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डेरा सच्चा नहीं पूरा झूठा : 32 मौंतें उपद्रवियों पर हो हत्या का केस , मुख्यमंत्री को करें बर्खास्त


संदीप कुलश्रेष्ठ
          26 अगस्त को पंचकूला और अन्य स्थानों पर जो कुछ हुआ वह नहीं होना था , किंतु हुआ। वह भी एक दुष्कर्मी के कारण। डेरा सच्चा के प्रमुख गुरमीत रामरहीम सिंह द्वारा अपनी दो साध्वियों से दुष्कर्म के मामले में सीबीआई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराने के बाद पंजाब और हरियाणा के 11 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। हरियाणा , पंजाब , दिल्ली , राजस्थान,  यूपी , झारखंड के 15 शहरों में 137 जगहों पर बाबा के अनुयायियों द्वारा हिंसक वारदातें की गई। उपद्रवकारियों द्वारा 104 स्थानों पर आगजनी की गई । 200 से ज्यादा वाहन एवं दफ्तर 4 रेलवे स्टेशन व दो ट्रेनों में आग लगा दी गई। इन सभी घटनाओं में 32 लोगों की मौत हो गई । यह सभी बाबा के चेलों द्वारा उन्हीं के उकसाने पर इकट्ठे हुए थे और उन्होंने उक्त वारदातें की। ऐसे सभी उपद्रवकारियों के विरूद्ध हत्या के साथ ही अन्य अपराधिक प्रकरण के केस दर्ज होने चाहिए । और इसका मुख्य आरोपी गुरमीत सिंह को बनाया जाना चाहिए। 
हरियाणा के मुख्यमंत्री को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री करें बर्खास्त -
                   हरियाणा के मुख्यमंत्री भाजपा के और संघ के कार्यकर्ता श्री मनोहर लाल खट्टर है। इन्होंने अपने स्वच्छता अभियान में इन्हीं बाबा गुरमीत के साथ झाडू लगाई थी। ये वही मुख्यमंत्री है , जो बाबा को प्रणाम करते थे और आशीर्वाद लेते थे। जब पूरा हरियाणा और पंजाब ही नहीं बल्कि सारा देश यह जानता था कि गुरमीत को सजा सुनाने के बाद उनके चेले उपद्रव मचाएंगे, किंतु मुख्यमंत्री को यह समझ में नहीं आया। चेलों ने उपद्रव ही नहीं आतंक मचा दिया। मुख्यमंत्री हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। उन्होंने सिर्फ शांति की अपील की। इस कारण करोड़ो रूपयों की संपत्ति का नुकसान होने के साथ ही साथ 32 लोग लाश के ढ़ेर में बदल गए। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चाहिए कि तुरंत ऐसे मुख्यमंत्री को बर्खास्त करें , जिसने अपने दायित्व का अच्छी तरह निर्वहन ही नहीं किया। 
                      ये मुख्यमंत्री ऐसे है जो पहले भी हरियाणा में हुए दो आंदोलनों में पूरी तरह से फेल हो चुके है। हरियाणा में पिछले दिनों हुए जाट आंदोलन के दौरान 30 से अधिक मौतें हुई थी और 25 हजार करोड़ रूपये का नुकसान हुआ था। उस समय हिंसा में 8 जिले झुलस गए थे। इसी प्रकार हरियाणा के ही रामपाल की गिरफ्तारी के दौरान हरियाणा की सरकार मामले को निपटा नहीं पाई थी। करीब दो सप्ताह तक रामपाल के समर्थकों ने उपद्रव मचाया था। उस समय भी मुख्यमंत्री श्री खट्टर की सरकार फेल हो गई थी। 
डीजीपी भी हो बर्खास्त -
                      पूर्व से हाईकोर्ट ने यह घोषणा कर रखी थी कि 25 अगस्त को वह फैसला सुनाएगी। बाबा गुरमीत के आव्हान पर ही पंचकूला में सवा लाख समर्थक इकट्ठे हो गए थे। हाईकोर्ट ने इस स्थिति को पहले ही समझ लिया था। उसने डीजीपी  आदेश भी दिए थे कि पंचकूला में जमा हुए समर्थकों को खदेड़ दिया जाए किंतु डीजीपी ने यह कहा कि सुबह तक उन्हें खदेड देंगे और किया कुछ नहीं । डीजीपी ने केवल अपील जारी कर अपने  दायित्व की खानापूर्ति की। यही नहीं धारा 144 लागू होने के बाद भी पंचकूला और सिरसा में लाखों समर्थक इकट्ठा हो गए। यह सब समझ रहे थे कि गुरमीत को सजा होने की स्थिति में उपद्रव हो सकते हैं किंतु डीजीपी ने कुछ भी नहीं किया । हरियाणा और पंजाब में 63 हजार जवान तैनात थे। फिर भी कहीं पर भी हिंसा नहीं रूक पाई । इसके लिए मुख्यमंत्री के साथ ही डीजीपी भी हिस्सेदार है। उन्हें भी बर्खास्त किया जाना चाहिए।
