सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या....?
- ललित गर्ग -
भारत और पाकिस्तान भले ही किसी मंच पर एक दूसरे से हाथ मिलाते दिख जाते हों, लेकिन दिलों की दूरियां साफ नजर आती हैं। कशमकश ये है कि हाथ मिल जाते हैं लेकिन दिल नहीं मिल पाते। यही कारण है कि दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट कम होने का नाम ही नहीं लेती है। एक बार फिर दोनों देशों के बीच तनाव को साफ देखा जा सकता है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान बार-बार ऐसा कुछ कर जाता है कि उसकी नियत में खोट के दर्शन हो ही जाते हैं और सामान्य रिश्ते कायम करने की कोशिशों पर पानी फिर जाता है। पाकिस्तान की एक फौजी अदालत ने कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाकर यह साफ कर दिया है कि वह भारत के साथ दोस्ती नहीं चाहता है। यह उसका विडम्बनापूर्ण सोच ही कही जायेगी कि इस तरह धोखे से अगवा कर भारत का जासूस बताकर फौजी अदालत में मुकद्दमा चलाया जाना और उन्हें फांसी का सजा सुनाया जाना न केवल अन्तर्राष्ट्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन है, बल्कि जानबूझकर युद्ध के हालात निर्मित करने की मंशा को दर्शाता है। अनेक प्रश्न खड़े हुए हैं, न केवल भारत एवं दुनिया बल्कि पाकिस्तान के भीतर भी इस मसले को लेकर घोर विरोधाभास देखने को मिल रहा है। प्रश्न यह भी है कि पाकिस्तान की यह फौजी अदालत एक गैर फौजी पर कैसे मुकद्दमा चला सकती है? एक अहम सवाल यह भी उठता है कि वहां की सरकार जाधव को किस आधार पर जासूस साबित कर सकती है?
ऐसा लगता है कि शांति एवं सभ्य जीवन मूल्यों की उसके यहां कोई जगह नहीं है, तभी तो न्याय की वैश्विक धारणा को दरकिनार कर बगैर किसी सबूत के बंद कमरे में किसी को इस तरह सजा सुनाई गयी है। सरबजीत की तरह जाधव का मामला भी काफी संवेदनशील हो गया है, इसलिए तल्खी और बढ़ने के ही आसार हैं। भारत सरकार का कठोर रवैया जाहिर करता है कि वह जाधव के बचाव में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहता। यह उचित भी है। सिर्फ इसलिए नहीं कि जाधव भारतीय नागरिक हैं और नौसेना में अधिकारी रह चुके हैं, बल्कि खासकर इसलिए कि उनके खिलाफ न्यायिक कार्यवाही की विश्वसनीयता में ढेर सारे छेद हैं।
पठानकोट और उड़ी में हुए आतंकी हमलों के कारण पिछले साल दोनों देशों के बीच तनाव रहा था। अब जाधव को नाजायज तरीके से फांसी की सजा सुनाकर पाकिस्तान ने तनाव का माहौल निर्मित कर दिया है। यह पाकिस्तान का अहंकार ही है। यह ऐसा अहंकार है जो अंधेेपन का भी प्रतीक है। अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु की ओर। जब तक इस अहंकार का विसर्जन नहीं होता, तब तक चाहे दुश्मनी मैदानों, सीमाओं पर, आकाश में बन्द हो जाए, दिमागों में से बन्द नहीं हो सकती। दिमाग की दुश्मनी, मैदान से ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि उसी से बार-बार कड़वाहट के दंश पैदा होते हैं।
कुलभूषण जाधव भारतीय नौ सेना के निवृत अधिकारी हैं। उनका जन्म 1970 में महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था। इनके पिता का नाम सुधीर जाधव है, वे 1987 में नेशनल डिफेन्स अकादमी में प्रवेश लिया तथा 1991 में भारतीय नौ सेना में शामिल हुए। उसके बाद सेवा-निवृति के बाद ईरान में अपना व्यापार शुरू किया। 29 मार्च 2016 को पाकिस्तान ने उन्हें बलूचिस्तान से गिरफ्तार बताया, वहीं भारत सरकार का दावा है कि उनका ईरान से अपहरण हुआ है।
