निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
संदीप कुलश्रेष्ठ
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया । सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। सवौच्च न्यायालय ने पूर्व में सन् 1954 और सन् 1962 में अपने ही दिए निर्णय को बदल दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय की नौ जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से निजता को मौलिक अधिकार माना है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में कहा है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का हिस्सा है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है। नौ जजों ने एकमत से इस संबंध में जो फैसला लिया है , उन जजों में शामिल थे सर्व श्री चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एस के बोबड़े , जस्टिस नरीमन, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजय किशन कौल । इन जजों का यह भी कहना है कि निजता कोई अभिजात्य के विचार नहीं है जो सिर्फ अमीरों को दिए हो। यह सभी वर्गो के लिए है। अब निजी जानकारी देना और न देना आपकी मर्जी पर निर्भर करेगा।
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 1954 में आठ जजों की पीठ ने और सन् 1962 में 6 जजों की पीठ ने यह कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। अब 25 अगस्त 2017 को नौ जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से यह माना है कि निजता मौलिक अधिकार है। इस प्रकार आजादी के बाद पहली बार निजता हमारे जीने के अधिकार में शामिल हुआ है। निजता अनुच्छेद 14, 19 और 21 से जुड़ गई है। अब आपकी निजी जानकारियाँ संरक्षित है। इसे देने के लिए आपको कोई बाध्य नहीं कर सकता है। अर्थात इस फैसले के बाद लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं हो सकेगी।
केंद्र सरकार ने आधार को 92 सरकारी योजनाओं में जरूरी माना है। इस कारण अब इन योजनाओं में आधार के जरूरी होने पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसलिए आधार की अनिवार्यता पर अब सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की पीठ फैसला करेगी। यह पीठ यह देखेगी कि आधार के कारण निजता का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। इस पीठ के निर्णय आने के बाद आधार की अनिवार्यता के संबंध में विस्तृत निर्णय हो सकेगा।
निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बनने के बाद यदि रिजर्वेशन जैसे मामले में रेलवे या एयरलाइंस आपसे निजी जानकारी मांगती है तो आप निजी जानकारी देने से इनकार कर सकते है। इस प्रकार व्हाटसप, फेसबूक और गूगल जैसे सर्च इंजन आपकी निजी जानकारी दूसरे को नहीं दे सकेंगे। सर्वोच्च न्यायालय का उक्त फैसला अपने आप में ऐतिहासिक है। व्यक्ति को उसकी निजता का मौलिक अधिकार देकर न्यायालय ने हमारे देश के नागरिकों को और सक्षम बनाया है। इसके बहुत दूरगामी परिणाम होंगे ।
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