर्दिनी माँ भगवती
माँ भगवती शक्ति स्वरूपा हैं, जो सारे संसार का सृजन, पालन और संहार करने वाली है
माँ भगवती ने प्राकट्य काल से संसार को अंतर्मुखी होने का दिया सन्देश
– श्री आशुतोष महाराज जी
नवरात्रे शुरू होने वाले हैं। 'जय माता की' के जयकारे हवाओं में गूँजने लगे हैं। मंदिरों में भक़्त श्रद्धालुओं की लंबी कतारें, गली-गली से उठता कीर्तन-संगीत, ऐसे लगता है मानों जनमानस की धमनियों में दौड़ती भक्ति-भावना में नई स्फूर्ति आ गयी हो। रातें भी आजकल काली नहीं रही, जगह जगह होते जगरातों ने इन्हें रोशन कर दिया है। सामान्यतः नवरात्रों का यह पर्व नौ दिन का होता है।
पर क्या आप जानते हैं कि देशभर में यह पर्व इन्हीं नौ दिनों में क्यों मनाया जाता है? फिर नौ दिन की ही अवधि क्यों है? आखिर इस उत्सव को मनाने के पीछे कारण क्या है? एक बार एक अमरीकी नवरात्रों के दिनों में भारत आया। उसने यही प्रश्न अपने एक भारतीय मित्र से पूछ डाले। भारतीय ने उत्तर दिया- 'देवी माँ के दिन हैं.... सामाजिक उत्सव है....सदियों से यही परंपरा चली आ रही है....बचपन से देखता आया हूँ.... मनाना चाहिए....अच्छी बात है....' सारांशतः वह उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाया।
कैसा भीषण अज्ञान है? जिन नवरात्रों को इतनी धूम-धाम से मनाते हैं, उनमें क्या आध्यात्मिक भाव है, प्रेरणा है, संदेश है, हम नहीं जानते। जबकि नवरात्रों के एक-एक पक्ष में अभूतपूर्व वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता निहित है। आइए, जानते हैं कैसे?
नवरात्रे वर्ष में दो बार आते हैं। दोनों बार ऋतु परिवर्तन के समय! ऋतुओं की इस संधिवेला में संपूर्ण वातावरण में हलचल मची होती है। आरोग्यशास्त्र के अनुसार इस समय महामारी, ज्वर, शीतला, कफ़, खाँसी आदि रोगों के होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले हमारे ऋषिगण इस आवश्यकता से पूर्णतः परिचित थे। यही कारण था कि उन्होंने इन दिनों व्रत-उपवास आदि करने पर बल दिया।
दूसरा, नवरात्रों के इन दिनों में देवी के तीन रूपों की उपासना करने की परंपरा है। ये तीन रूप हैं- माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी, माँ शारदा। देवी दुर्गा शक्ति का प्रतीक हैं। लक्ष्मी धन-ऐश्वर्य-वैभव की द्योतक हैं तो माँ शारदा सर्वोत्तम विद्या अर्थात ब्रह्मज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। जीवन को शांत एवं पूर्णतः सफल बनाने के लिए इन तीनों की समरसता जरूरी है।
इस पर्व के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। कथा उस समय की है जब धरती महिषासुर आदि असुरों के अत्याचारों से आक्रांत थी| ऐसे में, सभी देवगण एकत्र हुए और उस परम शक्ति महामायी दुर्गा का आह्वान किया | माँ दुर्गा विकराल रौद्र रूप धारण कर प्रकट हुई और इन दैत्यों से भीषण संग्राम किया| यह संग्राम नौ दिनों और नौ रातों तक लगातार चलता रहा | अंत में दशम दिवस के सूर्योदय के साथ माँ दुर्गा ने इन समस्त आसुरी शक्तियों को परास्त कर दिया | धरती पर से महिषासुर के आतंक को मिटाने के लिए माँ दुर्गा ने रौद्र रूप में प्रकट होकर दैत्यों के साथ नौ दिन और नौ रातों तक भीषण संग्राम किया। तभी से इस युद्ध काल के ये नौ दिन नवरात्रों के रूप में देवी माँ की पूजा वंदना में समर्पित किए जाते हैं| इस कथा का एक-एक पहलू प्रतीकात्मक है|
लेकिन कथा के आध्यत्मिक भाव से सब अनभिज्ञ है। महिषासुर हमारे मन में स्थित आलस्य, जड़ता, अविवेक, कामुकता, नृशंसता, तमोगुण आदि तामसी प्रवृतियों का प्रतीक है। नवरात्रों का यह पर्व हमें सन्देश देता है कि हम सभी अपनी सात्विक प्रवृतियों, शुभ संकल्पों को एकत्र करें और अपनी चेतना की जाग्रति के लिए कटिबद्ध हो जाएँ। चेतना की जाग्रति किसी बाहरी विद्या या विधि द्वारा सम्भव नहीं। केवल 'ब्रह्मज्ञान' में ही चेतना को जाग्रत करने का सामर्थ्य है। अतः आवश्यक है कि हम एक तत्ववेता गुरु के सानिध्य में पहुँच कर 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करें।
मातृ प्रेमियों, आइये हम इस बार नवरात्रों के इन आध्यात्मिक संदेशों की ऊँगली थाम कर ब्रह्मज्ञान की ओर अग्रसर हों। कहीं ऐसा न हो कि हर बार की तरह नवरात्रे आएँ और चले जाएँ, पर हमारा आंतरिक महिष ज्यों का त्यों सबल बना रहे। हम बाहर घी की ज्योति जलाते रहें पर भीतर तमोगुण एवं विकारों का अंधकार गहराता जाए।
नवरात्रों का यह पर्व हमें सन्देश देता है कि हम अपनी सभी सात्विक प्रवृत्तियों, शुभ संकल्पों ( देवताओं के प्रतीक) को एकत्र करें, चाहे वह कितने ही कम व दुर्बल क्यों न हों और अपनी चेतना की जाग्रति के लिये कटिबद्ध हो जाएँ| एक तत्ववेता गुरु के सान्निध्य में पहुंचकर ‘ब्रह्मज्ञान’ प्राप्त कर अपनी सोई चेतना को जाग्रत करवाएँ| अंततः जब साधक इन नौ द्वारों पर विजय प्राप्त कर लेता है, तब कहीं जाकर भीतरी महिष का मर्दन होता है और साधक की अंतर चेतना दशम द्वार में स्थित हो जाती है| यही अध्यात्मिक विजयादशमी है|