पाकिस्तानी फौजी अदालत द्वारा सामान्य नियम-कानूनों और अंतरराष्ट्रीय परंपराओं को धता बताते हुए भारतीय नागरिक जाधव को जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनाया जाना एक सोची-समझी रणनीति एवं षडयंत्र का हिस्सा है जो रह-रह कर नफरत एवं कड़वाहट की नयी मुद्राएं तलाशती है। पाकिस्तान झूठ का सहारा लेने के साथ ही ढिठाई पर भी आमादा दिख रहा है। वह मनमाने तरीके से काम करने वाली अपनी फौजी अदालत की कारस्तानी का बचाव करने के साथ ही यह भी प्रदर्शित कर रहा है जैसे कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा उसकी ओर से आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया कदम है। पाकिस्तान के फरेब को बेनकाब करने की कोशिश में यह ध्यान रखा जाना ज्यादा जरूरी है कि यह एक ऐसा देश है जो नित नए बहाने बनाने, घड़ियाली आंसू बहाने और उनके जरिये दुनिया की आंखों में धूल झोंकने में माहिर है। स्पष्ट है कि भारत को अपनी उंगली टेढ़ी करने के लिए तैयार रहना चाहिए और इस तरह की घटनाओं का जबाव माकुल तरीके से देना ही चाहिए। कभी-कभी दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना एवं ईट का जबाव पत्थर से देना आवश्यक हो जाता है।
पिछले साल जाधव की गिरफ्तारी के बाद से ही भारत सरकार ने अनेक बार पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को लिखकर दे चुकी कि वे सेना के रिटायर्ड अधिकारी हैं और ईरान में अपना व्यापार करते थे। रॉ से उनका कोई कनेक्शन नहीं है, उन्हें छोड़ दिया जाए। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज खुद यह स्वीकार कर चुके हैं कि जाधव को भारतीय जासूस साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत उनकी सरकार के पास नहीं है। भारत जब सबूत मांगता है तो पाकिस्तान जाधव की चंद मिनटों की एक तथाकथित रिकॉर्डिंग दिखाता है। इस बनावटी, मनगढन्त या आधी-अधूरी वीडियो क्लिपिंग के आधार पर पाकिस्तान की फौजी अदालत को जाधव के लिए मृत्युदंड ही उचित लगा तो उसके मनसूबों को समझना होगा? पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में इस अदालत के खिलाफ पहले से ही मुकदमा कायम है।
दक्षिण एशिया में पाकिस्तान इकलौता मुल्क है, जिसकी फौज सड़क चलते लोगों को उठाकर बंद कमरे में उन पर मुकदमा चलाती है। संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों के मुताबिक जासूसी के आरोप में पकड़े गए व्यक्ति के नागरिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। दुनिया के तमाम देशों में फौजी अदालते हैं, भारत में भी हैं, लेकिन वे फौज से जुड़े मामले ही देखती हैं। बाकी सारे मामले, चाहे वे कितने भी विकट क्यों न हो, नागरिक अदालतों में ही अपने अंजाम तक पहुंचते हैं। मुंबई आतंकी हमले के बाद अजमल कसाब पर दो साल मुकदमा चला, सारे सबूत खुली अदालत में पेश हुए और पाकिस्तान को उनमें से एक पर भी एतराज करते नहीं बना। इतना ही नहीं, भारत-पाक बंटवारे के बाद से भारत ने जितने भी पाकिस्तानी जासूस पकड़े, एक को भी सजा-ए-मौत नहीं दी। आखिर कब तक भारत नम्र बना रहे, कब तक सदाशयता का परिचय देता रहे? जाधव का मामला पाकिस्तान में वहां की सियासत के भारत विरोधी पूर्वाग्रहों को ही जाहिर करता है। इस देश को सोचना होगा कि निराधार आरोप के तहत एक भारतीय को सबसे बड़ी सजा सुनाकर वह दोनों देशों के रिश्ते इतने खराब कर लेगा, कि वहां से वापसी बहुत मुश्किल हो जाएगी। न केवल वह भारत के साथ रिश्तों को कडवाहटपूर्ण बनायेगा बल्कि अपने ही देश के लिये नागरिकों के लिये भी अंधेरी दिशाओं एवं निराशाओं को ही रौपेगा। क्योंकि किसी भी दो देशों के आपसी शांति एवं सौहार्द के संबंध दोनों देशों की राजनीति की दिशा तो तय करते ही है समय और समाज को गढ़ कर उसे पुष्पित भी करते हैं। दोनों देशों की साझा संस्कृतियों की मिठास दोनों देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कैनवास पर चटख रंग भर उसे ऊर्जावान करती हैं, पर दोनों देशांे के रिश्तें बिगड़ जाए तो इसका भी सीधा असर दोनों देशों के जनमन और शासन पर पड़ता है। भारत सदैव ही शांति के माहौल का हिमायती रहा है, कड़वाहट खत्म कर रिश्तों में मिठास भरने का, दोस्ती का, शांति का, समझौता का प्रयास करता रहा है। हम कब तक पाकिस्तान के दिये घावों से लहू-लुहान होते रहेंगे, आखिर कब तक?
