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प्रदेश में कृषि उत्पाद लागत एवं विपणन आयोग गठित , राज्य सरकार का सराहनीय प्रयास



डॉ. चंदर सोनाने 
 
                 हाल ही में राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश में कृषि उत्पाद लागत एवं विपणन आयोग का गठन किया है। सरकार का यह प्रयास सराहनीय है। यदि सही मायने में यह आयोग काम कर अपना प्र्रतिवेदन देगा और राज्य सरकार उसका सच्चे मन से क्रियान्वयन करेगी तो निसंदेह यह किसानों के लिए हित में ही होगा।
                 प्रदेश में कृषि उत्पाद लागत एवं विपणन की बेहतर सुविधाओं संबंधी अनुशंसा करने के लिये ’मध्यप्रदेश कृषि उत्पाद लागत एवं विपणन आयोग’ का गठन किया गया है। आयोग का कार्यकाल दो वर्ष का होगा। कृषि कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा आयोग के लिये यथा अपेक्षित प्रशासकीय अमला और बजट उपलब्ध करवाया जायेगा। आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को वेतन भत्ते तथा अन्य सुविधाएँ देने के संबंध में अलग से आदेश जारी किये जायेंगे।
                 राज्य शासन द्वारा इस संबंध में जारी आदेशानुसार कृषि के क्षेत्र में अनुभवी व्यक्ति को इस आयोग का अध्यक्ष मनोनीत किया जायेगा। दो कृषक सदस्य शासन द्वारा मनोनीत किये जायेंगे, जो कृषि कार्य एवं कृषि विपणन के क्षेत्र में अनुभवी होंगे। साथ ही दो कृषि अर्थशास्त्रियों का भी आयोग में मनोनयन किया जायेगा। शासकीय प्रतिनिधि के रूप में पदेन कृषि उत्पादन आयुक्त एवं पदेन प्रमुख सचिव किसान-कल्याण तथा कृषि विकास विभाग आयोग में सदस्य रहेंगे। पदेन संचालक किसान-कल्याण तथा कृषि विकास विभाग आयोग के सचिव होंगे। यह आयोग खरीफ, रबी तथा ग्रीष्मकालीन फसलों की लागत की गणना कर राज्य शासन को अनुशंसा करेगा। राज्य सरकार द्वारा बाजार हस्तक्षेप योजना में अपेक्षा किये जाने पर चयनित जिन्स की बाजार हस्तक्षेप दर के लिये राज्य शासन को सुझाव भी देगा। कृषि विपणन क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिये सुझाव देने के साथ-साथ आयोग शासन के निर्देशानुसार समय-समय पर विभिन्न फसलों के लिये अध्ययन करेगा। इसी के साथ, आयोग शासन को आवश्यकतानुसार कृषि मूल्य संबंधी एवं अन्य उत्पादन संबंधी समस्याओं पर सलाह भी देगा। इसके अलावा आयोग राज्य शासन द्वारा सौंपे गये अन्य कार्य भी करेगा। आयोग खरीफ, रबी एवं ग्रीष्मकालीन फसलों की अवधि से पहले प्रतिवर्ष राज्य शासन को तीन प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
                  अब राज्य सरकार को यह देखना हैं कि आयोग के अध्यक्ष के रूप में जिसे मनोनयन करें , वह मात्र राजनैतिक दृष्टिकोण से मनोनीत नहीं होना चाहिए। अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो कृषि क्षेत्र का दीर्घ अनुभव रखता हों और किसान की वास्तविक समस्याओं का जानकार भी हों। उसे छोटे व सीमांत कृषकों की मूलभूत समस्याओं के बारें में जानकारी भी होना जरूरी है। साथ ही उसे संवेदनशील भी होना चाहिए , ताकि कर्ज में डूबे किसानों द्वारा आत्महत्या करने के कारणों को वह समझे और ऐसा प्रयास करें कि भविष्य में किसान को आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होना पड़े। आयोग के दो सदस्यों का भी मनोनयन राज्य सरकार द्वारा किया जाना है। यह दोनों सदस्य भी वास्तविक कृषि कार्य से जुडे हुए और कृषि विपणन के क्षेत्र के अनुभवी व्यक्ति ही होना चाहिए। आयोग में दो कृषि अर्थशास्त्रियों का भी मनोनयन का प्रावधान है। ये कृषि अर्थशास्त्री भी खेती किसानी से जुडे हुए होना चाहिए, तभी वे अपनी सही अनुसंशाए दे सकेंगे।
                         प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान खुद को किसान पुत्र कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। इसलिए जरूरी हैं कि वें आयोग में अध्यक्ष , सदस्य और कृषि अर्थशास्त्रियों के मनोनयन में विशेष ध्यान रखेंगे। मुख्यमंत्री को यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जैसे ही आयोग अपना प्रतिवेदन दें , उसे फाइलों में कैद नहीं करते हुए उसकी अच्छी अनुशंसाओं को तुरंत क्रियान्वित भी करें।   
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