मनुष्य बनाने का फार्मूला है रामकथा, ईंशा अल्लाह फिर मिलेंगे और राम कथा गाएंगे - पूज्य मोरारी बापू जी
भोपाल। मोती लाल स्टेडियम में चल रही मोरारी बापू की रामकथा के अंतिम दिन बुधवार को वातावरण काफी भावुक हो गया। घड़ी की सुइयां जैसे ही दोपहर में 12 पर पहुंचीं, बापू ने व्यास पीठ से सभी को रामलला के जन्म की बधाई दी। पूज्य संत के सानिध्य में नौ दिन से रामकथा का रसपान कर रहे श्रोता भाव विभोर हो गए। विदाई की बेला भांपते हुए जहां श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं, वहीं खचाखच भरे पंडाल में मंत्र मुग्ध बैठे श्रद्धालुओं को देखकर बापू भी भावुक हो गए। अपने आशीर्वचन में उन्होंने इतना कहा कि आप लोग खुश रहो, खुश रहो, खुश रहो। परमात्मा आपको प्रसन्ना रखे। सत्य, प्रेम और करुणा बनी रहे। साथ ही वादा भी किया कि ईंशा अल्लाह फिर मिलेंगे और राम कथा गाएंगे।
रामकथा के नौवे दिन बापू ने भगवान शिव द्वारा भवानी को सुनाई जा रही कथा के प्रसंग पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि शिव ने बताया कि वह बिना बताए (पार्वती को) ज्योतिषी बनकर बाल राम के दर्शन करने अयोध्या में दशरथ के दरबार में गए थे। वहां चारों पुत्रों का नामकरण हुआ। पूरे विश्व को विश्राम देने वाले बड़े पुत्र का नाम राम रखा गया। पूरे विश्व का भरण-पोषण करे उसका नाम भरत रखा गया। जिसके नाम से शत्रुता मिट जाए उसका नाम शत्रुघ्न रखा गया। रामानुज और धरती के धारक का नाम लक्ष्मण रखा गया। गुरु वशिष्ठ ने दशरथ जी से कहा कि यह आपके चारों पुत्र ही नहीं हैं, बल्कि ये चारों वेदों के सूत्र भी हैं।
साधु को राष्ट्र कल्याण के लिए राजदरबार जाना पड़े तो सत्ता के लिए शर्म की बात है
बापू ने कहा कि इसके बाद राम के विश्व का मित्र बनने की लीला के तहत गुरु विश्वामित्र दरबार में पहुंचते हैं। वह दशरथ से कहते हैं कि महाराज आप तो गादी पर बैठे हो, लेकिन साधु-संत आसुरी उत्पात के कारण यज्ञ, साधना, अनुष्ठान नहीं कर पा रहे हैं। बापू ने कहा कि राष्ट्र, विश्व कल्याण के लिए साधु-संतों को सत्ता के दरवाजे पर जाना पड़े यह सत्ता के लिए शर्म की बात है। इसके लिए तो सत्ता को चाहिए कि वह साधु-संतों के आश्रमों में जाकर पूछे कि आप लोगों की सत्ता ठीक चल रही है या नहीं।
रघुवंश परंपरा की भाषा में न शब्द है ही नहीं
कुशलक्षेम जानने के बाद विश्वामित्र ने कहा कि वह क्षत्रिय हैं। क्षत्रिय को मांगना शोभा नहीं देता है,लेकिन वह तप करने संत बन चुके हैं। इसलिए विश्व के कल्याण के लिए आपके दो पुत्रों को मांग रहे हैं। बापू ने कहा कि रघुवंश परंपरा की भाषा में न शब्द है ही नहीं। विश्वामित्र की मांग को शिरोधार्य करते हुए दशरथ ने सहर्ष राम, लक्ष्मण को विश्वामित्र को सौंप दिया।
उद्धार ईश्वर करेगा, मनुष्य स्वीकार तो करे