जाधव को फांसी की सजा सुनाने के खिलाफ देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई है, और होनी भी चाहिए। यह देश के अस्तित्व एवं अस्मिता का सवाल है। संसद में सभी राजनीतिक दलों की एकजुटता भी वक्त की मांग थी। यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्री और गृहमंत्री की ओर से पाकिस्तान को न केवल सख्त शब्दों में चेताया गया, बल्कि कुलभूषण जाधव को बचाने के लिए सभी विकल्प इस्तेमाल करने का भी भरोसा दिलाया गया। इस सिलसिले में परिपाटी से हटकर कदम उठाने के भी संकेत दिए गए और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पाकिस्तान की पोल खोलने के भी। निःसंदेह यह सब घटनाक्रम आम जनता और साथ ही कुलभूषण जाधव के परिवार को ढांढस बंधाने वाला है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसमें संदेह है कि पाकिस्तान की चैतरफा निंदा-भत्र्सना, संसद के भीतर-बाहर राजनीतिक एकजुटता अथवा उसके खिलाफ कोई प्रस्ताव पारित करने से उसकी सेहत पर कोई असर पड़ेगा। हैरत नहीं कि वह इन सब गतिविधियों के जवाब में अपने यहां भारत विरोधी उन्माद पैदा करने की कोशिश करे। वैसे भी यह उसके लिए बहुत आसान काम है। पाकिस्तान के प्रति अपनी नाराजगी से दुनिया को जोर-शोर से परिचित कराने में हर्ज नहीं, लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसे कदम उठाने भी आवश्यक हैं जिससे वह कुलभूषण जाधव के मामले में अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करने के लिए विवश हो। ऐसे कदम उठाते समय इसकी परवाह नहीं की जानी चाहिए कि पाकिस्तान से द्विपक्षीय रिश्ते कितने बिगड़ जाएंगे, क्योंकि वे तो पहले से ही बिगड़े हुए हैं। यह समझने की जरूरत है कि अगर पाकिस्तान को कूटनीतिक रिश्तों की तनिक भी चिंता होती तो वह फर्जी अदालती प्रक्रिया का सहारा लेकर कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा नहीं सुनाता। यह ठीक नहीं कि हमारे नीति-नियंता खराब से खराब हालात में भी पाकिस्तान से संबंध सुधार की ललक दिखाते रहते हैं। दरअसल इसी रवैये के चलते पाकिस्तान के हाथोें बार-बार धोखा खाना पड़ता है। पिछले तीन-चार दशकों में पाकिस्तान ने रह-रह कर पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है, लेकिन एक अदद सर्जिकल स्ट्राइक के अलावा उसे सबक सिखाने का और कोई उल्लेखनीय उदाहरण नहीं दिखता। पाकिस्तान को सबक सिखाने के मामले में यह भी याद रखा जाना चाहिए कि सब कुछ अपने बलबूते ही करना होगा। अब इंतजार नहीं, इंतजाम करने होंगे।
देश की आजादी की लड़ाई तथा बाहरी आक्रमणों के समय जिस प्रकार समूचा राष्ट्र दलगत राजनीति और क्षुद्र स्वार्थ भूलकर एक हो गया था, आज वक्त है पाकिस्तान के आतंकवाद एवं हिंसा-अशांति के हरकतों को विराम देने के लिए सभी को एक राय होने का, एकजूट होने का। चाहे वह किसी पार्टी या सम्प्रदाय का हो। अन्यथा बहुत कुछ नहीं, सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या....?