देवता भी करते है मानवता को प्रणाम
इंदौर। साधना के बिना मनुष्य जन्म निरर्थक है। मनुष्य का शरीर जब तक है उसे साधना करते रहना चाहिए। महत्व सिर्फ मनुष्य का नहीं है बल्कि उसकी मानवता का है। जिस मनुष्य में मानवता होती है उसे देवता भी प्रणाम करते हैं। यह प्रणाम शरीर को नहीं बल्कि उसकी मानवता को होता है।
उक्त विचार आचार्य शिवसागर ने चंद्रप्रभु मांगलिक भवन में 99 दिवसीय श्री भक्तामर विधान अनुष्ठान में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि समय का कोई ठिकाना नहीं है। ब़ुढापा आने से पहले आराधना में लग जाना चाहिए, क्योंकि बुढ़ापे में चार कदम भी बिना सहारे चलना मुश्किल रहता है। धर्म करने का सबसे अच्छा समय युवा अवस्था है। अभा पुलक जन मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप बड़जात्या व प्रवक्ता दिलीप पाटनी और नितिन झांझरी ने बताया कि प्रति दिन बड़ी संख्या में समाजजन द्वारा विधान अनुष्ठान किए जा रहे हैं। विश्व शांति महायज्ञ का आयोजन हुआ। 48 काव्यों के अर्घ समर्पित किए गए। महेंद्र निगोत्या, कमल रावका, कांति अजमेरा, शिरीष जैन, दिलीप रत्नावत, हेमू बड़जात्या, अभय झांझरी, वैभव कासलीवाल उपस्थित थे।