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नोटबंदी हुआ फ्लॉप : मात्र एक प्रतिशत ही कालाधन निकला


संदीप कुलश्रेष्ठ
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 से एक हजार व पाँच सौ रूपये के पुराने नोट अचानक बंद कर दिए थे। नोटबंदी करते समय इसका मुख्य उदेश्य काला धन ,आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना बताया गया था। किंतु हाल ही में रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट मे जो जानकारी दी है उससे पता चलता है कि एक हजार व पाँच सौ रूपये के जो नोट बंद किए गए थे , उनमें से 99 प्रतिशत नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ चुके हैं। केवल 1 प्रतिशत नोट ही बच गए हैं , जिसे काला धन माना गया है। 
नोटबंदी से कालाधन नहीं निकला बाहर -
                रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि नोटबंदी से पहले एक हजार व पाँच सौ के 15.44 लाख करोड़ रूपये के नोट चलन में थे। इनमें से 30 जून 2017 तक 15.28 लाख करोड़ रूपये के नोट वापस बैंकों में आ गए हैं। अब सिर्फ 16 हजार 500 करोड़ नोट बचते हैं , जो बैंकों में नहीं आये हैं। यह कुल रकम का मात्र 1 प्रतिशत ही है। अर्थात यही वह रकम काले धन के रूप में थी जिसके लिए इतना हाय तौबा मचाया गया था। इतना ही नहीं सरकारी बैंकों द्वारा 10 से 14 नवंबर के बीच आए पुराने नोट रिजर्व बैंक में जमा करना अभी शेष है। इसे मिलाकर वापस आए नोटां की संख्या और बढ़ सकती है।
जीडीपी 5.7 प्रतिशत पर गिरी -
                  वित्त वर्ष 2017-2018 में अप्रैल से जून तक पहली तिमाही के दौरान देश में जीडीपी पिछले तीन साल में सबसे कम निचले स्तर पर पहुँच गई है। इस दौरान जीडीपी की रफ्तार 5.7 प्रतिशत ही रही। जबकि वर्ष 2016-17 के दौरान अप्रैल से जून तक पहली तिमाही में जीडीपी की रफ्तार 7.9 प्रतिशत थी। इस हिसाब से विकास दर में 2.2 प्रतिशत की गिरावट आई है । इस प्रकार नोटबंदी से यह सिद्ध हुआ है कि इस कारण विकास दर में अत्यधिक गिरावट आई है। 
विश्व में सबसे तेज विकास दर का तमगा छिना -
                भारत की विकास दर में मार्च 2016 से लगातार गिरावट आ रही है। तब देश की विकास दर 9.1 प्रतिशत थी। यह विष्व में सबसे अधिक विकास दर थी। विष्व में विकास दर के मामले में भारत प्रथम स्थान पर था। किंतु अब यह तमगा नोटबंदी के कारण भारत से छिन गया है। अब सबसे अधिक विकास दर का तमगा चीन को मिल गया है। अप्रैल से जून 2017 के दौरान चीन की विकास दर 6.9 प्रतिषत रही। इसी दौरान भारत की विकास दर मात्र 5.7 प्रतिशत रहने के कारण भारत विश्व में विकास दर के मामले में अब सिरमौर नहीं रहा। 
नोटबंदी के कारण उद्योग धंधों पर विपरित असर पड़ा - 
        नोटबंदी के कारण विभिन्न निर्माण कार्यो और उत्पादन करने वाले उद्योग धंधों पर तथा इससे संबंधित क्षेत्रों में कामकाज ठप्प सा हो गया था। नोटबंदी के कारण नकदी की कमी से उद्योग धंधों पर सीधा असर पड़ा। निर्माण और उत्पादन में गिरावट आई। छोटे उद्योग धंधे बंद होने की कगार पर पहुँच गए। अनेक उद्योग धंधे बंद होने के कारण लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा।
नोटबंदी के बाद आतंकवाद बढ़ा -
                 नोटबंदी के प्रमुख उद्देष्यों में आतंकवाद पर अंकुश लगाना भी कहा गया था । नोटबंदी के कारण शुरूआत में जरूर आतंकवाद पर अंकुश रहा , किंतु कुछ समय बाद ही जम्मू कश्मीर में आतंकवाद अपनी पटरी पर लौट आया। यही नही वहाँ कुछ ऐसी प्रमुख घटनाएँ भी हुई जिससे प्रतीत हुआ कि नोटबंदी के बाद आतंकवाद कम होने की बजाय और बढ़ा है। 
भ्रष्टाचार जस का तस -
नोटबंदी के कारण भ्रष्टाचार पर लगाम कसा जाएगा। यही कहा गया था। कुछ दिनों तक तो स्थिति नियंत्रण में रही , किंतु थोड़े समय बाद ही भ्रष्टाचार जस का जस हो गया। नोटबंदी के पहले जैसी स्थिति थी , आज भी भ्रष्टाचार के मामले में उसमें कोई उल्लेखनीय बदलाव दिखाई नहीं दे रहा है। 
                    8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी के बाद देश में न तो काले धन पर अंकुश लगा और न ही भ्रष्टाचार पर नियंत्रण किया जा सका। नोटबंदी के कारण आतंकवाद पर भी कारगार नियंत्रण होने की बात असफल सिद्ध हुई है। अब केंद्र के वित्त मंत्री चाहे जो सफाई दें , किंतु आम जन यह सब समझता है । अब यह सिद्ध हो गया है कि नोटबंदी का प्रयोग देश में असफल सिद्ध हुआ है। 
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