जैन संत के मुखारबिंद से हो रहा राम कथा का वाचन
भोपाल। लंका नरेश दशासन के अत्याचार से चहुंओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। ऐसे में अत्याचार का नाश करने अयोध्या में राजा दशरथ के घर प्रभु राम का जन्म हुआ। श्री राम के जन्म से जहां अयोध्या आल्हादित हो गई, वहीं देवताओं ने भी हर्ष मनाया। जन्म के समय ही निमित्त ज्ञानी ने राजा-रानी को बताया कि यह बालक हाथी के समान शक्तिशाली धीर-गंभीर होगा। शेर की तरह पराक्रमी होगा। सूर्य के समान तेजस्वी होने के साथ ही चंद्रमा की तरह शीतल व्यक्तित्व का धनी होगा। उसे क्रोध का स्पर्श नहीं के बराबर होगा।
यह सद्विचार जैन संत छुल्लक ध्यान सागर महाराज ने गुरुवार को व्यक्त किए। आचार्यश्री इकबाल मैदान में शुरू हुई रामकथा के दूसरे दिन धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि कैकसी के पुत्र दशानन ने पराक्रम के साथ कई विद्याएं भी सीखी थीं। उसका भाई कुंभकर्ण और बहन शूर्पनखा को भी मायावी विद्याओं में महारथ हासिल थी। जिसके चलते दशानन ने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया था। देव-मानव सभी उसके आतंक से भयाक्रांत थे।
गंधर्व काल में आया स्वप्न हुआ साकार
इधर राजा दशरथ की रानी कौशल्या ने रात्रि के गंधर्व काल (ब्रह्म मुहुर्त) में चार स्वप्न देखे। इसमें क्रमशः सफेद हाथी, शेर, सूर्य और चंद्रमा के दर्शन हुए। स्वप्न देखने के बाद से ही रानी का शरीर पुलकित हो उठा। उनका मुखड़ा खिल उठा। सुबह कौशल्या ने स्वप्न की बात राजा दशरथ को बताई। उन्होंने तत्काल निमित्त ज्ञानी (विशेष ज्योतिषी) को बुलाया। उसने बताया कि हे राजन, महारानी कुछ माह के उपरांत एक महापुरुष को जन्म देने वाली हैं। वह मर्यादा पुरुषोत्तम होगा। वह ब्रह्मलोक से अवतरित हो चुका है। वह धीर-गंभीर, पराक्रमी, सूर्य के समान तेजस्वी और चंद्रमा के समान शीतल व्यक्तित्व वाला होगा। संत श्री ने कहा कि श्री राम एक धीर-वीर महापुरुष थे। जो धीर-वीर होते हैं, वो उत्तेजित नहीं होते। लेकिन मर्यादा को तोड़े बिना ऐसा काम कर डालते हैं, जो संसार में कोई दूसरा कर ही नहीं सकता।
राम का दो और बाकी तीनों भाइयों का नाम तीन अक्षर का रखा गया
संतश्री ने बताया कि कौशल्या को पुत्र को जल्द से जल्द देखने की अभिलाषा बढ़ने लगी। गर्भकाल पूरा होने पर भगवान राम का जन्म हुआ। इसी तरह स्वप्न के आधार पर अन्य रानियों से भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। चारों में से राम का नाम दो अक्षर का रखा गया, बाकी तीनों पुत्रों का नाम तीन अक्षर का रखा गया। सूने महल में किलकारियां गूंजने से अयोध्या नगरी आल्हादित हो गई। धीरे-धीरे बालकों के बड़े होने पर राजा दशरथ ने उन्हें शिक्षा के लिए गुरुकुल भेजने की तैयारी की।
भारत की संस्कृति ज्योति से ज्योति जलाने की है, मोमबत्ती बुझाने की नहीं
मुनिश्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति में बालक का जन्म होने और जन्म दिन मनाने पर नुक्ती (बूंदी) के लड्डू बांटे जाते हैं। घी का दीपक जलाया जाता है। लेकिन पाश्चात्य संस्कृति हावी होने से अब केक काटा जाता है। उस पर उम्र के हिसाब से लगी मोमबत्तियां बुझाकर बर्थ-डे मनाया जाता है। इसी तरह हाथ जोड़कर प्रणाम करने के बजाए, हाथ मिलाकर अभिवादन की परंपरा चल निकली है। लेकिन सही मायने में भारतीय संस्कृति ज्योति से ज्योति जलाने की सबको जोड़ने की है। मोमबत्तियां बुझाने की नहीं है।
संत श्री के सद्विचार
-जो वाणी करुणा से उत्पन्ना होती है, वह शांति का मार्ग दर्शाने वाली होती है। उसका प्रभाव पशुओं पर भी पड़ता है।
-साधुओं के बारे में अनर्गल बोलना बहुत सरल होता है, लेकिन उसका परिणाम बहुत भारी होता है।
-स्नेह और बैर की गांठें बड़ी प्रगाढ़ होती हैं। कभी-कभी स्नेह, बैर में बदल जाता है और कभी-कभी बैर छूटकर स्नेह में बदल जाता है।
-कोई भी घटना किसी को विचलित नहीं करती,लेकिन उसे देखकर जो अंतर में तरंगें उठती हैं, वह ठेस पहुंचाती हैं।