बापू ने कहा कि विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण चल दिए। रास्ते में ताड़का को निर्वाण दिया। तब विश्वामित्र को यकीन हो गया कि यह ब्रह्म हैं। विश्वामित्र के साथ राम गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे और ऋषि के श्राप से पत्थर बन गई अहिल्या का उद्धार किया। बापू ने कहा कि राम सुधारने की बात नहीं करते, वह स्वीकारते हैं। खुद को सुधारो, दूसरों को स्वीकार करो। उद्धार तो ईश्वर करेगा, मनुष्य स्वीकार तो करे। इसकी शुरुआत नरसिंह मेहता ने की थी, तब उन्हें लोगों ने समाज से निकाल दिया था।
देखते ही स्तंभित हो गए जनकराज
विश्वामित्र के साथ राम, लक्ष्मण जनकपुरी में धनुष यज्ञ में शामिल होने पहुंचे थे। वहां जनकराज दोनों युवाओं को देखकर स्तंभित हो गए। विश्वामित्र से परिचय लेने के बाद उन्हें आदर सहित महल में ठहराया। इस बीच राम गुरुपूजा के लिए पुष्प लेने बाग जाते हैं। उधर सीता बाग में गौरी पूजन के लिए जाती हैं। वहां पहली बार दोनों एक-दूसरे को देखते हैं। गौरी पूजन के दौरान मूर्ति बोल पड़ती है और सीता को संकेत देती है कि यह सांवरे वर्ष का राजकुमार तुम्हे वर के रूप में मिलेगा। जनकपुरी में ही राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न चारों भाइयों का विवाह संपन्ना हुआ।
सबको जोड़ना राम की विचारधारा
बापू ने कहा कि वनवास के दौरान राम ने कई आसुरी शक्तियों को निर्वाण दिया। सीता का हरण होने के बाद हनुमान, सुग्रीव, अंगद जैसे योद्धा रामकाज के लिए उनसे जुड़े। सीता का पता लगने के बाद लंका कूच करने के लिए समुद्र के किनारे पहुंचे। रामेश्वरम की पूजा करने के साथ ही तीन दिन तक प्रतीक्षा करने के बाद भी सागर की ओर से कोई पहल नहीं हुई तो राम ने उसका अहं तोड़ने का इरादा किया। इस बात को भांपते हुए घबराया समुद्र शरणागत हो गया। उसने सेतु बनाने का सुझाव दिया। यहां राम की सबको जोड़ने की विचारधारा का परिचय मिलता है। लंका पर चढ़ाई कर राम ने 31 बाण चढ़ाकर रावण को निर्वाण दिया।
मनुष्य बनाने का फार्मूला है रामकथा
बापू ने कहा कि रावण को निर्वाण देने के बाद राम, लक्ष्मण, सीता के साथ ही विभीषण सहित वानर, भालू सभी विमान से अयोध्या पहुंचे। लेकिन जब वे विमान से उतरे तो कोई असुर, वानर, भालू के रूप में नहीं सभी मनुष्य रूप में उतरे। इसलिए रामकथा मनुष्य बनाने का फार्मूला है। बापू ने कहा कि प्रेम और भक्ति जिसके पास होती है, उसके पास दुख नहीं आ सकते। प्रेम हमारी दिशा बदलता है, और भक्ति दशा बदल देती है।
यज्ञ, दान व तप जरूर करो
बापू ने कहा कि मनुष्य को चाहिए कि वह यज्ञ, दान व तप जरूर करे। उन्होंने इन तीनों की महिमा बताई। उन्होंने इसके आध्यातिमक व सांकेतिक पहलू पर प्रकाश डाला। यज्ञ से बुद्धि शुद्घ होती है। यज्ञ का अर्थ है कि आपके विचार सकारात्मक हों, आप भूखे को खाना खिलाएं, गरीब बालक की स्कूल फीस जमा करा दें, सदैव सत्य बोलें। यह भी एक प्रकार का यज्ञ है। दान भी करें। दान परोपकार के रूप में भी होता है। लोगों से मीठा बोलें, हर संभव मदद के लिए तत्पर रहें। सहनशीलता बनाए रखें। यह भी तप है।