किसानों की वाजिब मांगों के स्थायी निराकरण के लिए सरकार को किसान आयोग बनाना चाहिए
डॉ. चंदर सोनाने
पिछले पांच दिनों से चल रहे किसानों के आंदोलन की प्रमुख मांगें कोई नई नहीं हैं । काफी समय से किसान अपनी मांगों के निराकरण के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं । किंतु राज्य सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस कारण अंततः किसानों को आंदोलन का मार्ग अपनाना पड़ा । रविवार रात उज्जैन में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आंदोलन कर रहे किसानों के एक संगठन भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों से चर्चा कर आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा करवा ली। किंतु उनका यह कार्य किसानों में फूट डालों और राज करो कि तरह ही कहा जा सकता हैं। क्योंकि किसानों के दूसरे दो अन्य संगठन किसान यूनियन और किसान मजदूर संघ ने स्पष्ट रूप से कहा हैं कि हड़ताल जारी रहेगीं । इस कारण आज आंदोलन के पांचवें दिन भी किसान दूध, सब्जी आदी लेकर नहीं आए।
आइये, किसानों की मांगां पर एक नजर डालें । राज्य सरकार द्वारा हाल ही में जमीन अधिग्रहण के संबंध में नया प्रावधान लागू किया जा रहा हैं । इसमें षहरी सीमा से लगी कृषि भूमि पर सरकार की योजना लाई जाने पर जमीन अधिग्रहण के प्रकरण में किसान अब कोर्ट नहीं जा सकेंगे। यही नहीं उन्हें मुआवजा मांगने का भी हक नहीं होगा। सरकार जो भी मुआवजा राशि तय करेगी, उसे किसान को लेने पर मजबूर होना पडेगा । नगर तथा ग्राम निवेश (टीएंडसीपी) एक्ट में संशोधन के कारण किसान जमीन अधिग्रहण के संबंध में कोर्ट भी नहीं जा सकेंगे। अर्थात ओद्यौगिक क्षेत्र विकसित करने , पीएसपी योजना यानी सार्वजनिक - अर्द्ध सार्वजनिक योजना, सड़क या ब्रिज बनाने या अन्य सरकारी योजनाओं में किसानों से उनकी जमीन ले ली जाएगी।
सरकार के भूअर्जन के प्रकरण में किसानों को न्यायालय में जाने का अधिकार देने तथा टीएंडसीपी अधिनियम की धारा 34 को पुनः स्थापित करने की मांग को लेकर किसानों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है। खेती को लाभ का धंधा बनाने की बजाय सरकार किसानों से जमीन छीनने के कानून बना रही हैं । कृषि और किसानों को लेकर सरकार की इस दोहरी मानसिकता के विरोध में किसान आंदोलन करने के लिए बाध्य हुए। मध्यप्रदेश मे विशेषकर मालवा क्षेत्र में किसानों के आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा। कुछ किसान उग्र भी हुए और उन्होंने दूध सड़क पर बहा दिया एवं आलू व प्याज सड़क पर बिखेर दिए। यह जरूर आंदोलन के नकारात्मक पहलू हैं। किंतु आंदोलन की प्रमुख मांगां और उसके औचित्य और महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता ।
यह सर्वज्ञात हैं कि वर्तमान में खेती किसानी का काम लाभ का धंधा नहीं होकर हानि का धंधा हो गया है। किसान अपने खेत में अपने परिवार के सभी छोटे बडे सदस्यों के साथ दिन रात मेहनत मजदूरी कर पसीना बहाता हैं । यदि परिवार के सभी सदस्यों की मेहनत की राशि भी जोड ली जाय तो खेती किसानी लाभ का धंधा कतई नहीं हैं।
यह एक आश्चर्य की बात हैं कि राज्य सरकार राष्ट्रीय स्तर का कृषि कर्मण पुरस्कार चार बार प्राप्त कर चुकी हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री पिछले एक दशक से खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात कहते आ रहे हैं । किंतु अभी तक वास्तविक रूप से किसानों की समस्या का समाधान राज्य सरकार नहीं कर पा रही हैं । आज किसानों की हर छोटी बड़ी समस्या का स्थायी निराकरण की दिशा में गंभीरता पूर्वक सोचने विचारने की आवश्यकता हैं । राज्य सरकार को विशेषकर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह को चाहिए कि वे इसके लिए किसान आयोग का गठन करें। इस किसान आयोग के अध्यक्ष व सदस्य खेती किसानी से सक्रिय रूप से जुडे किसानों को ही बनाए। एक वर्ष की अवधि में आयोग को अपना प्रतिवेदन देने के लिए निर्देशित किया जाए। आयोग सीधे किसानों से बात करें। उनकी समस्याए व जरूरत समझें और अपनी सिफारिशे दें। राज्य सरकार उन सिफारिश को बिना विलंब के स्वीकार करें और उसका क्रियान्वयन करना सुनिश्चित करें। संभवतः इससे किसानों की बहुत सारी समस्याएं दूर हो सकेंगी। और खेती लाभ का धंधा भी बन सकेगा।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से लोगों की काफी अपेक्षाएं हैं । किसानों की भी स्वाभाविक रूप से अनेक अपेक्षाएं हैं । उन्हें चाहिए कि वे राष्ट्रीय स्तर पर भी किसान आयोग का गठन करें और राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अलग अलग राज्यों की समस्याओं के निराकरण के लिए ठोस पहल करें तो यह किसानों के लिए कई मायनों में भला होगा। वे भी चाहते हैं कि खेती किसानी लाभ का धंधा बने। कोई किसान कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या नहीं करें। अन्नदाता खुशहाल रहें । इसके लिए अब समय आ गया हैं कि वें किसानों के हित में ऐसा कोई स्थायी कार्य करें, जिसके लिए उन्हें सदा के लिए स्मरणीय व्यक्ति के रूप में किसान याद रख सकें।
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