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मुख्यमंत्री आखिर किसानों के वास्तविक प्रतिनिधियों से बात क्यों नहीं कर रहे ?



संदीप कुलश्रेष्ठ
 
                    आज किसानों के आंदोलन का आँठवा दिन है। इस बीच किसान  उग्र और हिंसक भी हो गए। मंदसौर  में पुलिस द्वारा गोली चलाने से छह किसानों की दुखद मौत भी हो गई । पिछले दो दिन के दौरान मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में किसानों का आंदोलन अत्यंत हिंसक हो गया। आंदोलनकारियों ने इस बीच करीब डेढ़ सौ वाहनों को आग के हवाले भी कर दिया। आंदोलन के चौथे दिन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन में आंदोलन करने वाले संगठनों के एक संगठन भारतीय किसान संघ से बातचीत कर आंदोलन समाप्त करने की घोषणा भी कर दी । किंतु उन्होंने यहां एक गलती कर दी। आरएसएस के ही एक अनुसांगिक संगठन भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों से चर्चा की, किंतु आंदोलन में शुरू से एवं वास्तविक रूप से जुडे किसान यूनियन और किसान मजदूर संघ से बात भी करना मुनासिब नहीं समझा । इसका परिणाम यह हुआ कि आंदोलन समाप्त होना तो दूर, आंदोलन और भड़क गया और दिनों दिन उग्र होता चला गया। 
                     प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एक संवेदन शील मुख्यमंत्री और किसान पुत्र मुख्यमंत्री के रूप में अपनी छवि देश भर में बना चुके हैं। अचानक उन्हें ना जाने क्या हो गया हैं कि वे वास्तविक रूप से आंदोलन करने वाले संगठनों के पदाधिकारियों से संवाद ही नहीं कर रहे है। मुख्यमंत्री की यह नीति उनके लिए बहुत नुकसानदायक सिद्ध हो रही है। किसानों पर मंदसौर में हुए गोली कांड और कल भोपाल इंदौर मार्ग पर नेवरी फाटे पर चार पहिया और दो पहिया वाहनों में आग लगाने की घटना ने उनकी छवि को खंडित कर दिया है। पता नही वे किन सलाहकारों की सलाह पर वर्तमान में चल रहे है। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे तुरंत बडप्पन दिखाए और न केवल किसानों के हित में बल्कि प्रदेश के एवं स्वयं उनके हित में आंदोलन करने वाले संगठनों के पदाधिकारियों से तत्काल बातचीत करें। उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुने और तुरंत सकारात्मक निर्णय लें। 
                      करीब छह साल पहले भी किसानों ने भोपाल में सैकड़ो की तादाद में  ट्रेक्टर ट्राली और अन्य वाहन लाकर नाकेबंदी कर अनेक जगहों पर चक्काजाम कर दिया था। उस समय भी इसी तरह अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। तब रातों रात किसान के उस आंदोलन ने भी मुख्यमंत्री की छवि को खंडित किया था। बमुश्किल मुख्यमंत्री ने उस समय उस समस्या से निजात पाई  थी। उस समय भी पुलिस की गुप्तचर सेवा पर प्रश्नचिन्ह लगा था। वही प्रश्नचिन्ह आज फिर लग रहा है। मंदसौर में किसान उग्र हो जाएगें और पुलिस को गोली चलानी पडेगी। ऐसी स्थिति का आभाष भी प्रशासन को नहीं हुआ था। कल भोपाल इंदौर मार्ग पर किसान आंदोलन के हिंसक हो जाने की सूचना भी पुलिस व शासन प्रशासन को नहीं थी। लगता हैं मध्यप्रदेश की गुप्तचर सेवा लकवाग्रस्त हो गई है। 
                        देश भर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की किसान हितैशी छवि को निसंदेह इस किसान आंदोलन ने अत्यधिक क्षति पहुंचाई है। इसकी भरपाई करना अत्यंत मुश्किल है। मुख्यमंत्री को अनाज उत्पादन में देश में नंबर एक होने का तमगा मिला । यही नहीं प्रदेश के अन्नदाताओं की मेहनत और खून पसीने के कारण ही मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय स्तर का कृषि कर्मण अवार्ड भी पांच बार प्राप्त हुआ है। मुख्यमंत्री हर सभा में गौरव के साथ किसान पुत्र होने की बात भी कहते आए हैं। बहुत देर हो गई अब और देर नही होना चाहिए इसलिए अब मुख्यमंत्री को चाहिए कि तुरंत आंदोलन करने वाले वास्तविक पदाधिकारियों से आगे बढ़कर बात करना करें और इस समस्या का तुरंत समाधान निकालें।  
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