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रावण ने दी लक्ष्मण को शिक्षा


भोपाल। श्रीराम-रावण के बीच भीषण युद्ध के दौरान अंततः रावण बुरी तरह घायल होकर धरती पर गिर गया। उसकी मौत को सन्निाकट देख प्रभु राम ने लक्ष्मण से कहा कि प्रकांड विद्वान रावण से तुम कुछ शिक्षा सूत्र ले लो। अंतिम समय में दशानन ने तीन बातें कहीं। पहली कभी शुभ काम में देर मत करना। बड़ा कदम उठाने पहले बड़ों की सलाह पर विश्वास करना। हे लक्ष्मण तीसरी बात क्रोध के साथ कोई निर्णय नहीं करना। मैंने क्रोध के वशीभूत होकर अनुज विभीषण को लंका से निकाल दिया। उसने मेरे सारे भेद राम को बता दिए। जिसके चलते में मृत्यु को प्राप्त हुआ। अंत में हे राम मुझे क्षमा करना...। कहते हुए लंकापति रावण ने प्राण त्याग दिए।

यह उद्गार जैन संत ध्यान सागर महाराज ने मंगलवार सुबह इकबाल मैदान में व्यक्त किए। वह रामकथा के सातवें दिन धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। इसके पूर्व संत श्री ने सीता के विरह में भटक रहे श्रीराम ,लक्ष्मण और उनके हनुमान से मिलन के साथ ही लक्ष्मण को शक्ति लगकर मूर्छित होने के प्रसंग की मार्मिक सजीव प्रस्तुति दी,तो श्रद्धालुओं की आंखें छलक आईं।

रामायण का मणिकांचन योग है श्रीराम-हनुमान का मिलन
संतश्री ने कहा कि शबरी ने श्रीराम को बताया,कि आगे किष्किंधा पर्वत पर बड़े शक्तिशाली वानर,भालू रहते हैं। वे सीता की खोज में आपके सहायक सिद्ध होंगे। आगे बढ़ने पर श्रीराम का हनुमानजी से मिलना होता है। आचार्यश्री ने बताया कि रामायण में प्रभु राम का हनुमानजी से मिलने 'मणिकांचन योग'के रूप में जाना जाता है। हनुमानजी उन्हें वानरों के राजा सुग्रीव से मिलवाते हैं। श्रीराम बालि का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना देते हैं। तब सुग्रीव शपथ लेते हैं कि यदि सात दिन में माता सीता का पता नहीं ढूंढा तो वह अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन उत्सव में डूब जाने के कारण छह दिन बीत जाते है,तब क्रोधित लक्ष्मण, सुग्रीव के दरबार में पहुंचते हैं। उनके तेवर देख भयभीत सुग्रीव क्षमा मांगते हुए अपनी सेना को माता सीता की खोज में लगा देते हैं।

श्री राम के भय के कारण चोरी से किया सीता का हरण
रत्नजटी नाम के वानर से पता चलता है कि माता सीता का हरण रावण ने किया है,वह उन्हें विमान से लंका ले गया है। इतना पता चलते ही हनुमानजी निशानी के रूप में श्रीराम की अंगूठी लेकर सुमुद्र लांघकर लंका जा पहुंचते हैं। वहां विभीषण से मित्रता होती है। पता मिलने पर वह अशोक वाटिका में जाकर माता सीता से भेंट कर प्रभु राम के बारे में जानकारी देते हैं। इसके बाद लंका में दशानन के समक्ष श्री राम के दूत के रूप में जाकर माता सीता को सम्मान सहित लौटाने को कहते हैं। अभिमानी रावण जब अपने पराक्रम का बखान करता है,तो हनुमानजी कटाक्ष करते हैं,कि श्री राम से तुम तभी डर गए थे। इसलिए तुमने छल से श्रीराम को और लक्ष्मण को कुटिया से दूर भेजकर माता सीता का अपहरण किया। यह तो चोरी हुई,तुम चोर हो। कुपित रावण उनकी पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। फलस्वरूप हनुमान पूरी लंका जला डालते हैं। इस अग्निकांड में सिर्फ विभीषण का भवन और अशोक वाटिका का वह हिस्सा सुरक्षित बचता है,जहां माता सीता विराजमान थीं। उधर सीताजी को वापस देने की बार-बार विनय करने पर रावण,विभीषण को लंका से निकाल देता है। वह श्रीराम की शरण में चला जाता है।

माता पूछेगी,लखन कहां है,तो मैं क्या जवाब दूंगा...
लंका से वापस लौटने पर युद्ध की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। नल-नल वानरों को पानी में पत्थरों के तैरने के मिले वरदान से लंका तक सेतु बनाने का काम पूरा कर सेना पहुंचकर लंका को चारों तरफ से घर लेती है। अंततःभीषण युद्ध शुरू हो जाता है। इस दौरान अचानक लक्ष्मण को अमोघ विजया शक्ति लग जाती है और वह मूर्छित होकर गिर पड़ते हैं। उपचार का पता चलते ही हनुमानजी लंका से वैद्य सुषेण को उसके महल सहित उठा लाते हैं। सुषेण ने संजीवनी बूटी, सूर्योदय से पहले ले आने पर ही लक्ष्मण के प्राण बच सकने की जानकारी दी। हनुमानजी बूटी लेने चल पड़ते हैं। इधर राम,मूर्छित पड़े लक्ष्मण के पास बैठकर कहते हैं,कि यह क्या हो गया। माता कौशल्या पूछेगी,कि लखन कहां है,तो मैं क्या जवाब दूंगा। साथ ही कहते हैं कि यदि सूर्योदय के पहले समाधान नहीं आया,तो में भी प्राण तज दूंगा। इस बीच हनुमान समय पर बूटी लेकर पहुंच जाते हैं और लक्ष्मण की मूर्छा दूर हो जाती है। अंततः युद्ध में रावण मारा जाता है। श्री राम उसकी पत्नियों को सांत्वना देते हैं।

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