और राम कर दिया माता सीता का परित्याग
भोपाल। अयोध्या के राजा राम के आदेश से सारथी माता सीता को लेने राजमहल माता सीता के पास पहुंचता है। जब वह साथ चलने लगती हैं,तो विचार करती है कि संभवतः गर्भावस्था में मेरी तीर्थदर्शन की कामना को देखते हुए स्वामी ने रथ भेजा है। लेकिन सारथी पूरे वेग से रथ को ले जाकर अयोध्या से काफी दूर घने जंगल में रोकता है,तो माता सीता स्तब्ध रह जाती हैं। रुंधे गले से सारथी बताता है कि माता, स्वामी ने आपका परित्याग कर दिया है। यह सुनकर सीताजी मूर्छित सी हो जाती हैं। वह कामना करती हैं,कि यह धरती फट क्यों नहीं जाती,ताकि मैं उसमें समा जाऊं। हिम्मत जुटाकर जब सारथी स्वामी के लिए कोई संदेश पूछता है। बिलखते हुए सीताजी कहती हैं,होनहार होकर रहे, गर्भवती सीता बीहड़ वन में रोये मुझे छोड़कर हे स्वामी आप सुख से रहना। मैं तो ठहरी एक अभागन कर्मों की मारी। इसलिए मुझ पर आई विपदाएं भारी।
इकबाल मैदान में चल रही संगीतमयी रामकथा के आठवे दिन जैन संत ध्यानसागर महाराज ने जब रामयण के इस प्रसंग की प्रस्तुति दी,तो खचाखच भरे पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं की आंखे भींग गईं। इसके पूर्व उन्होंने रावण के वध के पश्चात अयोध्या वापस लौटने और राजतिलक होने का वृतांत प्रस्तुत किया।
माता कौशल्या दक्षिण दिशा में अपलक निहारती रहती है
रावण वध के पश्चात श्रीराम रावण की रानियों को उपदेश देकर उनका संताप दूर करते हैं। तत्पश्चात विभीषण,हनुमान,सुग्रीव आदि जाकर माता सीता को धर्म की विजय का समाचार सुनाते हैं और माता सीता को साथ लेकर आते हैं। संतश्री बताते है कि कुुछ रामायणों में प्रसंग है कि सीताजी के रावण के यहां काफी समय तक निवास करने पर जनता को संदेह होने की बात श्रीराम के मन में आती है। अंततःवह अग्नि परीक्षा का निर्णय लेते हैं। सीताजी के सतीत्व से अग्नि उन्हें स्पर्श तक नहीं करती। देवता पुष्पवर्षा करते है। इस बीच नारद जी वहां पहुंचते है। वह श्रीराम को बताते हैं कि माता कौशल्या अपने राजा राम के दर्शन के लिए दक्षिण दिशा की तरफ अपलक निहारती रहती हैं। वह आप लोगों को लेकर ंिचंतित रहती हैं।
अयोध्या में उल्लास
श्रीराम,सिया,लक्ष्मण आदि पुष्पक विमान से अयोध्या में पहुंचते हैं। समूची अयोध्या हर्ष में डूब जाती है। माता कौशल्या,भरत,शत्रुघ्न के साथ भारी जनसमुदाय उनकी अगवानी करता है। इस बीच श्रीराम देखते हैं कि माता कैकई नहीं दिख रहीं। वह उनके पास पहुंचते हैं,और कहते हैं,हे माते आपके उपकार से ही मुझे कई संत जनों के दर्शन हुए। मैं आपका आजीवन ऋणी रहूंगा। अंततः शुभ घड़ी आती है और राजा राम का राजतिलक होता है। वह शपथ लेते हैं कि मैं प्रजा को अपना परिवार मानूंगा, सभी को स्नेह दूंगा। सभी को न्याय प्रदान करूंगा और भावुकता को कभी कर्तव्य के आड़े नहीं आने दूंगा। राजपाट चलता रहता है। इस बीच अयोध्या वासियों में सीता की अग्नि परीक्षा की बात पता चलती है।यह बात राजा राम तक पहुंचती है। श्रीराम सोचते हैं कि मैने प्रजा पालन का वचन लिया था। आज प्रजा को मुझ पर शंका हो रही है। अंततः लोक मर्यादा को देखते हुए श्रीराम,सीताजी के परित्याग का फैसला कर लेते हैं। इस अवसर पर महापौर आलोक शर्मा, प्रमोद हिमांशु,सोनू भाभा,संजय मुंगावली आदि मौजूद थे।