आध्यात्मिक मार्ग पर निरंतर चलने का लिया दृढ संकल्प
अध्यात्म के लिए समाज को प्रेरित कर रहा संस्थान
अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते है पूर्ण गुरु
तमाम कष्ट सहने पर भी शिष्य भक्ति मार्ग से विचलित नहीं होता
पूर्ण गुरु कराते है सही मार्ग का चयन
ब्रह्मज्ञान पूर्ण गुरु का अमोघ वरदान
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिल्ली स्थित दिव्य धाम आश्रम में पूर्ण श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मासिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया| जिसमें हजारों की श्रंखला में श्रद्धालुओं ने भाग लिया! सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं ने सुमधुर भजनों तथा प्रवचनों द्वारा आध्यात्मिक मार्ग पर चरैवेति - चरैवेति अर्थात भक्ति मार्ग पर निरंतर उत्साहपूर्ण चलने के संकल्प को धारण करने की प्रेरणाएँ प्रदान की|
अपने प्रवचनों में साध्वी जी ने बताया कि गुरुगीता में भगवान शिव माँ पार्वती को गुरु की परिभाषा बताते हुए कहते है कि गुरु वह शक्ति है जो एक शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर जाती है, असत्य से सत्य की ओर अगर्सर करती है! गुरु एक शिष्य को ज्ञान मार्ग प्रदान कर, अध्यात्मिक मार्ग में बढ़ने की प्रेरणा देते हैं! एक पूर्ण गुरु ही शिष्य की रक्षा करते है तथा उसे आध्यात्मिक स्वाधीनता का मीठा अमृत भी प्रदान करते है| जब एक शिष्य गुरु द्वारा बताए मार्ग का अनुसरण करता है तो वह अपने संसारिक बंधनों को काटने में समर्थ होता है|
आगे साध्वी जी ने कहा कि एक पूर्ण सतगुरु के आश्रय में जीवन सुगम नहीं होता| जैसा कि स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने शब्दों में बखूबी कहा है, “यदि दिन भर में कोई भी समस्या का सामना न करना पड़ा हो तो सुनिश्चित है कि आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं|” श्री आशुतोष महाराज जी भी अपने असंख्य शिष्यों को आध्यात्मिकता के पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित कर रहे है| इस मार्ग पर बढ़ते हुए शिष्य के जीवन में अनेक बाधाएं और विषम परिस्थितियाँ का सामना करना पड़ता है| परन्तु ऐसे में एक शिष्य निरंतर गुरु द्वारा दी जा रही प्रेरणाओं को अपने भीतर ही प्राप्त व अनुभव कर पाता हैं!
कार्यक्रम में नैतिक मूल्यों और अध्यात्मिक मार्ग दर्शन से परिपूर्ण प्रवचनों को प्राप्त कर अनुयायीओं ने दृढ़ता से आगे बढ़ने का संकल्प लिया| इन शिक्षाओं को अपने जीवन में कार्यान्वित कर भक्तजन जीवन में आने वाली विषम परिस्थितियों से जूझने के समर्थ को पाते हैं और ज्ञान, भक्ति जैसे आध्यात्मिक गुणों को अपने भीतर स्थापित करने में सफल भी होते हैं| इन्हीं के माध्यम से वह उत्साह प्राप्त कर जीवन के युद्ध को लड़ पाते है| इस प्रकार शिष्य गलत और सही का भेद करने में सफल होता है और समाज में असाधारण रूप से जीने का तरीका चुनने में सक्षम हो पाता है।