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तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला


संदीप कुलश्रेष्ठ

                  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कल 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक पर दिया गया फैसला इतिहास में दर्ज हो गया है। यह ऐक ऐतिहासिक क्षण है। करीब 1400 वर्षों से चले आ रहे अमानवीय परंपरा को सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले ने पूरी तरह से बदल दिया है। अब मुस्लिम महिलाएँ तीन तलाक के डर से आजाद हो गई है।
मिसाल बनी शाह बानो - 
                    करीब 39 साल पहले इंदौर की शाह बानो ने सबसे पहले तीन तलाक के विरूद्ध आवाज बुलंद की थी। सन् 1978 में इंदौर की शाह बानो ने अपने पति द्वारा तलाक दिए जाने पर देश में पहली बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। ऐसा साहस करने वाली वह पहली मुस्लिम महिला थी। करीब तीन साल की लड़ाई के बाद सन् 1980 में वे जीती भी और अदालत ने उसे उस समय प्रतिमाह 119 रूपये देने का भरण पोषण का दावा मंजूर किया था। उस समय शाह बानो का कानून की लड़ाई लड़ना आसान नहीं था । उसके पति वकील थे। वकील पति के खिलाफ अकेली खड़ी हुई इस महिला ने पूरे समाज व देश को हिला दिया था। उस समय पूरा समाज उसके खिलाफ हो गया था। घर से बाहर निकलने पर उस पर तानाकसी की जाती थी। उस पर हर तरफ से दावा वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया , किंतु वह साहसी महिला अपने हक में फैसला आने तक डटी रही । अपने फैसले पर अड़िग शाह बानो ने उस समय मुस्लिम महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की थी। सन् 1992 मे उस साहसी महिला का इंतकाल हो गया। 
अब  मशाल उठाई सायरा बानो ने - 
                    इंदौर की शाह बानो के बाद काशीपुर की सायरा बानो ने अपने ऊपर  हुए जुर्म के खिलाफ आवाज बुलंद की। मुख्य याचिकाकर्ता सायरा बानो का विवाह 2001 में इलाहबाद के रिजवान अहमद से हुआ था। ससुराल वाले दहेज के लिए मारपीट करते थे। अप्रैल 2015 में पति ने उसे मायके भेज दिया और अक्टूबर 2015 को उसे तलाक दे दिया । एम.ए तक शिक्षित सायरा ने तीन तलाक और बहुविवाह के विरूद्ध याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक पर आए आदेश के बाद सायरा बानो का कहना है कि “वह खुद के लिए इंसाफ चाहती थी। उसे नहीं पता था कि सबको ही इंसाफ मिल जाएगा। मुस्लिम महिलाओं में तो शादी के बाद से ही तलाक का डर बैठ जाता था। अब वह खौफ के साये में जीने की बजाय आजाद होकर जीएगी। ” 
                       सायरा बानो के साथ ही चार और महिलाओं ने भी तीन तलाक के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी। इन साहसी महिलाओं में जयपुर की आफरीन रहमान, सहारनपुर की आतिया साबरी, रामपुर की गुलशन परवीन और हावड़ा की इशरत जहां शामिल है।  इन पाँचों निडर और साहसी महिलाओं ने जो साहस दिखाया उसका परिणाम न केवल उनके पक्ष में गया बल्कि वे सभी महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गई । इन पाँचों महिलाओं को सलाम। 
निर्णय में पाँच धर्मो के पाँच जज शामिल -
                     सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कल दिए गए ऐतिहासिक फैसले में सभी धर्मो के न्यायाधीश शामिल थे। इनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (क्रिश्चिएन), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल है। इन पाँच जजों ने तीन-दो के बहुमत से फैसला देते हुए एक बार में तीन तलाक को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया। इस मौके पर चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने बेंच का फैसला सुनाते हुए कहा “ तीन तलाक पर तीन जजों ने बहुमत से फैसला दिया है। इसलिए तीन तलाक असंवैधानिक हुआ। आज से ही तीन तलाक खत्म किया जाता है। ”
                    प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसी 15 अगस्त को लाल किले की  प्राचीर से दिए अपने भाषण में कहा था कि तीन तलाक के कारण कुछ महिलाओं को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। तीन तलाक से पीड़ित बहनां ने देश में आंदोलन खड़ा किया। मीडिया ने उनकी मदद की। तीन तलाक के खिलाफ आंदोलन चलाने वाली बहनों का मैं अभिनंदन करता हूँ। पूरा देश उनकी मदद करेगा। 
                      22 अगस्त 2017 का दिन मुस्लिम महिलाओं की आजादी का दिन है। यह एक ऐसा ऐतिहासिक दिन है जिसने 1400 साल से जारी परंपरा को हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर एक मिसाल कायम की है। 
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