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सिंहस्थ में शहर संवरा, अब आपका हृदय संवरे तो काम का


धर्मसभा में बोले आचार्य हर्षसागरजी म.सा.-कांच के जैन मंदिर से हुआ गच्छाधिपति दौलतसागरजी संघ त्रिआचार्य का प्रवेश

उज्जैन। सिंहस्थ महापर्व ने उज्जैन को काफी कुछ बदल दिया है, 11 साल बाद उज्जैन आया हूं अब यदि इसी तरह आपका हृदय भी धर्म आराधना, तप व संयम के रूप में संवर जाए तो ही चातुर्मास सार्थक है। मैना सुंदरी की तपस्थली उज्जैनी उनके तप के कारण ही विश्व विख्यात है। इसका यह वैभव जीवन में तप को अंगीकार कर और बढ़ाया जा सकता है। 

यह उद्गार अनेक तीर्थोंध्दारक आचार्य हर्षसागर सूरिश्वरजी म.सा. ने धर्मसभा में व्यक्त किये। इससे पूर्व रविवार सुबह 8.30 बजे दौलतगंज स्थित कांच के जैन मंदिर से सागर समुदाय के गच्छाधिपति आचार्य दौलतसागर सूरिजी, प्रशांत मूर्ति आचार्य नंदीवर्धनसागरजी व आचार्य हर्षसागरजी म.सा. का बैंड बाजों से मंगल प्रवेश जुलूस निकला। महिलाएं सिर पर कलश लेकर तो बालिकाएं प्रभु भक्ति में लीन होकर चली। जिन शासन ध्वजा, वरिष्ठ आचार्यों के चित्र सहित बड़ी संख्या में महिला-पुरूष शामिल रहे। जुलूस दौरान मार्ग में विभिन्न स्थानों पर महिलाओं ने अक्षत व श्रीफल से त्रिआचार्यों की गहुली की। श्री ऋषभदेव छगनीराम पेढ़ी ट्रस्ट सचिव जयंतीलाल तेलवाला व राहुल कटारिया के अनुसार विभिन्न मार्गों से होते हुए जुलूस खाराकुआ तीर्थ पेढ़ी मंदिर पहुंच धर्मसभा में परिवर्तित हुआ। पेढ़ी अध्यक्ष महेन्द्र सिरोलिया, ट्रस्टी गौतमचंद धींग ने संबोधन दिया। इस अवसर पर संजय ज्वेलर्स, प्रकाश नाहर, अशोक भंडारी, संजय खलीवाला, मनोहरलाल जैन, रमेश बोहरा, दिलीप सिरोलिया, रूपचंद जैन, नरेन्द्र तरसिंह, अभय जैन भैय्या, दिनेश जैन हाईकमान, सुशील जैन, राजेन्द्र सिरोलिया, रमणलाल जैन, सुरेश मिर्चीवाला, प्रमोद जैन, राजेश पटनी, राकेश कोठारी, राजेश डगवाला, अमित भंसाली सहित बड़ी संख्या में समाजजन मौजूद रहे। संचालन राहुल कटारिया ने किया। 

आज अवंति पाश्र्वनाथ पहुंचेंगे त्रिआचार्य

सोमवार सुबह 8.30 बजे खाराकुआ पेढ़ी मंदिर से त्रिआचार्य बैंड बाजों के साथ दानीगेट स्थित श्री अवंति पाश्र्वनाथ तीर्थ पर पहुंचेंगे। सुरेश मिर्चीवाला के अनुसार 19 से 21 जून तक मंदिर पर अवंति पाश्र्वनाथ स्नात्र मंडल के संयोजन में त्रिदिवसीय महोत्सव आयोजित होगा। जिसमें पंचकल्याणक पूजा, पाश्र्वनाथ महापूजन, नित्य स्नात्र, प्रवचन, संध्या भक्ति आदि कार्यक्रम होंगे। 

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