top header advertisement
Home - धर्म << भगवान श्री कृष्ण- बुलंद हौसलों की धधकती मशाल!

भगवान श्री कृष्ण- बुलंद हौसलों की धधकती मशाल!



भगवान श्री कृष्ण ने जीवन की अमावस्या को पूर्णिमा में परिणित करने का दिया सन्देश
संसार के कैदखाने में कैदी नहीं एक जेलर की तरह जीये
भगवान श्री कृष्ण ने शुभ कर्मों से सफल जीवन बनाने का दिया सन्देश  

नि:सन्देह आज हमें देखकर परमात्मा प्रसन्न नहीं होगा| यह बुझा- सा चेहरा, लटके कंधे, झुकी नजरे, माथे पर बल और बोझिल कदम! क्या यही है परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति? हमारा प्रत्येक सहमा-सा स्वर आज हमारी हार है| हमारे ओजस्वी चेहरे को परेशानियों के ग्रहण ने बदसूरत कर दिया है| हमारी जिन्दगी परिस्थितियों की आंधी में बिखर चुकी है|
लेकिन किसी ने बहुत खूब कहा - आँधियों को दोष मत दो, तूफान पर नाहक गिला मत करो कि उन्होंने हमें उजाड़ दिया| कहीं का नहीं छोड़ा! असल में कुसूर  हमारा ही है कि हम तिनके थे, छोटे से कण थे! अगर हम भी विशालकाय पर्वत बन गए होते, तो आंधियों की क्या जुर्रत थी की हमे हिला पातीं, डिगा पातीं|  कहने का भाव मुसीबतों से घबराओ नहीं, उनका डटकर सामना करो| आपने जीवन की हर अमावस्या को पूर्णिमा में परिणित करने का जज्बा रखो|
महापुरुषों का आदर्शमयी जीवन हमें विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना करने की प्रेरणा देता है| उनके हौंसलो की गर्जना के आगे प्रत्येक परेशानी सहम कर लौट जाती थी| उनके सयंम और धैर्य की शीतलता से बड़े-बड़े ज्वालामुखी शांत हो जाते थे| उनकी सकारात्मक सोच दुःख की कालिमा में भी सुख का उजाला कर देती थी|
द्वापर में भी ऐसे ही एक महान अवतार का प्राकट्य हुआ था, जिन्हें आज संसार भगवान श्री कृष्ण के नाम से पूजता है| उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष की एक खुली किताब है| अपने बुलंद इरादों से उन्होंने हर विलापमय क्षण को मांगल्य के क्षणों में तब्दील कर दिया| हर ढल चुकी शाम को दोपहर की तरह स्वर्णिम बना दिया! आइए, उनकी जीवन-लीला से अपने लिए प्रेरणा के कुछ रतन चुनें|
उनके जन्म का समय देखें - रात्रि बारह बजे! यह ऐसा अपवित्र समय है, जब पवित्र धार्मिक स्थलों के दीये भी थककर बुझ जाते हैं| लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने घोर रात्रि को अपने जन्म का लगन चुनकर, समाज को यह सन्देश दिया कि इंसान की सोच ही समय को अनुकूल या प्रतिकूल बनाती है| हम समय के गुलाम नहीं, बल्कि वह ही हमारा गुलाम है|
भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थल भी क्या था? कारागार! अत्यंत अशोभनीय स्थान! लेकिन प्रभु श्री कृष्ण ने अद्भुत कार्य किया| यहीं पर जन्म लेकर उन्होंने समाज को दिखा दिया कि जन्म-स्थान के कारण कोई महान नहीं होता| महान होता है तो अपने कर्मों से! आप संसार के कैदखाने में जन्म लेकर भी कैदी की तरह नहीं एक जेलर की तरह जी सकते हैं| जो कारागार में होते हुए भी बंधन में नहीं है, मुक्त है|
इसके बाद प्रभु श्री कृष्ण वासुदेव जी के संग गोकुल की ओर बढ़े| पर यहाँ भी आसन कौन सा मिला? बांस की टोकरी! भगवान श्री कृष्ण ने इस फोके बांस की बांसुरी बना डाली| और मानो यही कहा कि, ‘गन्ने का रस तो केवल खानेवाले की जिब्हा को स्वाद देता है, लेकिन अब इस बांस के मधुर रस का स्वाद तो हजारों कान लेंगे| इससे भी बड़ी बात कि गन्ने को तो होंठ एक बार ही छूते हैं और रस समाप्त होने पर थूक देते हैं| लेकिन बांस निर्मित बांसुरी तो जितनी बार होंठो से लगाई जाएगी, उसके स्वरों की मिठास उतनी ही बढ़ती जाएगी|’ बांस का एक और अवगुण है-खोखलापन| खोखला अर्थात् खाली होना| भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त में खालीपन चाहते है| भाव कि उसमें ‘कुछ होने’ का अहंकार न हो|
इसके बाद वासुदेव प्रभु को लेकर युमना पार करने लगे, तो भयंकर तूफान और बारिश होने लगी| प्रभु ने एक विशालकाय सर्प द्वारा अपने पर छाया करवाई| सर्प काल का प्रतीक माना जाता है| उसका कार्य ही मृत्यु देना है| लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपना रक्षक बनाया| इस लीला द्वारा उन्होंने समाज के समक्ष एक विस्फोटक विचार रखा कि, यदि काल से भागना चाहोगे, तो नहीं भाग पाओगे| इसलिए उसे अपना मित्र बना लो| जिसका काल ही उसका रक्षक हो जाए, उसे भला कैसे कोई हरा सकता है? उसकी जीत तो निश्चित ही है|
कृष्ण शब्द का अर्थ है – आकर्षित करने वाला| लेकिन अगर गौर करें, तो भगवान श्री कृष्ण का रंग कैसा था? काला! यह सब रंगो में सबसे अशुभ और उपेक्षित रंग माना जाता है| लेकिन श्री कृष्ण ने यही रंग अपने लिए चुना| न केवल चुना, बल्कि अपने महान दृष्टिकोण से इस रंग में भी गुण ढूँढ निकाले| उन्होंने समझाया कि काला रंग निन्दनीय नहीं, पूजनीय है| इसमें बहुत सी विशेषताएँ हैं| जैसे कि यह एक पूर्ण रंग है| यही एकमात्र ऐसा रंग है, जिस पर कभी कोई और रंग नहीं चढ़ता| अन्य सभी रंग तो किसी भी रंग में रंगे जा सकते हैं| पर श्याम, श्याम ही रहेगा| बल्कि अपने संपर्क में आने वाले हर रंग को भी अपने जैसा ही कर लेगा|
ऐसी अनेक लीलाओं द्वारा भगवान श्री कृष्ण हमें यही आदर्श देते हैं कि हर परिस्थिति में हम हौंसला रखते हुए, सकारात्मक सोच रखते हुए फतह हासिल करें|
लेकिन यह हौंसला और सकारात्मक सोच इंसान के भीतर तभी जन्म लेती है, जब उसका अन्तस् प्रकाशित हो| जब उसकी जाग्रत आत्मा से उसे अध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती हो| यह सम्भव है मात्र ब्रह्मज्ञान से! एक पूर्ण सतगुरु हमें ब्रह्मज्ञान प्रदान कर परमात्मा के दिव्य प्रकाश रूप से जोड़ देते हैं| फलतः हमारा अन्तस् आलोकित होता है और हम भगवान श्री कृष्ण की तरह जीने की कला सीख पाते हैं| 

Leave a reply