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जो अपने मित्रों के दुख में दुखी नहीं होते उन्हें देखने से ही पाप लगता


भोपाल। राम-सुग्रीव की मित्रता ने रावण जैसे बलशाली राक्षस को मारने में अपना सहयोग प्रदान किया। समाज में बताया गया कि व्यक्ति को अपना पहाड़ जैसा दुख, राई जैसा समझना चाहिए और मित्र का राई जैसा दुख पहाड़ के समान समझना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि जो अपने मित्रों के दुख में दुखी नहीं होते उन्हें देखने से ही पाप लगता है। यह सद्विचार कथा व्यास आचार्य परमानंद शास्त्री ने मंगलवार को पवित्र धाम गुफा मंदिर में श्रीमद्भागवत सेवा समिति के तत्वावधान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र का मार्मिक वर्णन कर लोगों को भाव विभोर कर दिया। आचार्यश्री ने कहा कि वास्तव में मित्रता से बड़े से बड़े काम सम्भव हो जाते है। अभी तक जितने भी ग्रन्थों में पढ़ा गया। वहां कहीं न कहीं मित्रता को श्रेष्ठ बताया गया है। सुदामा चरित्र से पूर्व रूकमणी विवाह का कथा के माध्यम से सुंदर चित्रण किया गया। उन्होंने कहा कि जब-जब लोग विपत्ति में आते हैं, किसी न किसी तरह भगवान श्री कृष्ण लोगों के दुखों को दूर करते है। अंत में उन्होंने जामवंत प्रसंग को सुनाते हुए श्रीमद् भागवत के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि यह ग्रंथ मानव जीवन के मोक्ष का महत्वपूर्ण साधन है। व्यक्तिों को अच्छे संस्कार मीठी वाणी एवं अपने चरित्र को बचाते हुए जीवन का निर्वाह करना चाहिए। क्योंकि मनुष्य का जीवन बहुत ही कठिनाईयों के बाद प्राप्त होता है। इसे सुयोग्य रूप से व्यतीत करना चाहिए।

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