आंदोलनकारी 7 किसानों की मौत : एक-एक करोड़ का मुआवजा, क्या अराजक होना फायदेमंद सौदा है ?
संदीप कुलश्रेष्ठ
मध्यप्रदेश के मालवांचल में किसानों का आंदोलन अब समाप्त हो गया है। किंतु यह आंदोलन अनेक प्रश्नचिन्ह छोड़ गया है। किसान आंदोलन के दौरान मंदसौर जिले के पिपलिया मंडी में हिंसक आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोली चलाई। इससे 6 किसान मौके पर मारे गए और एक किसान जो गंभीर रूप से घायल था , उसकी बाद में इंदौर हॉस्पिटल में मौत हो गई । इस प्रकार कुल 7 किसान आंदोलन की बलि चढ़ गए। किसान पुत्र मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने तुरंत प्रत्येक मृतक के परिवार को एक-एक करोड़ रूपये देने, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने और किसान परिवार का बैंक का कर्जा माफ करने की घोषणा कर दी।
मुख्यमंत्री की किसानों को दी गई राहत राशि को लेकर तुरंत ही समाचार पत्रों और सोषल मीडिया पर त्रीव प्रतिक्रिया आनी षुरू हो गई, जो अभी तक चल रही है। सामान्य जन की यह सहज प्रतिक्रिया है कि सामान्यतः पुलिस गोली में मारे गए आंदोलनकारियों को कुछ लाख अर्थात अधिकतम 10 लाख रूपये तक मुआवजा देने की बात सुनने में आती है। किंतु सामान्य मुआवजा से 10 गुना अधिक एक करोड़ रूपये की मुआवजा राशि देना किसी को भी गले नहीं उतर रहा है। किसान पुत्र कहने में गौरव महसुस करने वाले मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने विरोधियों का मुंह बंद करने और अगले साल मध्यप्रदेश में होने वाले चुनाव को देखते हुए संभवतः इतनी बड़ी राहत राशि की घोषणा की है। यह राशि हाल ही में संबंधित किसान परिवार के खातों में जमा भी कर दी गई है।
मुख्यमंत्री की ऐतिहासिक मुआवजा राशि देने की बात पर सोशल मीडिया में अनेक तीखी प्रतिक्रिया आ रही हैं। अनेक लोगों का यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री को राहत राशि देनी थी तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से राहत राशि दी जानी थी । सरकार के खजाने से 1 करोड़ रूपये की मुआवजा राशि देना किसी के भी गले नहीं उतर रहा है। आमजन की यह भी प्रतिक्रिया है कि क्या अराजक होना फायदेमंद है ? आंदोलन के दौरान हिंसक होना और आम जन और सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाना क्या उचित कहा जा सकता है ?
किसी भी आंदोलन में किसी व्यक्ति की जान चले जाना अपरिहार्य क्षति ही कही जाएगी। किसी व्यक्ति की जान की कीमत पैसे से कदापि नहीं चुकाई जा सकती है। उस परिवार की क्षति अपूर्णीय क्षति ही कही जाएगी। किंतु यहां यह प्रश्न खड़ा होता है कि आंदोलन के दौरान हिंसक हो जाना और हिंसक आंदोलनकारियों पर पुलिस के गोली चलाने से किसी की मौत हो जाने पर उस संबंधित परिवार को 1 करोड़ रूपये जैसी बहुत बड़ी राशि देना किस तरह औचित्यपूर्ण कहा जा सकता है ?
पिपलिया मंडी में किसानों के आंदोलन की एक छिपी हुई कहानी हमारे सामने आ रही है। मुख्य रूप से यह किसानों का आंदोलन था ही नहीं । मुख्य रूप से यह किसानों व व्यापारियों के आपसी विवाद का मसला था। जो बाद में किसान आंदोलन में परिवर्तित हो गया। फिर भाजपा ने बैठे बिठाए कांग्रेस को यह मुद्दा तस्तरी में रखकर भेंट कर दिया । कांग्रेस को अच्छा मौका मिल गया और उन्होंने किसान हितैषी पार्टी होने की बात कहते हुए किसानों के आंदोलन में घी डाल दिया और हाथ सेंकने लगे।
मुख्यमंत्री की राहत राशि की घोषणा भविष्य में मुख्यमंत्री के ही गले की हड्डी बन जाएगी। अब भविष्य में यदि ऐसा कोई आंदोलन हुआ और उस आंदोलन में किसान की मौत हो गई तो सहज ही यह मांग उठेगी कि पूर्व में की गई घोषणा के अनुरूप ही राशि दी जाए। यह समस्या सिर्फ मध्यप्रदेश के लिए ही नहीं , बल्कि देश के अन्य राज्यों में किसान आंदोलन के दौरान होने वाले हादसों में भी सामने आएगी। इन सब कारणों से राजनीतिज्ञ विष्लेषकों का यह कहना है कि मुख्यमंत्री को ताबडतोड़ एक करोड़ रूपये की राहत राशि की घोषणा कतई नहीं करनी चाहिए थी। मुख्यमंत्री की घोषणा से उनके राजनीतिक सलाहकारों का मत था कि इससे मुख्यमंत्री का कद बढ़ेगा। किंतु, इससे वास्तव में हो उल्टा रहा हैं। यह मुख्यमंत्री और उनके सलाहकारों के चिंतन मनन का समय है। अब भविष्य में ही पता चलेगा कि मुख्यमंत्री की उक्त घोषणा क्या रंग लाती है।
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