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गौ संरक्षण व संवर्धन की परम आवश्यकता – साध्वी आस्था भारती



समाज में जन्म लेती बुराईयों का अंत करने हेतु अवतार लेते है भगवान – साध्वी आस्था भारती
 
मॉडल टाउन, रेवाड़ी (हरियाणा) के हिन्दू सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दिनांक 21 मई से 27 मई तक ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का आयोजन किया जा रहा है| दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी विदुषी सुश्री आस्था भारती जी ने कथा में समुद्र-मंथन व कृष्ण जन्म प्रसंगों को प्रस्तुत किया एवं इनमें छुपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों से भक्त-श्रद्धालुओं को अवगत भी कराया। साध्वी जी ने संस्थान के देसी गौ संरक्षण व संवर्धन कार्यक्रम - कामधेनु की चर्चा करते हुए कहा कि गौ भारतीय संस्कृति का आधार है। आज देसी नस्लें लुप्त होती जा रही हैं। गौ वध समाज के लिए एक कलंक बन चुका है। इसलिए गौ संरक्षण व संवर्धन की परम आवश्यकता है। इसी कारण से श्री आशुतोष महाराज जी के दिशा-निर्देशन में संस्थान द्वारा कामधेनु प्रकल्प चलाया जा रहा है। जिसके अंतर्गत देसी गौ की वृद्धि हेतु जन-जन को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कथा प्रसंगों में प्रभु श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग भी शामिल था, जिसे नन्दोत्सव के रूप में मनाया गया। जिस में सभी नर-नारी और बच्चों ने खूब आनन्द लिया। बहुत सारे बच्चे कृष्ण के सखा बनने की इच्छा से सज-धज कर पीले वस्त्र पहनकर इस उत्सव में शामिल हुए। नन्दोत्सव की छटा अद्भुत थी| ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समूचा पंडाल ही गोकुल बन गया हो| केवल ग्वाल-बालों के रूप में सजे बच्चों ने ही नहीं बल्कि सभी आगंतुकों ने भी कृष्ण जन्म के अवसर पर खूब माखन-मिश्री का प्रसाद पाया।
      श्रीकृष्ण जन्म के अवसर पर इस प्रसंग में छुपे आध्यात्मिक रहस्यों का निरूपण करते हुए साध्वी जी ने बताया जब-जब इस धरा पर धर्म की हानि होती है, अधर्म, अत्याचार, अन्याय, अनैतिकता बढ़ती है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए करुणानिधान ईश्वर अवतार धारण करते हैं। प्रभु का अवतार धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए, साधु-सज्जन पुरुषों का परित्राण करने के लिए और असुर, अधम, अभिमानी, दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश करने के लिए होता है।
      साध्वी जी ने बताया कि धर्म कोई बाहरी वस्तु नहीं है। धर्म वह प्रक्रिया है जिससे परमात्मा को अपने अंतर्घट में ही जाना जाता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं– Religion is the realization of God अर्थात परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है। जब-जब मनुष्य ईश्वर भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोड़कर मन माना आचरण करने लगता है तो इस से धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ फैल जाती हैं। धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद-भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है तब प्रभु अवतार लेकर इन बाहरी आडम्बरों से त्रास्त मानवता में ब्रह्मज्ञान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं। कृष्ण का प्राकट्य केवल मथुरा में ही नहीं हुआ, उनका प्राकट्य तो प्रत्येक मनुष्य के अंदर होता है,जब किसी तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की कृपा से उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
      जिस प्रकार कृष्ण के जन्म से पहले घोर अंधकार था, कारागार के ताले बंद थे, पहरेदार सजग थे, और इस बंधन से छूटने का कोई रास्ता नहीं था। ठीक इसी प्रकार ईश्वर साक्षात्कार के आभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकार मय है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं है। उसके विषय-विकार रूपी पहरेदार इतने सजग हो कर पहरा देते रहते हैं और उसे कर्मबंधनों से बाहर नहीं निकलने देते।
      परन्तु जब किसी तत्वदर्शी महापुरुष की कृपा से परमात्मा का प्राकट्य मनुष्य हृदय में होता है, तो परमात्मा के दिव्यरूप ‘प्रकाश’ से समस्त अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाते हैं। विषय-विकार रूपी पहरेदार सो जाते हैं, कर्म बंधनों के ताले खुल जाते हैं और मनुष्य की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसलिए ऐसे महापुरुष की शरण में जाकर हम भी ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करें तभी हम कृष्ण जन्म प्रसंग का वास्तविक लाभ उठा पाएंगे।
      इस कथा की मार्मिकता वरोचकता से प्रभावित होकर अपार जनसमूह के साथ-साथ शहर के विशिष्ट नागरिकों ने भी इन कथा प्रसंगों को श्रवण किया। श्रीमद्भागवत कथा में भाव विभोर करने वाले मधुर संगीत से ओत-प्रोत भजन-संकीर्तन को श्रवण कर भक्त-श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर झूमने को मजबूर हो गए।

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