हिन्दी : एक दिन की नहीं, जन-जन के दिल की है भाषा
डॉ. चंदर सोनाने
विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद हिन्दी का तीसरा स्थान है। पूरी दुनिया में करीब 175 विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई की जाती है। अकेले अमेरिका के ही 45 विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई की जाती है। हमारे देश में करीब 77 प्रतिशत लोग हिन्दी भाषा को लिखते , पढ़ते , बोलते और समझते हैं। हिन्दी की खास बात यह है कि इस भाषा में जिस शब्द का जिस तरीके से उच्चारण होता है ,उसे लिपि में भी उसी तरह लिखा जाता है। वास्तव में हिन्दी एक दिन की नहीं , बल्कि जन-जन के दिल की भाषा है।
हिन्दी भाषा के इतिहास में जाएँ तो हमें पता चलता है कि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया था कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। यह निर्णय भारतीय संविधान के भाग 17 की धारा 343 (1) में इस प्रकार लिपिबद्ध है- “ संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय रूप होगा। सन 1950 में संविधान में इसे राजभाषा के रूप में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को प्रति वर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले सन 1918 में महात्मा गाँधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने को कहा था। इसे उन्होंने जनमानस की भाषा कहा था।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के तत्वावधान में सन् 1975 से विष्व हिन्दी सम्मेलन के श्रंखला की शुरूआत नागपुर से की गई। इस प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था । इस सम्मेलन में मुख्य रूप से तीन प्रस्ताव पारित हुए थे। इनमें से प्रथम प्रस्ताव था “संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाऐ।“ दुख की बात है कि प्रथम सम्मेलन में लिए गए निर्णय का क्रियान्वयन आज तक नहीं हो सका है। दो वर्ष पूर्व 10 से 12 सितंबर 2015 को मध्यप्रदेश के भोपाल में 10 वां विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में दर्जनों प्रस्ताव पारित किए गए। इन लिये गए निर्णयां का कहीं अता पता नहीं है। इनके क्रियान्वयन की बात तो दूर की है। हर तीन साल बाद होने वाला यह विश्व हिन्दी सम्मेलन अब अगले साल सन 2018 में अपना 11 वां सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है।
14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाना या हिन्दी सप्ताह आयोजित करना अथवा हिन्दी पखवाड़ा मनाने की परंपरा 1953 से देश में चली आ रही है। इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ है। अब आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी भाषी लोगों को ही नहीं बल्कि अन्य भाषा भाषी लोगों को भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हिन्दी को स्वेच्छा से अपनाना होगा। तभी हिन्दी का विकास हो सकेगा। यही नहीं हमें यह भी ध्यान देना होगा कि हिन्दी हमेशा से अन्य भाषा के प्रचलित शब्दों को अंगीकार करती आ रही है। यह हिन्दी भाषा की उदारता का सबसे बड़ा परिचायक है। अब आवश्यकता इस बात की भी है कि देश के अन्य अहिन्दी भाषा के प्रचलित शब्दों को भी हिन्दी में उचित स्थान दिया जाए। और अन्य अहिन्दी भाषा में भी हिन्दी के प्रचलित शब्दों को गौरवपूर्ण स्थान दिया जाए। इससे ही सही मायने में विविधता में एकता सिद्ध हो सकेगी।