500 बड़े डिफाल्टर दबा बैठे हैं बैंकों के 2,40,000 करोड रूपये, किसानों की ऋण माफी के नाम पर सरकार का साफ इंकार
डॉ. चंदर सोनाने
रिजर्व बैंक ने हाल ही में बैंकों से ऋण लेकर उसे नहीं देने वाले 500 बड़े डिफाल्टरों की पहचान की है। इन डिफाल्टरों ने बैंकों के करीब 2,40,000 करोड़ रूपये दबा रखे है। रिजर्व बैंक ने बैंकों का फंसा कर्ज नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) वाले जिन डिफाल्टरों की पहचान की है , उनमें से अकेले 12 खाताधारकों में से हरेक के पास पांच हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का कर्ज बकाया है। इन 12 खाताधारकों के पास फंसे कर्ज की राशि एनपीए के 25 प्रतिषत हिस्से के बराबर है । यानी इन 12 खाताधारकों ने ही वसूल नहीं हो रहे कुल कर्जे का चौथाई हिस्सा दबा रखा है। उल्लेखनीय है कि एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 31 मार्च 2017 तक सरकारी बैंकों के 7.11 लाख करोड़ रूपये के कर्ज को सरकार ने एनपीए माना है।
दूसरी ओर केंद्रीय वित मंत्री श्री अरूण जेटली ने हाल ही में कहा है कि जो राज्य किसानों के कर्ज माफ करेंगे, उसके लिए वह राज्य खुद राशि का भी इंतजाम करें। वित मंत्री ने यह कहकर केंद्र द्वारा राज्यों को देने वाली किसी भी मदद को खारिज कर दिया है। एक तरफ बडे उद्योगपतियों द्वारा लाखों करोड रूपयों को दबा रखा गया है और वे बैंको को यह राशि वापस नहीं दे रहे हैं । इसके लिए बैंक व केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही हैं। यहां तक कि वे ऐसे डिफाल्टरों के नाम भी उजागर करने से बच रही है। वहीं दूसरी और किसानों द्वारा बैंक से जो ऋण लिए गए है, उसकी वसूली के लिए बैंकां द्वारा उनके घर के ट्रेक्टर , जमीन व अन्य संपत्ति जब्त की जा रही है। बैंकों द्वारा गांव में जाकर किसानों को सबके सामने सार्वजनिक रूप से लज्जित भी किया जा रहा है। केंद्र सरकार की यह दोहरी नीति हैं। जो बड़े उद्योगपतियों के लिए अलग और किसानों के लिए अलग अपनाई जा रही है।
उल्लेखनीय हैं कि कुछ समय पूर्व ही उत्तरप्रदेश और पंजाब राज्यों द्वारा तथा हाल ही में महाराष्ट्र द्वारा किसानों की कर्ज माफी की घोषणा की गई है। इन राज्यों द्वारा कर्ज माफी के बदले में केंद्र शासन से मदद की गुहार लगाई जा रही हैं। किंतु हाल ही में केंद्रीय वित मंत्री द्वारा ऐसी सभी संभावनाओं से इंकार करते हुए यह साफ कर दिया गया है कि कर्ज माफी करने वाले राज्य अपने संसाधनों से ही कोष का इंतजाम करें। वे केंद्र के भरोसे नहीं रहें।
केद्र सरकार के वित्त मंत्री का यह कहना कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री द्वारा अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से यह खुलासा किया गया था कि किसानों को उसकी फसल की लागत मूल्य में 50 प्रतिषत लाभ जोडकर उसकी उपज का मूल्य दिलाया जाएगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान बार बार कहा हैं कि खेती किसानी को लाभ का धंधा बनाया जाएगा। किंतु अभी तक ऐसा ठोस प्रयास केंद्र शासन द्वारा नहीं किया गया है जिससे लगे कि केंद्र शासन किसानों के साथ खडी है। रही सही बात केंद्रीय वित मंत्री के बयान ने पूरी कर दी ।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे किसानों के हित में सामने आए और केवल भाषण देकर नहीं , बल्कि किसानों के हित के लिए ठोस पहल करें। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से भी यही अपेक्षा हैं कि वे किसानों के हाल ही के आंदोलन के बाद वास्तविक स्थिति को समझे और किसानों की भलाई के लिए ऐतिहासिक कार्य कर दिखाएँ।
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