मीडिया पर भी हमला -
                     सामान्यतः उपद्रव के समय मीडिया को बख्शा जाता है। किंतु यहां ऐसा नहीं हुआ। मीडिया पर भी उपद्रवियों ने हमले किए। उनकी वैन पलट दी गई और आग लगा दी गई।  मीडिया के लोगों ने जैसे तैसे अपनी जान बचाते हुए अपने दायित्व का निर्वहन किया । मीडिया के लोगों ने कल ही उपद्रवियों द्वारा किए गए हमले और आतंक को देश भर के सामने ला दिया था। मीडिया पर हमला लोकतंत्र पर हमला माना जाना चाहिए और दोषियों की शिनाख्त की जाकर उनके विरूद्ध सख्त कारवाई की जानी चाहिए। 
पीड़ित महिला, उसके भाई और पत्रकार को सलाम - 
                    सबसे पहले सन 2002 में पहली बार ये मामला सामने आया था। पीड़ित महिला ने साहस करके तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और हाईकोर्ट के नाम तीन पेज की चिट्ठी भेजी थी। उसी चिट्ठी में महिला ने गुरमीत राम रहीम पर सन् 1999 में दुष्कर्म का आरोप लगाया था। यह महिला उसी डेरा सच्चा की साध्वी थी, जिसे अपनी हवस का षिकार बाबा ने बनाया था। इसी साहसी महिला की शिकायत पर कल 25 अगस्त को हरियाणा के पंचकूला में सीबीआई कोर्ट के जज श्री जगदीप सिंह ने गुरमीत को दुष्कर्म मामले में दोषी करार देने वाला साहसी फैसला सुनाया था। 
                      अपनी बहन के साथ हुए दुष्कर्म से नाराज होकर डेरा सच्चा प्रबंध समिति के सदस्य रणजीत सिंह ने सबसे पहले गुरमीत सिंह की करतूतों का खुलासा किया था। उसी ने अपनी बहन से तत्कालीन प्रधानमंत्री को पत्र लिखवाया था और उसे सांत्वना दी थी। उस समय वहाँ के “पूरा सच“ के नाम से अखबार निकालने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने पीड़िता द्वारा लिखी चिट्ठी को छापा था। कुछ ही दिन बाद बाबा के चेलों ने उस साहसी पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी थी। यही नहीं जब यह बाबा को पता चला कि यह चिट्ठी पीड़ित महिला के भाई रणजीत ने लिखवाई हैं तो 10 जुलाई 2002 को उसकी भी हत्या कर दी गई। 
                        सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितंबर 2002 को सीबीआई को जांच सौंपी थी। सीबीआई के एक अधिकार श्री सतीष डागर को जब ये केस मिला तो उन्होंने पीड़ित महिला को ढ़ूंढ़ा और उसे गवाही के लिए तैयार किया । उन पर भी अनेक दबाव आए , किंतु वे झुके नहीं और न ही डरे। पीड़ित महिला पर भी हर तरह से दबाव डाले गए और धौंस दी गई किंतु वह निडर साहसी महिला टिकी रही। और उसी की हिम्मत के कारण 15 साल बाद कोर्ट का यह फैसला सामने आया।
                         राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चाहिए वे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह और उनके उपद्रवी अनुयायियों के विरूद्ध न केवल सख्त कारवाई करें बल्कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार डेरा की संपत्ति जब्त कर नुकसान की भरपाई भी कराएँ। 
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